Alzheimer और Dementia के रोगियों के लिए अच्छी खबर, मेमोरी लॉस से मिलेगी निजात 

Written By आरती राय | Updated: May 14, 2022, 10:53 AM IST

Photo Credit: Zee Media

ब्रिटेन के कैम्ब्रिज और लीड्स विश्वविद्यालयों के शोधकर्ताओं का दावा है कि उम्र के साथ होने वाले  मेमोरी लॉस को सफलतापूर्वक ठीक किया जा सकता है. 

डीएनए हिंदीः उम्र बढ़ने के साथ भूलने की बीमारी (Memory Loss) इतनी आम है कि इसे दरअसल बीमारी भी नहीं माना जाता है. मगर अगर ये एक हद से ज्यादा बढ़ जाए तो काफी गंभीर रुप ले लेती है. अब ब्रिटेन के कैम्ब्रिज और लीड्स विश्वविद्यालयों के शोधकर्ताओं का दावा है कि उम्र के साथ होने वाले  मेमोरी लॉस को सफलतापूर्वक ठीक किया जा सकता है. 

वैज्ञानिकों ने इसका ट्रायल बढ़ती उम्र के चूहों पर किया और  वह उनकी यादाश्त (Memory) को वापस लाने में सफल भी रहे. वैज्ञानिको का मानना है कि इस रिसर्च की सफलता से आने वाले सालो में   Alzheimer और dementia  यानी 'भूलने का रोग' जैसी बीमारी को ठीक करने में काफी हद तक सफलता मिल सकती है. इस प्रयोग की सफलता के बाद जल्द ही वैज्ञानिक इस रिसर्च को आगे बढ़ाते हुए ह्यूमन ट्रायल कर सकते हैं. 

कैसे होती है डिमेंशिया या भूलने की बीमारी
पहले की रिसर्च में ये सामने आया है कि इंसानी शरीर में पाया जाने वाला Cerebrospinal fluid (CSF) बढ़ती उम्र के साथ -साथ कम होता जाता है. इसी वजह से  हमारी सोचने समझने की शक्ति पर भारी असर पड़ता है. जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है याददाश्त कमजोर होती चली जाती है. जिसकी वजह से इंसान  Alzheimer  और dementia जैसी बीमारियों का शिकार हो सकता है.

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क्या है न्यूरो प्लास्टिसिटी और मेमोरी का कनेक्शन ?
दिमाग जिस प्रक्रिया के तहत चीजें सीखता या उन्हें अपनाता है, उसे न्यूरोप्लास्टिसिटी (Neuroplasticity) कहते हैं. हमारे मस्तिष्क में कई प्रकार के एलिमेंट्स पाए जाते है. हाल ही में दिमाग के अंदर पेरीन्यूरोनल नेट्स (perineuronal nets - PNNs) की खोज की गई जो न्यूरोप्लास्टिसिटी को बनाए रखने में सहायक होता है.
PNN एक नरम हड्डी जैसी यानी कार्टिलेज (Cartilage) जैसी आकृतियां होती हैं, जो दिमाग को अंदर से  (Inhibitory Neurons) घेर लेती हैं.
दिमाग में न्यूरोप्लास्टिसिटी की प्रक्रिया को लगातार चलाते रहना ही इनका काम होता है. ये सबसे पहले इंसान में पांच साल की उम्र में दिखाई पड़ती हैं. उसके बाद ये बढ़ती उम्र के साथ धीरे-धीरे कम होती चली जाती हैं. ये दिमाग में मौजूद कनेक्शंस को छोड़ने लगती हैं. जिसकी वजह से दिमाग का लचीलापन खत्म होने लगता है. 
दिमाग न कुछ सीख पाता है, न ही समझ पाता है और याददाश्त कमजोर होने लगती है.

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कैसे किया गया प्रयोग
रिसर्च से पता चला है कि जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं, CSF का उत्पादन काफी कम होता जाता है इसलिए CSF के बेहतर उत्पादन से बुजुर्गों की मेमोरी भी बेहतर हो सकती है. अभी ये एक्सपेरिमेंट  उम्र दराज चूहों पर किया गया था. इस प्रयोग में 10 हफ्ते बड़े चूहे के दिमाग से Cerebrospinal Fluid ले कर बीमार चूहे पर इस्तेमाल किया जो काफी कारगर साबित हुआ.  
इस प्रयोग को करने के लिए वैज्ञानिकों ने एक 18 महीने के चूहे को लिया, जिसे उसकी उम्र के हिसाब से बुजुर्ग कहा जा सकता है. कई जांच के बाद पता चला कि चूहो को भी मेमोरी लॉस की दिक्कत होती है.जबकि छह महीने का चूहा उससे ज्यादा याददाश्त वाला होता है. इस रिसर्च को आगे बढ़ाते हुए शोधकर्ताओ ने बड़ी उम्र के दिमागी रूप से बीमार चूहे को 10 हफ्ते की उम्र वाले चूहे से लिए गए  Cerebrospinal fluid को बड़ी उम्र वाले बीमार चूहे के शरीर में इंजेक्ट किया जिससे कुछ ही समय में अच्छे रिजल्ट्स देखने को मिले. 

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