डीएनए हिंदी :साल 2015 से लगातार पूरी दुनिया में योग दिवस मनाया जा रहा है.बता दें कि योग दिवस को मनाए जाने का प्रस्ताव सबसे पहले प्रधानमंत्री मोदी ने 27 सितंबर, 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा रखा था.योग दिवस के अवसर पर चलिए आज आपको अष्टांग योग और इसके नियम, महत्व और प्रकार के बारे में बताएं.
अष्टांग योग महर्षि पतंजलि द्वारा रचित व प्रयोगात्मक सिद्धान्तों पर आधारित है. महर्षि पतंजलि ने अपने योगसूत्र नामक ग्रंथ में तीन प्रकार की योग साधनाओं का वर्णन किया है. ‘अष्टांग’ शब्द दो शब्दों के मेल से बना है अर्थात् अष्ट + अंग, जिसका अर्थ है आठ अंगों वाला.
अष्टांग योग के प्रकार या अंग
पतंजलि द्वारा प्रतिपादित योग ही अष्टांग योग है और इसके 8 अंग हैं. प्रत्येक अंग के अपने ही नियम हैं.
- यम
- नियम
- आसन
- प्राणायाम
- प्रत्याहार
- धारणा
- ध्यान
- समाधि
1. यम
इसमें अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह सन्निहित हैं। पतजंलि योग सूत्र के अनुसार यम केवल 5 होते हैं.
- अहिंसा
- सत्य
- अस्तेय
- ब्रह्मचर्य तथा
- अपरिग्रह
1. अहिंसा - शब्दों, विचारो या कर्मों से किसी को हानि न पहुंचाना. यानि विचार, वचन और कर्म में अहिंसा के प्रति सजग और अभ्यासरत रहना और करुणा, प्रेम, समझ, धैर्य, और सार्थकता का अभ्यास करना.
2. सत्य - विचारो से लेकर बात तक में सत्य का समावेश होना.
3. अस्तेय - किसी अन्य की वस्तु को बिना अनुमति के नहीं लेना। आचरण और व्यवहार में ईमानदारी बरतना.
4. ब्रह्मचर्य - चतेना को ब्रह्म के ज्ञान में स्थिर करना अथवा सभी इंद्रिय पर विजय प्राप्त करना.
5. अपरिग्रह - अपरिग्रह का शाब्दिक अर्थ है सांसारिक वस्तुओं का संचय न करना, उनके प्रति मोह न होना.
2. नियम
नियम अष्टांग योग का दूसरा अंग है. इसमें शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय तथा ईश्वर-प्रणिधान सन्निहित हैं.
- शौच
- सन्तोष
- तप
- स्वाध्याय
- ईश्वर प्रणिधान
1. शौच - शौच से तात्पर्य है बाह्य और आंतरिक शुद्धता पर जोर.
2. सन्तोष - लालच और लोभ पर नियंत्रण तथा प्रत्येक स्थिति में संतुष्ट रहने का प्रयास करना.
3. तप - तप यानि भूख—प्यास, शीत और गर्म, स्थान और स्थिति की असुविधाओं का सामना करनाऋ
4. स्वाध्याय - ग्रंथो का अध्ययन और उनके पाठों पर मनन तथा स्वयं ज्ञान का सृजन करना.वेद, उपनिषद, गायत्री मंत्र और ओम का जाप करना.
5. ईश्वर प्रणिधान - ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण, पूर्ण श्रद्धा.
3. आसन
महर्षि पतंजलि ने योग को स्थिरसुखमासनम् बताया है. यानि आसन सुखपूर्वक एक स्थिति में करना चाहिए. आसन का अभ्यास धीरे—धीरे करना चाहिए और इसे मन और मांसपेशियां दोनों ही विकसित होती हैं. इससे उग्रता और चंचलता में कमी आती है.
आसनों का प्रकार - शवासन, मकरासन, शीतल ताड़ासन और शीतल धनुरासन विश्रान्ति वाले आसन हैं. पद्मासन, सिद्धासन, वज्रासन और सुखासन आदि को ध्यानस्थ आसन कहा जाता है. अन्य सभी आसन सांस्कृतिक आसन कहलाते हैं. ये आसन विशेष रूप से हमारे व्यक्तित्व के संवर्धन के लिए होते हैं.
4. प्राणायाम
प्राणायाम किसी भी सुविधाजनक स्थिति में विश्राम की अवस्था में बैठ कर धीरे-धीरे करना होता है. ये मुख्यत: श्वास पर केंद्रित योग है. वायु को लेने और बाहर छोड़ते समय गर्म वायु की अनुभूति होती है. जब भीतर श्वास लेते हैं तो ऐसा लगना चाहिए की पूरे शरीर में ऊर्जा का संचार हो रहा है और जब श्वास धीरे-धीरे बाहर दोड़ते हैं तो पूरे शरीर में विश्रान्ति की अनुभूति होती है. प्राणायाम को किसी भी दिन किसी भी समय खड़े होकर, बैठकर अथवा लेटकर किया जा सकता है.
5. प्रत्याहार
इन्द्रियो पर नियन्त्रण करने से जब इन्द्रियो का उनके विषयों से सम्बन्ध टूट जाता है तब इन्द्रियाँ चित्त स्वरूप हो जाते है जैसा कि योगसूत्र में कहा गया है.
6. धारणा
यह अभ्यास किसी एक वस्तु पर ध्यान केंद्रित करने से संबद्ध है, जिससे एकाग्रचित होना आसान होता है.
7. ध्यान
मन को निर्बाध रूप से एक ही पदार्थ वस्तु की ओर केंद्रित करना ही ध्यान है.यह पतंजलि के अष्टांग योग का सातवां अंग है.
8. समाधि
शुद्ध चेतना में विलय अथवा आत्मा से जुड़ना, शब्दों से परे परम-चैतन्य की अवस्था ही समाधि कहलाती है.
अष्टांग योग का महत्व
अष्टांग योग के अभ्यास से शारीरिक, मानसिक और आत्मिक उन्नति होती है.अविद्या के नाश हो जाने से तज्जन्य अंत:करण की अपवित्रता का क्षय होता है और आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है. कुल मिलाकर अष्टांग योग मन,क्रम, शरीर और आत्मा तक पर काम करता है.