Srikanth Review: 'अंधा हूं लेकिन देख सकता हूं...सपने', दया नहीं फिल्म को देख होगा गर्व, राजकुमार राव ने किरदार में डाली जान

Written By सौभाग्या गुप्ता | Updated: May 10, 2024, 12:23 AM IST

Rajkummar Rao in Srikanth

Srikanth Review: राजकुमार राव की इस फिल्म का लोग लंबे समय से इंतजार कर रहे थे. 10 मई को थिएटर्स में रिलीज हो रही इस फिल्म को देखने का प्लान बना रहे हैं तो इसका रिव्यू जरूर पढ़ लें.

फिल्म रेटिंग- 3.5/5

राजकुमार राव (Rajkummar Rao) बीते कुछ सालों में बॉलीवुड के सबसे बेहतरीन एक्टर्स में से एक बनकर उभरे हैं. उन्होंने बेहद कम समय में दमदार करियर बनाया है और एक्टिंग से लोगों का दिल जीता है. इसी बीच उनकी फिल्म श्रीकांत (Srikanth) को लेकर चर्चा तेज है. राजकुमार राव ने फिल्म में दृष्टिबाधित इंडियन इंडस्ट्रियलिस्ट श्रीकांत बोला (Srikanth Bolla) का रोल निभाया है. ये बायोपिक 10 मई को रिलीज (Srikanth film release) होगी. ऐसे में हम एक दिन पहले फिल्म का रिव्यू लेकर आए हैं. यहां पढ़ें आपको इसे क्यों देखना चाहिए.

तुषार हीरानंदानी के डायरेक्शन में बनी फिल्म श्रीकांत, मछलीपट्टनम के श्रीकांत बोला की कहानी है जो नेत्रहीन हैं. श्रीकांत का रोल राजकुमार राव ने निभाया है. फिल्म में दिखाया गया कि श्रीकांत जन्म से ही दृष्टिहीन हैं पर उनके सपने काफी बड़े हैं. वो अपनी जिंदगी में बहुत कुछ हासिल करना चाहते हैं और तो और उनका सपना देश का पहला नेत्रहीन राष्ट्रपति बनना भी है. उनको आगे बढ़ाने के लिए उनकी टीचर एड़ी चोटी का जोर लगा देती हैं. 

सरल पर भावुक कर देने वाली है कहानी

फिल्म में दिखाया गया कि आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम के रहने वाले श्रीकांत बोला के पैदा होने पर उसके पिता बहुत खुश होते हैं. वो अपने बेटे को क्रिकेटर बनाना चाहते हैं पर जैसे ही उन्हें पता चलता है कि उनका बच्चा देख नहीं सकता तो वो टूट जाते हैं. यहां तक कि वो श्रीकांत को जिंदा गाड़ने जाते हैं पर उनकी मां उन्हें रोक देती हैं. फिर श्रीकांत बड़ा होता है और स्कूल जाने लगता है. वो एक होशियार और पढ़ाकू बच्चा होता है पर नेत्रहीन होने के कारण उन्हें काफी दिक्कत होती है. यहां तक कि एक लड़का उन्हें ये तक कहता है कि वो अंधे हैं तो भीख मांगे. 

इसके बाद श्रीकांत को एक बड़े विजुअली इंपेयर्ड स्कूल में भेज दिया जाता है. उनकी मुलाकात वहां देविका मैडम से होती है जिन्हें वो यशोदा मां कहते हैं. टीचर का रोल ज्योतिका ने निभाया है. देविका श्रीकांत को जिंदगी में आगे बढ़ना और मुसीबतों से लड़ना सिखाती हैं. वो हर कदम पर उसका साथ देती हैं और देश के एजुकेशन सिस्टम को बदलने में मदद करती हैं.

ये फिल्म कई मौकों पर देश की शिक्षा प्रणाली पर कटाक्ष भी करती है. पढ़ने में अव्वल रहे श्रीकांत को भारत में किसी अच्छे कॉलेज में दाखिला नहीं मिलता है तो वो पढ़ने के लिए विदेश चले जाते हैं. इसी दौरान उनकी जिंदगी में स्वाती की एंट्री होती है. स्वाती का रोल अलाया एफ ने निभाया है. श्रीकांत को विदेश में अपने नेत्रहीन होने का आभास नहीं होता है, इसलिए वो वहां ज्यादा खुश थे.

हालांकि श्रीकांत पढ़ाई पूरी करने के बाद भारत वापस आ जाते हैं और देश के नेत्रहीन लोगों को रोजगार देने के लिए फैक्ट्री खोलते हैं जिसमें उनका साथ रवि ने दिया. फिल्म में रवि का रोल शरद केलकर ने निभाया है. श्रीकांत को इस दौरान कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है पर अपनों के साथ से वो हर मुसीबत से लड़ जाते हैं. आगे की कहानी जानने के लिए तो आपको पूरी फिल्म देखनी पड़ेगी.


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क्यों देखनी चाहिए फिल्म

अगर आपको बायोपिक देखने का शौक है और राजकुमार राव के फैन हैं तो इसे जरूर देखें. आप एक्टर के फैन नहीं भी हैं तो भी वो अपनी एक्टिंग से आपको इंप्रेस करने में कामयाब होंगे. वहीं इसमें कई सीन आपको इमोशनल कर देंगे. हां, कुछ सीन को देख आपको तरस भी आएगा पर कुछ ही पल में वो प्रेरणा बन जाएंगे. फिल्म में सभी स्टार कास्ट की एक्टिंग इंप्रेस करेगी. फिल्म के कई डायलॉग भी काफी अच्छे हैं जो आपके दिल को छू लेंगे. फिल्म में वैसे तो सबकुछ बहुत शानदार है पर सेकेंड हाफ में फिल्म थोड़ी खिंची हुई लगी.  


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