उर्दू भाषा के बेबाक कहानीकार रहे सआदत हसन मंटो (Saadat Hasan Manto) कहा करते थे कि ये बिल्कुल मुमकिन है कि सआदत हसन मर जाए और मंटो जिंदा रह जाए. मंटो एक ऐसे लेखक रहे हैं जो अपनी कहानियों को लेकर कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाते रहते थे. उन्हें बदनाम लेखक तक कहा गया पर मंटो का कहना था कि अगर आप इन अफ़सानों को बर्दाश्त नहीं कर सकते तो ये ज़माना नाक़ाबिल-ए-बर्दाश्त है. लेखन ही नहीं मंटो का झुकाव साहित्य की तरफ भी रहा. उन्होंने मीना बाजार नाम से एक किताब भी लिखी जिसमें उन्होंने अशोक कुमार, नूरजहां, नरगिस जैसे बड़े सितारों के साथ बिताए वक्त का जिक्र किया है.
मंटो की जिंदगी से जुड़े किस्से कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें शायद ही कोई जानता हो. कम ही लोग जानते हैं कि मंटो ने अभिनय में भी हाथ आजमाया था. अभिनेता अशोक कुमार (Ashok Kumar) की फिल्म 'आठ दिन' में मंटो ने पागल की भूमिका भी निभाई थी. मंटो ने अपनी और अशोक कुमार की दोस्ती का जिक्र अपनी एक किताब में भी किया था. मंटो अशोक कुमार को अपना जिगरी दोस्त मनाते थे.
मंटो ने अपनी किताब में एक जगह बताया है कि अक्सर अशोक कुमार और उनके बीच इस बात को लेकर बहस होती थी कि उम्र में कौन बड़ा है? इस सवाल पर अक्सर दोनों झगड़ भी पड़ते थे. एक बार अशोक कुमार ने मंटो से कहा कि वह उन्हें दादा कह कर बुलाया करें. जिस पर मंटो ने कहा कि वो उनसे ज्यादा उम्रदारज हैं. दोनों ने उम्र का हिसाब निकाला तो पाया कि अशोक कुमार मंटो से दो महीने और कुछ दिन बड़े हैं. फिर क्या था मंटो को अशोक कुमार को दादा मुनी कहना पड़ा.
एक तरफ जहां मंटो ने अपनी किताब में अशोक कुमार को अपना अजीज दोस्त बताया तो वहीं अशोक कुमार ने एक मौके पर उनको पहचानने से भी इनकार कर दिया था. कहा जाता है कि अशोक कुमार को भूलने की बीमारी थी. दरअसल दूरदर्शन के पत्रकार रहे शरद दत्त ने एक लेख में इस बात का जिक्र करते हुए बताया था कि मंटो के गुजरने के सालों बाद उन्होंने अशोक कुमार का इंटरव्यू किया था. जब उनसे मंटो के साथ उनके रिश्तों के बारे में सवाल पूछे गए तो पहली बार में उन्होंने किसी मंटो को पहचानने से ही इनकार कर दिया. फिल्मिस्तान और बॉम्बे टॉकीज के दिनों की याद दिलाने पर उन्होंने सपाट लहजे में कहा, "वो शराब बहुत पीते थे और अश्लील कहानियां लिखते थे."
दोनों के इस किस्से को सुनकर तो यही लगता है कि अशोक कुमार वाकई मंटो को भूल ही जाते तो बेहतर था.
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