एक महिला के लिए मां बनना उसके जीवन का सबसे खूबसूरत और भावुक पल होता है. हर महिला के लिए डिलीवरी (Pregnancy) तक का समय काफी मुश्किल भरा भी होता है, इस दौरान महिलाओं को फिजिकल और इमोशनल कई तरह के बदलावों से (Women Health) जुझना पड़ता है. वहीं कई बार गड़बड़ जीवनशैली, लापरवाही और अन्य कई कारणों की वजह से महिलाएं नॉर्मल डिलीवरी (Normal Delivery) नहीं कर पातीं, जिसके चलते उन्हें सी-सेक्शन (C Section Delivery) यानि सिजेरियन डिलीवरी का सहारा लेना पड़ता है.
हेल्थ एक्सपर्ट्स के मुताबिक, आमतौर पर महिलाएं स्वास्थ्य समस्या की वजह से सी-सेक्शन (Cesarean Delivery) का चुनाव करती हैं, लेकिन कुछ महिलाएं अब नॉर्मल डिलीवरी में होने वाले लेबर पेन को बर्दाश्त न कर पाने के डर से सी-सेक्शन डिलीवरी को चुन लेती हैं. यही वजह है कि पिछले एक दशक में सिजेरियन डिलीवरी दोगुनी बढ़ी है...
क्या कहती है रिसर्च
IIT मद्रास (IIT Madras) में ह्यूमैनिटी और सोशल साइंस डिपार्टमेंट के शोधकर्ताओं की एक रिसर्च के मुताबिक, साल 2016 से 2021 के बीच देश भर में में सी-सेक्शन यानी सिजेरियन डिलीवरी की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है. इस रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2016 में जहां सी सेक्शन के केस 17.2 प्रतिशत थे वो 2021 में बढ़कर 21.5 प्रतिशत पहुंच गए थे. इतना ही नहीं इस स्टडी में खुलासा हुआ है कि प्राइवेट अस्पतालों में ये संख्या साल 2016 में 43.1% से बढ़कर साल 2021 49.7% पहुंच गई थी.
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बता दें कि इस रिसर्च में सी सेक्शन के सबसे ज्यादा मामले छत्तीसगढ़ और तमिलनाडु के हैं और रिसर्चर्स ने इस वृद्धि का श्रेय महिलाओं की प्राथमिकताओं, उनके सामाजिक-आर्थिक स्तर और शिक्षा को दिया है.
सी-सेक्शन डिलीवरी क्या होती है
हेल्थ एक्सपर्ट्स के मुताबिक सी-सेक्शन डिलीवरी उन महिलाओं के लिए अच्छा विकल्प होता है, जिन्हें नॉर्मल डिलिवरी या नेचुरल तरीके से बच्चे के जन्म में समस्या होती है. लेकिन कई मामलों में सी सेक्शन से वहां भी डिलीवरी करा दी जाती है, जहां इसकी जरूरत भी नहीं होती है और ऐसा ज्यादातर प्राइवेट अस्पतालों में होता है. बता दें कि यह एक सर्जिकल तकनीक है, जिसमें शिशु को मां के गर्भ से बाहर निकालने के लिए मां के पेट में चीरा लगाया जाता है. इसके कई दुष्परिणाम भी सामने आते हैं. इसके अलावा सी सेक्शन डिलीवरी बेवजह के खर्च की वजह भी बनता है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, सी-सेक्शन के लिए अनुशंसित दर 10% से 15% के बीच है और यह सर्जरी तभी की जानी चाहिए, जब मां या बच्चे की जान को खतरा हो या नॉर्मल डिलीवरी से मां या बच्चे को कोई नुकसान पहुंचने का डर हो.
सिजेरियन डिलीवरी से बढ़ सकता है ये रिस्क
इसके कारण प्रेगनेंट महिला में इंफेक्शन का खतरा बढ़ सकता है.
इससे यूटरस यानी गर्भाशय में ब्लीडिंग हो सकती है.
वहीं बच्चे को इसके कारण सांस से जुड़ी समस्याएं हो सकती हैं.
इससे हाइपोग्लाइसीमिया (Hypoglycemia) का रिस्क भी बढ़ता है
Disclaimer: यह लेख केवल आपकी जानकारी के लिए है. इस पर अमल करने से पहले अपने विशेषज्ञ डॉक्टर से परामर्श लें.
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