डीएनए हिंदी. जैसे ही तबीयत थोड़ी ठीक होने लगती है, लोग दवा और सावधानी के प्रति लापरवाह होने लगते हैं. यह सामान्य मनोविज्ञान है. हम यह समझने लगते हैं कि अब नैचुरल तरीके से हम बिल्कुल ठीक हो जाएंगे, दवा की जरूरत नहीं. हम अपना डॉक्टर खुद बनने लगते हैं और अपनी सेहत का फैसला भी खुद लेने लगते हैं.
लेकिन यह आदत कई स्तरों पर नुकसानदेह है.
इस मामले में भारतीय समाज में पुरुषों के मुकाबले महिलाएं ज्यादा लापरवाह होती हैं. दरअसल, भारतीय परिवार की संरचना में घर की सारी जिम्मेवारी महिलाओं के कंधे पर होती है. यह एक बड़ी वजह है कि वे घर के बाकी सदस्यों का तो पूरा ख्याल रखती हैं, पर अपनी सेहत के प्रति ज्यादा लापरवाह हो जाती हैं.
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बता दें कि दवा का कोर्स पूरा करने से पहले अगर हम दवा खाना बंद कर देते हैं तो सबसे पहली आशंका बीमारी के फिर लौट आने की होती है. दरअसल, कई बीमारियां जीवाणु (bacteria) या विषाणु (virus) के संक्रमण (Infection) की वजह से होती हैं. शरीर से यह संक्रमण जब खत्म होने लगता है तो हम स्वस्थ होने लगते हैं. जबकि हकीकत यह होती है कि न तो संक्रमण पूरी तरह खत्म हुआ होता है न हम पूरी तरह स्वस्थ हुए होते हैं. ऐसे में अगर हमने दवाओं का कोर्स बीच में ही बंद कर दिया तो वह संक्रमण चाहे जीवाणुजनित रहा हो या विषाणुजनित फिर से फैलने लगता है.
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डॉक्टरों का मानना है कि एंटीबायोटिक आदि की खुराक पूरी करनी बेहद जरूरी होती है. यह इसलिए कि शरीर से संक्रमण पूरी तरह खत्म हो जाए. इसी तरह अन्य दवाएं भी सिर्फ इसलिए बंद नहीं कर देनी चाहिए कि आप ठीक हो गए. बल्कि मधुमेह (diabetes), रक्तचाप (blood pressure) या हॉर्मोन आदि जैसी कुछ दवाएं अचानक बंद करने से शरीर को नुकसान पहुंच सकता है. इसलिए डॉक्टर के निर्देश से ही डोज घटाना या धीरे-धीरे बंद करना चाहिए.
(Disclaimer: हमारा लेख केवल जानकारी प्रदान करने के लिए है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ से परामर्श लें.)
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