mRNA Vaccine: जानें एमरजेंसी में लगने वाली इस Covid Vaccine के पीछे की कहानी, कैसे काम करेगी यह

सुमन अग्रवाल | Updated:Jun 30, 2022, 06:04 PM IST

mRNA तकनीक पर बनी कोरोना Vaccine आखिर कैसे बनी और क्या है इसके पीछे की कहानी, यहां जानिए कैसे यह करेगी काम

डीएनए हिंदी:  भारत को उसकी पहली mRNA तकनीक पर आधारित एमरजेंसी में इस्तेमाल होने वाली वैक्सीन की मंजूरी मिल गई है. इस वैक्सीन की खुशी ज्यादा इसलिए है क्योंकि ये 18 साल की उम्र के बाद के सभी लोगों को एमरजेंसी में लगाई जाएगी और यह बाकी वैक्सीन से बिल्कुल अलग है.

आईए जानते हैं आखिर यह वैक्सीन कैसे बनी और इसको बनाने के पीछे की कहानी क्या है. दरअसल, पुणे की एक कंपनी ने यह वैक्सीन बनाई है और यह पहली नई तकनीक पर आधारित स्वदेशी वैक्सीन है. इस वैक्सीन को 2-4 डिग्री के तापमान में रखना अनिवार्य है. ये मेडिकल रेफ्रिजनरेटर में स्टोर करके रखी जा सकती है.

यह वैक्सीन वह है जिसे ग्लोबली ह्यूमन ट्रायल के लिए इस्तेमाल किया गया.पिछले महीने जेनोवा की बायोफार्मा कंपनी ने अपनी वैक्सीन के फेज-3 के ट्रायल के बारे में बयान जारी किया था.उसमें बताया था कि इस वैक्सीन का फेज-2 और फेज 3 ट्रायल के दौरान 4000 लोगों पर परीक्षण किया गया था. यह तकनीक अब तक यूएस में थी लेकिन अब भारत में भी आ गई है.  

ऐसे काम करेगी वैक्सीन (How this Vaccine will work in Hindi)

दरअसल, जब हमारे शरीर पर कोई वायरस या बैक्टीरिया हमला करता है तो mRNA टेक्नोलॉजी हमारी सेल्स को उस वायरस या बैक्टीरिया से लड़ने के लिए प्रोटीन बनाने का मैसेज भेजती है.इससे हमारे इम्यून सिस्टम को जो जरूरी प्रोटीन चाहिए, वो मिल जाता है और हमारे शरीर में एंटीबॉडी बन जाती है जो वायरस से लड़ने के लिए सक्षम होती है. इसका सबसे बड़ा फायदा ये है कि बाकी वैक्सीन के मुकाबले ये ज्यादा जल्दी बदली जा सकती है. यानी इसे नए वेरिएंट के हिसाब से ढालना थोड़ा आसान होता है.ऐसा पहली बार है जब ऐसी वैक्सीन भारत में बनी है

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ऐसे बन रही है वैक्सीन (How this Vaccine made in Hindi)

भारत में इस वैक्सीन को स्टोर करके रखना एक बहुत बड़ी चुनौती है, क्योंकि पश्चिमी देशों में जीरो तापमान पर ये रखी जाती है, लेकिन भारत का तापमान काफी अधिक है.इसलिए इसे लिक्विड से पाउडर में परिवर्तित करके फ्रीज में स्टोर करने लायक बनाया गया है. लायोफिलाइजेशन प्रक्रिया के जरिए इसका पूरा पानी सुखा दिया जाता है और बाद में इसे जमा दिया जाता है ताकि बर्फ वेपर में परिवर्तित हो जाए. 

लायोफिलाइजेशन ये  तकनीक नई नहीं है लेकिन इस वैक्सीन में इसका इस्तेमाल नया है. जेनोवा के अधिकारियों ने बताया कि इसके ट्रायल पर बहुत लोगों की मेहनत लगी है, पहले इसे जानवरों पर ट्रायल किया गया ताकि इसकी सुरक्षा की जांच हो सके उसके बाद फेज 1 और 2 के तहत इसे इंसानों पर ट्रायल किया गया. इस पूरी प्रक्रिया को एक से डेढ़ साल का वक्त लग जाएगा. 

कोरोना के अलावा इन बीमारियों में भी काम करेगी यह वैक्सीन (This Vaccine will be used in other diseases)

घरेलू एमआरएनए वैक्सीन प्लेटफॉर्म अन्य संक्रामक रोगों जैसे टीबी, डेंगू, मलेरिया चिकनगुनिया, दुर्लभ आनुवंशिक रोगों से भी निपटने में सक्षम होगी. 

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