अपने किताबों में कंटेंट के बदलाव को लेकर एनसीईआरटी लगातार विरोध का सामना कर रही है. अब शिक्षाविद योगेंद्र यादव और सुहास पलीशकर ने एनसीईआरटी को चिट्ठी लिखकर नई किताबों में उनके नाम होने पर आपत्ति जताई है. उन्होंने कहा कि पाठ्यक्रम की किताबों की समीक्षा से अब उनका कोई संबंध नहीं है और वे नहीं चाहते कि एनसीईआरटी उनके नाम का इस्तेमाल करके स्टूडेंट्स को ऐसी किताबें पढ़ाए, जो राजनीतिक रूप से पक्षपाती हों.
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दोनों शिक्षाविदों का कहना है कि अगर किताबों से उनका नाम नहीं हटाया गया तो वो फिर कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे. उनका कहना है कि पाठ्यपुस्तकें पहले उनके लिए गौरव की बात थीं जो अब शर्मिंगदी का सबब बन गई हैं. उन्होंने पिछले साल ही कहा था कि किताबों से सामग्री को कम किए जाने से ये अब अकादमिक रूप से अनुपयुक्त हो गई हैं और अपने नाम को हटाने की मांग की थी, लेकिन संसोधित पाठ्यपुस्तकों में भी उनका नाम शामिल है. दोनों का कहना है कि लेखक और संपादक के नाम ऐसी रचना के साथ जोड़े गए हैं, जिन्हें अब वे अपना नहीं मान रहे हैं.
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फिलहाल एनसीईआरटी की 12वीं की राजनीति विज्ञान की किताब को बाबरी मस्जिद का नाम हटाए जाने के बाद से आलोचना का सामना करना पड़ रहा है. अब इसे पाठ्यपुस्तक में तीन गुंबद वाला ढांचा बताया गया है. इसके अलावा गुजरात के सोमनाथ से अयोध्या तक भाजपा की रथ यात्रा, कार सेवकों की भूमिका, बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के मद्देनजर सांप्रदयिक हिंसा, भाजपा शासित राज्यों में राष्ट्रपति शासन, और अयोध्या में जो कुछ हुआ उस पर भाजपा का खेद जताना जैसी सामग्रियों को भी पाठ्यक्रम से हटाया गया है.
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हालांकि जब योगेन्द्र यादव और पलशीकर ने पहले किताबों से अपने नाम हटाने को कहा था तो एनसीईआरटी ने कॉपीराइट स्वामित्व के आधार पर इसमें बदलाव करने के अपने अधिकार का हवाला दिया था. एनसीईआरटी ने कहा था कि किताबें सामूहिक प्रयास का परिणाम हैं और किसी एक सदस्य के इससे जुड़ाव खत्म करने का सवाल ही नहीं उठता.
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