डीएनए हिंदीः तनाव और डिप्रेशन अब आम हो चुका है और यही कारण है कि सुसाइड के मामले भी बढ़ रहे हैं. ठंड में डिप्रेशन बढ़ता है और सुसाइड के मामले भी. कई बार हमारे आसपास डिप्रेशन में रहने वालों के सुसाइड की खबरें सामने आती हैं तो सभी के मन में यही ख्याल आता है कि, काश उसके दिमाग में चल रही सुसाइड की जानकारी होती.
डिप्रेशन में रहने वाले बहुत से लोगों के अंदर यह बात अधिकतर कौंधती है कि उनकी जरूर किसी को नहीं या उनका रहना न रहना बराबर है. कई बार ड्रिपेशन का स्तर इतना बढ़ता है कि वो सुसाइड कर लेते हैं. लेकिन शायद अब साइंड और टेक्नॉलॉजी की मदद से डिप्रेशन के शिकार लोगें के मन में आ रहे सुसाइड के ख्याल को पहले ही जाना जा सकेगा. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, दुनिया में हर 40 सेकंड में एक व्यक्ति सुसाइड करता है.
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हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के मनोविज्ञान विभाग ने एक ऐसी तकनीक खोजी है जिससे सुसाइड का ख्याल आते कुछ सिग्नर जेनरेट होने लगेगा. असल में बायोसेंसर डेटा से डिप्रेशन के मरीज को ट्रैक किया जाएगा और यह जाना जा सकेगा कि वह सुसाइड का विचार कर रहा है.
मोबाइल या रिस्ट वॉच में चिप डाली जा सकेगी
डिप्रेश के शिकार मरीजों के बिना जानकारी के ही उनके मोबाइल या रिस्ट बैंड या वांच में चिप डाले जाएंगे. इससे उनके दिनभर की गतिविधियों पर नजर रखा जा सकेगा.
जीपीएस से ट्रैक कर रहे
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने अपने रिसर्च में शािमल लोगों को जीपीएस से ट्रैक करते रहे. बात दें कि शोध में एक डिप्रेशन की शिकार केटलिन क्रूज को शािमल किया गया था. बता दें कि केटलिन मनोवैज्ञानिक इलाज ले रही थीं और मनोवैज्ञानिक जीपीएस के माध्यम से उन्हें ट्रैक करते रहे. केटलिन की हर गतिविधि पर नजर रखी जा रही थी. वह घर से बाहर निकलती हैं या नहीं, निकलती हैं तो कितनी देर बाहर रहती है, क्या करती है, उसकी चाल, पल्स रेट क्या है. किस समय उसकी पल्स रेट बढ. रही या घट रही और नींद में पर भी नजर रखी गई थी. यह देखा जा रहा था कि वह कितनी देर सोती है या कितनी बार उसकी नींद टूटती है. आदि.
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शोध से जुड़े वैज्ञानिक मैथ्यू नॉक के अनुसार मरीज की हर एक्टिविटी पर नजर रखने और उसी बॉडी लेंग्वेज से उसके दिमाग की सिग्नलों को कैच किया जाता है और उससे उसके सुसाइड के ख्याल की सूचना मिलती है. इससे उसे समय रहते बचाया जा सकेगा. नॉक के मुताबिक यदि किसी की नींद बार.बार टूटती है तो इसका मतलब ये है कि उसका मूड ठीक नहीं है.
मरीज बैचेनी से मिलेगा अलर्ट
बता दें कि जीपीएस से पता चलता है कि मरीज बैचेनी में कहीं ज्यादा टहल तो नहीं रहा या उसकी पल्स रेट हाई या लो तो नहीं हो रही या उसकी दिल की धड़कन तेज तो नहीं है. कहीं मरीज गुस्से में तो नहीं है. ये सब कुछ सेंसर रिपोर्ट से पता चलता है.
खास बात ये है कि इस सेंसर के बारे में बिना बताएं ही मरीज के मोबाइल या बैंड में इंस्टॉल कर दिया जाता है और उसे इसकी जानकारी भी नहीं होती की उसकी हर गतिविधि ट्रैक हो रही है. संभवत आने वाले दिनों में ये प्रयोग सुसाइड से अपनो को खोने से बचा सकेगा.
Disclaimer: हमारा लेख केवल जानकारी प्रदान करने के लिए है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें.)
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