Diabetes Naturopathy समेत दुनियाभर में तेजी से बढ़ रहा है इन 10 Neurological समस्याओं का खतरा: Study

Abhay Sharma | Updated:Mar 31, 2024, 04:37 PM IST

दुनियाभर में तेजी से बढ़ रहा है इन 10 Neurological समस्याओं का खतरा

Neurological Conditions: एक स्टडी के मुताबिक, दुनिया में 300 करोड़ से ज्यादा लोग न्यूरोलॉजिकल बीमारियों से जूझ रहे हैं. आइए जानते हैं इसके जोखिम के कारक क्या हैं और इनसे बचाव कैसे करें...

दुनियाभर में कई तरह की गंभीर बीमारियां तेजी से बढ़ रही है, इनमें न्यूरोलॉजिकल बीमारियां (Neurological Conditions) भी शामिल हैं. हाल ही में सामने आई द लैंसेट न्यूरोलॉजी की एक नई स्टडी के मुताबिक, दुनिया में 300 करोड़ से ज्यादा लोग न्यूरोलॉजिकल बीमारियों से जूझ रहे हैं. ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि दुनिया में हर तीसरा शख्स न्यूरोलॉजिकल प्रॉब्लम का शिकार हो चुका है. बता दें कि (WHO) ने भी इस रिसर्च के डाटा एनालिसिस में अहम भूमिका निभाई है. 

इस स्टडी के मुताबिक, 2021 में दुनियाभर में 3.4 बिलियन यानी की 340 करोड़ से भी ज्यादा लोग कई तरह की न्यूरोलॉजिकल बीमारियों (Chronic Neurological Conditions) के साथ जिंदगी गुजार रहे हैं. रिपोर्ट की मानें तो न्यूरोलॉजिकल बीमारियों के कारण होने वाली विकलांगता, बीमारी और समय से पहले मौतों की संख्या में 1990 के बाद से अब तक 18% की वृद्धि हुई है...

जान लें क्या होती हैं न्यूरोलॉजिकल समस्याएं 
  
दरअसल, हमारा दिमाग, रीढ़ की हड्डी और तंत्रिकाएं मिलकर तंत्रिका तंत्र बनाती हैं और इससे शरीर की सभी गतिविधियों को कंट्रोल होती हैं. ऐसे में जब तंत्रिका तंत्र का कोई भी हिस्सा किसी बीमारी की चपेट में या प्रभावित होता है तो इससे कई गंभीर न्यूरोलॉजिकल प्रॉब्लम्स का सामना करना पड़ता है. इस स्थिति में चलने-बोलने, खाने-निगलने, सांस लेने  और किसी नई चीज को सीखने में समस्याएं हो सकती हैं. इतना ही नहीं इससे याददाश्त कमजोर होती है और मानसिक समस्याएं बढ़ सकती हैं. 


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ये हैं 10 बड़े न्यूरोलॉजिकल प्रॉब्लम्स
 
इस स्टडी के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2021 में लोग सबसे ज्यादा इन10  न्यूरोलॉजिकल प्रॉब्लम्स की चपेट में आए. 


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जरूरी है जोखिम के कारकों को रोकना 

WHO के मुताबिक, खराब जीवनशैली के साथ पर्यावरणीय कारक इन समस्याओं के लिए जिम्मेदार हैं. हेल्थ एक्सपर्ट्स बताते हैं कि हाई सिस्टोलिक ब्लड प्रेशर, आसपास का परिवेश और घरेलू वायु प्रदूषण भी स्ट्रोक के जोखिम को बढ़ा सकता है, इसके अलावा लेड के संपर्क को रोकने से मेंटल डिसेबिलिटी को कम किया जा सकता है. वहीं प्लाज्मा ग्लूकोज लेवल को कम करने से डिमेंशिया के बोझ को 14.6% तक कम किया जा सकता है. साथ ही स्मोकिंग से दूर रहने से स्ट्रोक, डिमेंशिया और मल्टीपल स्केलेरोसिस के जोखिम को कम किया जा सकता है. 

Disclaimer: यह लेख केवल आपकी जानकारी के लिए है. इस पर अमल करने से पहले अपने विशेषज्ञ डॉक्टर से परामर्श लें.

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