ICMR Report: TB मरीजों के इलाज के बाद भी नहीं रहता जिंदगी का भरोसा, जानिए क्यों?

Written By डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated: Jul 13, 2022, 01:30 PM IST

Tuberculosis से जुड़ी एक रिसर्च में बड़ा खुलासा हुआ है. आईसीएमआर ने दावा किया है कि इन मरीजों का इलाज होने के बाद भी इनकी जान का रिस्क बना रहता है. इस शोध को समझिए आखिर ऐसा क्यों है

डीएनए हिंदी : टीबी मरीजों (TB Patients) के लिए एक बहुत बड़ी खबर सामने आई है.आईसीएमआर (ICMR) ने दावा किया है कि टीबी के इलाज के बाद भी मरीजों में जोखिम बना रहता है. आईसीएमआर की Research टीम एनआईआरटी (नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ रिसर्च इन ट्यूबरकुलोसिस) ने हाल ही में इसपर शोध किया है. शोध में बताया गया है कि टीबी मरीजों की डेथ रेट में कमी आई है लेकिन वे पूरी तरह से ठीक नहीं होते हैं. 

एनआईआरटी के निदेशक डॉ. पद्मप्रियदर्शनी सी ने बताया कि बीते कुछ वर्षों में बेहतर इलाज की वजह से मृत्यु दर में गिरावट तो आई है लेकिन इलाज के बाद भी रोगियों में लंबे समय तक जान के जोखिम की चिंता बनी रहती है. अध्ययन के दौरान पता चला है कि जिन लोगों को टीबी नहीं है उनकी तुलना में टीबी का इलाज कराने वालों में मृत्यु दर दो गुना अधिक थी. 

यह भी पढ़ें- कैंसर के शुरुआती लक्षणों को नजरअंदाज न करें

क्या कहती है रिसर्च

डॉ. पद्मप्रियदर्शिनी ने कहा, इलाज पूरा होने के बाद भी रोगियों के जीवन की गुणवत्ता से समझौता किया जाता है क्योंकि टीबी के बाद न केवल व्यक्ति की प्रोडक्टिविटी प्रभावित होती है बल्कि देश की उत्पादकता भी प्रभावित होती है. इसलिए एनटीईपी को टीबी के इलाज पर जोर देने का लक्ष्य दिया गया है ताकि आने वाले वर्षों में मृत्यु दर कम हो सके. आपको बता दें कि सरकार ने 2025 तक भारत को टीबी मुक्त करने का लक्ष्य बनाया है.


महिलाओं की तुलना में पुरुषों में मृत्यु दर अधिक (Men vs Women Death rate) 

अध्ययन में यह बात भी सामने आई है कि महिलाओं की तुलना में पुरुषों में मृत्यु दर अधिक है. अध्ययन में 4,022 टीबी रोगियों को शामिल किया गया था, इलाज के बाद जब व्यक्तियों का लंबे समय तक फॉलो-अप किया गया तो पता चला कि बीमारी से प्रभावित लोगों में रिस्क फेक्टर बना रहता है. 

(Disclaimer: हमारा लेख केवल जानकारी प्रदान करने के लिए है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें.) 

देश-दुनिया की ताज़ा खबरों पर अलग नज़रिया, फ़ॉलो करें डीएनए हिंदी को गूगलफ़ेसबुकट्विटर और इंस्टाग्राम पर.