Lungs Disease: फेफड़ों को भी लगता है शॉक, कोरोना संक्रमितों में बढ़ रहा एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम

ऋतु सिंह | Updated:Sep 26, 2022, 11:01 AM IST

कोरोना के बाद बढ़ रहा एक्‍युट रेस्पिरेटरी डिस्‍ट्रेस सिंड्रोम

Lungs Serious Disease: फेफड़ों से जुड़ी एक गंभीर बीमारी है एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम. इसमें लंग्स को शॉक लग जाता है.

डीएनए हिंदीः क्या आपको पता है कि आपके लंग्स भी शॉक में आ सकते हैं. इन दिनों कोरोना संक्रमण से ग्रस्त रहे लोगों के फेफड़े में यह बीमारी तेजी से नजर आ रही है. एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम फेफड़ों की वो बीमारी है जिसमें मरीज को सांस लेने में दिक्कत से लेकर चलने फिरने में परेशानी का सामना करना पड़ता है.  ये बीमारी कोरोनावायरस संक्रमण, सेप्सिस और कई अन्य समस्याओं की वजह से भी हो सकती है. 

कोरोनावायरस महामारी के बाद से ही गुलियन बेरी सिंड्रोम और ब्लैक फंगस का खतरा बढ़ा था लेकिन अब लॉन्ग कोविड सिम्टम्स में एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम लंग्स को और खराब कर रहा है. इस बीमारी के कारण लोगों को तमाम तरह की समस्याएं हो रही हैं. इस बीमारी में फड़े शॉक यानी  सदमें में आ जाते हैं. इस बीमारी में दिल की धड़कन भी अनियमित होती है. 

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अमेरिकन थोरैसिक सोसायटी के एक हालिया अध्‍ययन में पाया गया कि कि भले ही लोगों ने कोरोना से जीत लिया लेकिन उनके लंग्स इस सदमे से गुजर नहीं सकें हैं.  कोविड के गंभीर मामलों में एक्‍युट रेस्पिरेटरी डिस्‍ट्रेस सिंड्रोम यानी एआरडीएस लोगों में तेजी से देखा जा रहा है.

रेडियोलॉजी में रेडियोलॉजीकल सोसायटी ऑफ नॉर्थ अमेरिका की रिपोर्ट में भी यह बात सामने आई है कि जो मरीज कोविड से लंबे समय तक जूझे थे उनके फेफड़ों की स्‍थायी क्षति दिखती है. वर्ल्‍ड लंग्‍स डे पर पद्मश्री डॉ. मुकेश बत्रा ने बताया कि फेफड़े अस्‍थमा, सीओपीडी या ब्रोंकाइटिस आदि जैसी दीर्घकालिक बीमारियों के प्रति संवेदनशील हो रहे हैं. कोविड के कारण ये समस्याएं और बढ़ी हैं और अब सबसे ज्यादा खतरा एआरडीएस का है.

क्या है Acute Respiratory Distress Syndrome
एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम यानी एआरडीएस फेफड़ों से जुड़ी एक गंभीर बीमारी है. इस समस्या में फेफड़ों के अंदर मौजूद लिक्विड फेफड़े के वायुकोष में चला जाता है, जिसके कारण मरीज के फेफड़ों में मौजूद ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है और आपके ब्लड सर्कुलेशन में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है. इस समस्या के कारण आपके शरीर के सभी अंगों तक उचित मात्रा में ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाता है जिसकी वजह से ऑर्गन फेलियर का खतरा बढ़ जाता है. एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम ज्यादातर गंभीर रूप से बीमार लोगों में देखा जाता है. इस समस्या के कारण मरीज को सांस लेने में तकलीफ, खड़े होने या चलने फिरने में दिक्कत का सामना करना पड़ता है. इस बीमारी को एक्यूट लंग इंजरी या शॉक लंग के नाम से भी जाना जाता है.

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एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम के कारण 
एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम फेफड़ों में होने वाली गंभीर बीमारी है जिसे शॉक लंग भी कहा जाता है. इस समस्या में फेफड़ों के वायुमार्ग में लिक्विड इकठ्ठा हो जाता है जिसकी वजह से मरीज को सांस लेने में तकलीफ समेत फेफड़ों और शरीर से जुड़ी कई अन्य समस्या हो सकती है. यह बीमारी मुख्य रूप से सेप्सिस जैसे रोगों के कारण होती है. वैज्ञानिकों का मानना है कि सेप्सिस संक्रमण की स्थिति में शरीर के अंगों को गंभीर नुकसान पहुंचता है. यह समस्या फेफड़ों को भी गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त करती है जो कि एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम का कारण बनता है. इस समस्या के कुछ प्रमुख कारण इस प्रकार हैं.


सेप्सिस संक्रमण के कारण एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम
निमोनिया की समस्या भी एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम का कारण होती है.
ड्रग की टॉक्सिसिटी या फिर ओवरडोज की वजह से भी ARDS की समस्या हो सकती है.
प्रदूषित हवा में सांस लेने की वजह से भी एआरडीएस का खतरा रहता है.
सिर या छाती पर लगी गंभीर चोट की वजह से भी यह स्थिति पैदा हो सकती है.
कोरोनावायरस में भी फेफड़ों को गंभीर नुकसान पहुंचता है जिसकी वजह से कोविड संक्रमित मरीजों में यह समस्या देखी गयी है.

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एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम Symptoms
एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम की समस्या में फेफड़ों को गंभीर नुकसान पहुंचता है. फेफड़ों के वायुमार्ग में लिक्विड इकठ्ठा होने की वजह से मरीज को सांस लेने में तकलीफ, हांफना, दिल की धड़कन का अनियमित होना समेत कई अन्य समस्याएं होती हैं. इस बीमारी में दिखने वाले कुछ प्रमुख लक्षण इस प्रकार से हैं.

एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम Treatment
एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम की समस्या ज्यादातर लोगों में गंभीर बीमारी से ग्रसित होने की स्थिति में होती है. आमतौर पर यह समस्या अस्पताल में भर्ती लोगों में देखी गयी है. इस बीमारी का पता चलने पर डॉक्टर हायर एंटीबायोटिक्स और बीपी को संतुलित करने वाली दवाओं का इस्तेमाल करते हैं. 55 साल से अधिक उम्र वाले लोग जिन्हें डायबिटीज, किडनी की बीमारी, लिवर से जुड़ी समस्या या अस्थमा व कैंसर है उन्हें एक्सपर्ट पल्मनोलॉजिस्ट चिकित्सक से समय-समय पर सलाह जरूर लेनी चाहिए.

Disclaimer: हमारा लेख केवल जानकारी प्रदान करने के लिए है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें.) 

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