पिता ऑटोड्राइवर, मां मजदूर...बुलंद हौसलों से हासिल की मंजिल, देश के सबसे कम उम्र के IAS से मिलिए

आज हम आपको देश के सबसे कम उम्र के आईएएस अधिकारी की सफलता की कहानी बताने जा रहे हैं, जिन्होंने कठिन परिस्थितियों से हार नहीं मानी और आज लाखों युवाओं के प्रेरणास्रोत हैं...

जया पाण्डेय | Updated: Oct 20, 2024, 12:34 PM IST

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अंसार शेख की सफलता की कहानी बेहद प्रेरणादायक है. मात्र 21 वर्ष की आयु में वह 361वीं रैंक के साथ साल 2016 में यूपीएससी की सिविल सेवा परीक्षा पास कर भारत के सबसे युवा आईएएस अधिकारी बन गए. उनकी यात्रा इस बात का एक शानदार उदाहरण है कि कैसे कड़ी मेहनत और दृढ़ इच्छाशक्ति से चुनौतियों को पार कर आप अपनी मंजिल हासिल कर सकते हैं.

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वर्तमान में पश्चिम बंगाल के कूच बिहार में एडिशनल डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट (एडीएम) के रूप में कार्यरत अंसार की जड़ें महाराष्ट्र के मराठवाड़ा जिले के एक छोटे से गांव जालना से जुड़ी हैं. वह एक साधारण पृष्ठभूमि से आते हैं. उनके पिता एक ऑटोरिक्शा ड्राइवर का काम करते थे और उनकी मां खेतों में मजदूरी करती थीं. पैसों की किल्लत के बावजूद उनके परिवार ने उनकी शिक्षा को प्राथमिकता दी.

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अंसार शेख बचपन से ही पढ़ाई में विलक्षण थे. उन्होंने अपनी दसवीं कक्षा की परीक्षा में 91% अंक प्राप्त किए थे और ग्रेजुएशन की पढ़ाई पुणे कॉलेज से पूरी की. इसके बाद उन्होंने भारत की सबसे कठिन प्रतियोगी परीक्षाओं में से एक यूपीएससी परीक्षा की तैयारी करने की सोची. उन्होंने यूपीएससी का ऑप्शनल राजनीति विज्ञान को रखा. उन्होंने यूपीएससी की मेंस परीक्षा को मराठी में लिखने और इंटरव्यू मराठी भाषा में देने का फैसला लिया.

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आईएएस अधिकारी बनने का उनका रास्ता कठिनाइयों से भरा था. उनका परिवार आर्थिक तंगी का सामना कर रहा था इसलिए उनके बड़े भाई को सातवीं क्लास में ही स्कूल छोड़कर गैराज में काम करना पड़ा. पंद्रह साल की उम्र में उनकी बहन की शादी कर दी गई लेकिन अंसार इन सारी चुनौतियों के बावजूद पढ़ाई में जुटे रहे और अपनी पूरी ऊर्जा पढ़ाई में लगा दी.

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यूपीएससी की तैयारी के लिए उन्होंने कोचिंग जॉइन की और उनके दोस्तों का भी उन्हें भरपूर साथ मिला. साल 2016 में उन्होंने अपने पहले प्रयास में यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा पास की और ऑल इंडिया 361वीं रैंक हासिल की. 

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आज अंसार शेख की कहानी देशभर में अनगिनत युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है. उनकी यात्रा से पता चलता है कि समर्पण और दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ सबसे कठिन बाधाओं को भी दूर किया जा सकता है. उनकी सफलता न केवल एक व्यक्तिगत उपलब्धि है बल्कि उनकी तरह संघर्षों का सामना करने वाले दूसरे लोगों के लिए आशा की किरण है.