दिलीप कुमार को हिंदी सिनेमा की पाठशाला कहा जाता था. वो अपने बेहतरीन अभिनय से किसी भी किरदार में जान फूंक दिया करते थे. पर्दे पर दिलीप की झलक भर से लोगों के चेहरे पर एक अलग ही मुस्कान आ जाया करती थी. हालांकि, फिर एक दौर ऐसा भी आया जब ये मुस्कान आंसुओं में बदल गई.
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फिल्मों में काम करते-करते दिलीप कुमार के करियर में एक ऐसा वक्त आया जब वो केवल गंभीर रोल ही करने लगे. अपने इन रोल के चलते एक्टर लोगों को रुला दिया करते थे. फिल्म 'देवदास' में एक्टर अपने अधूरे प्यार के लिए तड़पते नजर आए. इस दर्द से उभरने के लिए उन्होंने शराब का सहारा लिया और अंत में उनकी मौत हो जाती है.
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इसके अलावा 'दाग' में दिलीप कुमार ने ऐसा किरदार निभाया जिसमें वो खिलौने बेचकर विधवा मां के साथ रहते हैं. 'मुगल-ए-आजम' में प्यार के लिए पिता से जंग लड़ते हुए 'सलीम' की भूमिका निभाई तो 'नया दौर' में वो रोजी-रोटी के लिए लड़ेते नजर आए.
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इन सब के अलावा दीदार, तराना, ज्वार भाटा, मधुमति जैसी कई फिल्में रहीं जिनके चलते दिलीप कुमार ने लोगों को भावुक होने पर मजबूर कर दिया था. इतना ही नहीं, इन फिल्मों का खुद एक्टर की लाइफ पर भी गहरा असर पड़ा.
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एक के बाद एक कई ऐसे संजीदा किदार निभने के चलते दिलीप कुमार खुद डिप्रेशन में चले गए थे. इसके लिए बाद में उन्हें इलाज भी कराना पड़ा और फिर अपनी ऐसी ही गंभीर फिल्मों के लिए दिलीप कुमार को 'ट्रेजेडी किंग' कहा जाने लगा.
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कहा जाता है कि पर्दे पर केवल इसी तरह के रोल निभाने के बाद जब असल जिंदगी में भी इसका असर दिखने लगा तब एक्टर ने हल्के-फुल्के किरदारों के साथ वापसी करने का फैसला किया. खास बात ये रही कि लोगों को उनका ये अंदाज भी काफी पसंद आया.