डीएनए हिंदी: जिस तरह से देश में दिल्ली के कोचिंग संस्थान आईएएस और पीसीएस अधिकारी देने के लिए मशहूर हैं. उसी से तरह से उत्तर प्रदेश के जिले जौनपुर में आने वाला माधोपट्टी गांव भी चर्चा में रहता है. दरअसल, इस गांव के हर घर में कोई न कोई सरकारी अधिकारी जरूर है. इस गांव को लेकर कहा जाता है कि जब कोई त्यौहार होता है तो गांव में सरकारी गाड़ियों की लाइन लग जाती है. आइए जानते हैं कि इस गांव की सफलता की कहानी के बारे में...
यूपीएससी यानी सिविल सेवा परीक्षा (UPSC Civil Services Exam) देश की कठिनतम परीक्षा मानी जाती है. इस एग्जाम को क्रैक करने का सपना देखने वाले प्रतियोगी छात्र-छात्राएं न जाने कितने कोचिंग सेंटरों के चक्कर लगाते हैं. इसके बावजूद बहुत कम लोग इस एग्जाम में पास हो पाते हैं. आपको यह जानकर हैरानी होगी कि माधोपट्टी के ज्यादातर लोगों ने बिना कोचिंग के यूपीएसी और स्टेट पीएसी के एग्जाम में झंडा गाड़ा है.
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ऐसे शुरू हुई सफलता की कहानी
इस गांव के मुस्तफा हुसैन ने आईएस अफसर बनकर सफलता की कहानी शुरू की थी. उन्होंने साल 1914 के यूपीएसी एग्जाम मं सफलता हासिल की थी. उसके बाद इस गांव ने कई इतिहास लिखे. इंदु प्रकाश ने 1951 में यूपीएससी की परीक्षा पास की और सेकेंड टॉपर बने. इसके बाद डॉ. इंदुप्रकाश के चार भाई भी आईएएस अफसर बने. 1953 में माधोपट्टी के विद्या प्रकाश और विनय प्रकाश ने यूपीएससी परीक्षा में सफलता प्राप्त कर आईएएस का पद अपने नाम किया.
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महिलाएं भी नहीं हैं पीछे
पुरुष ही नहीं बल्कि इस गांव के महिलाओं ने भी सफलता प्राप्त की है. 1980 में आशा सिंह आईएएस अधिकारी बनीं. इसके बाद 1982 में उषा सिंह ने एग्जाम क्रैक किया. 1983 में इंदु सिंह और 1994 में सरिता सिंह ने एग्जाम क्रैक किया था. इस गांव के अधिकारी न सिर्फ मेहनत की मिसाल हैं बल्कि प्रेरणा और अच्छा करने के जज्बे की भी मिसाल हैं.
इस गांव से बने हैं इतने अधिकारी
मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि केवल 75 घर वाले माधोपट्टी गांव ने देश को 47 आईएएस और आईपीएस ऑफिसर दिए है.यूपीएसी के अलावा भी बड़े पदों पर काम कर रहे गांव के निवासियों को शामिल करें तो कुल मिलाकर 51 लोग बड़े पदों पर तैनात हैं.
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