Autism in Child: कैसे दूसरे बच्चों से अलग होते हैं ऑटिस्टिक चाइल्ड, लक्षण क्या हैं, कैसे करें इसका इलाज

Written By सुमन अग्रवाल | Updated: Nov 15, 2022, 12:53 PM IST

क्या होता है ऑटिज्म, ऐसे बच्चों के लक्षण कैसे दिखते हैं, कैसे करें इसका इलाज, माता पिता के लिए क्या है जरूरी

डीएनए हिंदी: Autism Child Symptoms, Treatment- ऑटिज्म एक तरह की दिमाग के विकास से जुड़ी हुई बीमारी है, जिसमें दिमाग का विकास उम्र के साथ साथ नहीं हो पाता है,इस बीमारी के दौरान व्यक्ति पढ़ने लिखने, कोई कार्य करने में अक्षम होता है, उसे कई सारी चीजों में परेशानी आती है, उसका व्यवहार दूसरों से अलग होता है. वो खुदमें ही रहना पसंद करता है. ये बीमारी 2 से 3 साल के बच्चों में होती है, कई बार बच्चे के बड़े होने के बाद इसके लक्षणों का पता चलता है. चलिए जानते हैं इस बीमारी के लक्षण क्या हैं, इलाज क्या है.

कैसे होते हैं ये बच्चे (Kaise Hote Hain Autistic Bacche)

वैसे तो इस बीमारी का कोई खास इलाज नहीं है लेकिन माता-पिता की केयर और डॉक्टर की गाइडेंस से इसपर काबू पाया जाता सकता है. 

इस बीमारी से ग्रसित बच्चे दूसरे बच्चों से बिल्कुल अलग होते हैं, उनकी एक्टिविटी भी अलग होती है, हालांकि कई बच्चे इसमें भी बहुत ही शार्प होते हैं

12-18 महीनों की आयु में (या इससे पहले भी) इसके लक्षण दिखते हैं जो सामान्‍य से लेकर गम्भीर हो सकते हैं. नवजात शिशु जब ऑटिज्‍म का शिकार होते हैं उनमें विकास के कुछ ऐसे लक्षण दिखते हैं. 

वो तोड़ तोड़कर शब्द बोलता है. 
इशारा करके बातें करता है 
चुप रहता है, खामोश रहता है 
मां की आवाज़ सुनकर मुस्कुराना या उसे प्रतिक्रिया देना
हाथों के बल चलकर दूसरों के पास जाना
आंखों में आंखें मिलाकर ना देखना या आई-कॉन्टैक्ट ना बनाना

यह भी पढ़ें- ऑटिस्टिक बच्चों के साथ कैसे करें व्यवहार, पेरेंट्स को रखना होता है इन बातों का ध्यान 

ऑटिज्म से प्रभावित बच्‍चों में लक्षण (Autism Symptoms)

  • दूसरे बच्चों से घुलने-मिलने से बचना
  • अकेले रहना, खामोश रहना
  • खेल-कूद में हिस्सा ना लेना 
  • किसी एक जगह पर घंटों अकेले या चुपचाप बैठना, किसी एक ही वस्तु पर ध्यान देना या कोई एक ही काम को बार-बार करना
  • दूसरों से सम्पर्क ना करना
  • बातों को सीधे न बोल पाना, घूमाकर कहना 
  • बातचीत के दौरान दूसरे व्यक्ति के हर शब्द को दोहराना
  • सनकी व्यवहार करना
  • किसी भी एक काम या सामान के साथ पूरी तरह व्यस्त रहना
  • खुद को चोट लगाना या नुकसान पहुंचाने के प्रयास करना
  • गुस्सैल, बदहवास, बेचैन, अशांत और तोड़-फोड़ मचाने जैसा व्यवहार करना
  • किसी काम को लगातार करते रहना जैसे, झूमना या ताली बजाना
  • एक ही वाक्य लगातार दोहराते रहना
  • दूसरे व्यक्तियों की भावनाओं को ना समझ पाना
  • दूसरों की पसंद-नापसंद को ना समझ पाना
  • किसी विशेष प्रकार की आवाज़, स्वाद और गंध के प्रति अजीब प्रतिक्रिया देना
  • खुदको छोटा और कमजोर महसूस करना 

इलाज (Treatment)

इस बीमारी का इलाज जितनी जल्दी शुरू हो जाए उतना अच्छा है, इससे बच्चों की कार्यक्षमता बढ़ती है. कई लोग इसकी थैरेपी शुरू कर देते हैं, लेकिन उससे ज्यादा माता पिता की जिम्मेदारी ज्यादा बनती है. 

बच्चों को बिहेवियर को देखें, उनकी हर एक्टिविटी को समझें और बहुत प्यार से धैर्य से हैंडल करें 
पॉजिटिव रहें और उन्हें भी पॉजिटिव बातों की ओर लेकर जाएं 
उनके खाने से लेकर सोने तक का शेड्यूल देखें कि कैसे कब क्या करें
उन्हें कभी इग्नोर ना करें, उनके खाने पीने का खास ख्याल रखें 

(Disclaimer: हमारा लेख केवल जानकारी प्रदान करने के लिए है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें.) 

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