How to Identify Fake Medicine: आप जो दवा खा रहें हैं वो नकली तो नहीं, ऐसे करें असली और नकली में फर्क

Written By मनीष कुमार | Updated: Mar 06, 2023, 07:40 PM IST

How to Identify Fake Medicine: इन आसान तरीकों के जरिए आप मिनटों में पता लगा लेंगे कि जो दवाई आप इस्तेमाल कर रहें हैं वो असली है या नकली.

डीएनए हिंदी: आपको चाहे जुकाम हुआ हो या फिर कैंसर, छोटी से लेकर हर बड़ी बीमारी के लिए लोग दवाइयों (How to  Identify Fake Medicine) का प्रयोग करते हैं. भारत में दवाइयों का कारोबार करीब 50 बिलियन डॉलर यानी ₹4,089.87 करोड़ रुपये से अधिक का है. ऐसे में नक्कालों का इस बाजार में मौजूद (differentiate between original and fake medicine) होना आम बात है. कुछ दवाइयां इतनी महंगी होती है कि उनको अफोर्ड कर पाना हर किसी के बस की बात नहीं. ऐसे में कई बार उन्हीं दवाइयों की कॉपी करके कुछ बड़े फार्मा प्लयेर नकली दवाइयों को मार्किट में उतार देते हैं. अब अगर मरीज को सही दवाई ना मिले तो उसका ठीक होना तो दूर की बात वो बीमारी पड़ जाते हैं और उनकी जान तक चली जाती है. आप ये सब पढ़कर घबराह तो रहे होंगे क्योंकि विषय ही इतना गंभीर है लेकिन आपको अब परेशान होने की कोई जरूरत नहीं हैं. डीएनए हिंदी के इस आर्टिकल के जरिए अब आप आसानी से असली और नकली दवाई में फर्क कर पाएंगे. 

दवाई के पैकेट पर यूनिक कोड को ढूंढे

अगर आपने पहले कभी नोटिस ना किया हो तो आपको हम बता दें कि ओरिजनल दवाओं पर अक्सर यूनिक कोड प्रिंट किया जाता है. यूनिकोड एक ऐसी टेक्नोलॉजी है जिसमें दवा की मैन्युफैक्चरिंग डेट, सप्लायर से लेकर लोकेशन तक की सारी जानकारी मौजूद होती है. इस टेक्नोलोजी को हर प्रोडक्शन कंपनी प्रयोग करती है. एंटी-एलर्जिक, पेन रिलीफ पिल्स और एंटी-बायोटिक जैसी दवाओं के पैकेट पर भी यूनिक कोड मेंशन होता है.

SMS भेजकर प्रामाणिकता की पुष्टि करें

भारत सरकार के ड्रग टेक्निकल एडवाइजरी बोर्ड (DTAB) ने  दवाओं की प्रामाणिकता की जांच के लिए एक तकनीकी समाधान दिया है. इसके लिए उपभोक्ता को  9901099010 नंबर पर दवाई के पैकेट पर मेंशन यूनिक कोड को भेजना होगा. अगर दवाई असली होगी तो उस दवाई का उत्पादन करने वाली फार्मास्यूटिकल कंपनी का रिप्लाई आ जाएगा अन्यथा नहीं.

क्यूआर कोड बताएगा असली और नकली का फर्क

वैसे तो सरकार ने प्रोडक्ड के हर पैकेट पर यूनिक कोड को मेंशन करना अनिवार्य कर दिया है पर इसके अलावा भी जिन दवाइयों पर ये कोड नहीं होता, वहां अक्सर QR कोड जरूर होता है. आप सोच रहे होंगे कि नकली दवा बनाने वाले लोग दवाई के पैकेट का का क्यूआर कोड कॉपी भी तो कर सकते हैं. आपको बता दें कि दवाई के पैकेट पर बना QR कोड एडवांस वर्जन होने के अलावा सेंट्रल डेटाबेस एजेंसी द्वारा जारी किया जाता है. इतना ही नहीं हर दवाई के साथ यूनिक क्यूआर कोड भी बदले जाते हैं. इस तरह से दवाई के पैकेट पर मौजूद बारकोड को केवल एक बार ही यूज कर सकते हैं. इस वजह फर्जी दवाइयों के व्यापारियों या स्कैमर्स के लिए दवाइयों की नकल कर पाना मु्श्किल हो जाता है.

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दवाई की कीमत और ऑफर
अक्सर उपभोक्ता को लुभाने के लिए कंपनी समय-समय पर दवाइयों की कीमतों को कम करने या उन पर ऑफर निकालती रहती है. इसलिए हो सकता है कि आप जिस दवाई के पैकेट को 120 रुपये में खरीद रहें हो वह आपको 115 या 110 रुपये में भी मिलने लगे. अगर आपको कोई गैर प्रामाणिक वेबसाइट या दुकानदार उसी दवाई को 100 रुपये या उससे कम कीमत पर दें तो सावधान हो जाइए, हो सकता है वह दवाई नकली हो. ऐसे में आप जिस कंपनी की दवाई है वहां जाकर दवाई का मौजूदा रेट चेक करें.

पैकेजिंग में फर्क
हर एक दवाई निर्माता कंपनी के दवाई के पैकेट की डिजाइनिंग इतनी यूनिक होती है कि उसे कॉपी कर पाना काफी मुश्किल होता है. ऐसे में अगर आप किसी दवाई का रोजाना सेवन करते हैं तो उसके पैकेट को गौर से देखें और कंपनी की वेबसाइट पर मौजूद पैकेट से मिलाइए. अगर आपको दवाई के प्रिंटिंग में कोई स्पेलिंग मिस्टेक या डिजाइन में फर्क दिखता है तो सावधान हो जाइए वह दवाई नकली हो सकती है. 

अगर आपको दवाइयों के पैकेट पर बारकोड, यूनिक कोड या क्यूआर कोड नहीं दिखाई देता तो हमारी सलाह रहेगी ऐसे में उन दवाइयों को खरीदने से बचें.

(Disclaimer: हमारा लेख केवल जानकारी प्रदान करने के लिए है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें.)

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