डीएनए हिंदी : वैसे तो कई फल और सब्जियां हैं जो सेहत के लिए वरदान से कम नहीं हैं, इनके सेवन से कई बीमारियां दूर रहती हैं. इनमें केला, सेब, संतरा, आम और अंगूर जैसे फल शामिल (Healthy Fruits) हैं. लेकिन, आज हम आपको कुछ ऐसे पहाड़ी फल के बारे में बताने वाले हैं, जो सेहत के लिए किसी वरदान से कम नहीं हैं. हालांकि ये फल बाजार में इतनी आसानी से नहीं मिलते. इन फलों को इस्तेमाल सालों से आयुर्वेद में कई बीमारियों के इलाज में किया जाता रहा है. बता दें कि इन (Pahadi Fruits) फलों में मौजूद पोषक तत्व कई बीमारियों में रामबाण औषधी का काम करते हैं. आज हम आपको अपने इस (Uttarakhand Local Pahadi Fruits) लेख के माध्यम से इन्हीं में से कुछ फलों के बारे में बता रहे हैं. आइए जानते हैं इनके बारे में...
माल्टा फल
माल्टा नींबू प्रजाति का एक खुशबूदार एंटी ऑक्सीडेंट और शक्तिवर्धक फल है, जिसे पहाड़ी फलों का राजा माना जाता है. बता दें कि भारत में इसकी सबसे अधिक पैदावार उत्तराखंड में मानी जाती है और वहां बनने वाले विशेष प्रकार की ‘चटनी’में इसका खूब इस्तेमाल किया जाता है. इसके सेवन से त्वचा चमकदार रहती है और दिल भी दुरुस्त रहता है. इससे बाल मजबूत होते हैं और गुर्दे की पथरी दूर होती है. इसलिए पथरी के रोगियों को माल्टा का जूस पीने के सलाह दी जाती है.यह भूख बढ़ाने, कफ कम करने, खांसी, जुकाम में भी कारगर होता है.
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पहाड़ी नींबू या चूख
पहाड़ी नींबू जिसे कुमाऊं में चूख के नाम से भी जाना जाता है. बता दें कि सर्दियों में चूख की डिमांड काफी बढ़ जाती है. इसके रस को पकाकर गाढ़ा करके स्टोर भी किया जाता है और फिर औषधी या भोजन के साथ चटनी के रूप में काम में लिया जाता है. बता दें कि इसमें पर्याप्त मात्रा में विटामिन सी, फाइबर, मैग्नीशियम, पोटेशियम पाया जाता है, जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के साथ-साथ पेट, हार्ट और त्वचा संबंधी बीमारियों के लिए बेहद फायदेमंद होता है.
काफल
काफल भी एक सेहतमंद पहाड़ी फल है और यह मुख्य रूप से उत्तराखंड में मिलता है. बता दें कि काफल एक छोटे आकार का बेरी जैसा फल है, जो गोल और लाल, गुलाबी रंग का होता है. काफल पेट की बीामरियों का रामबाण माना जाता है और पेट से जुड़ी कई बीमारियों के इलाज के लिए फायदेमंद है. इसके अलावा डायबिटीज, ब्लड प्रेशर के मरीजों के लिए भी यह फयदेमंद माना जाता है. बता दें कि यह फल काफी मंहगा भी होता है और बाजारों में इसकी कीमत 400 से 500 रुपये प्रति किलो तक होती है.
हिसालू
आपको उत्तराखंड की पहाड़ी वादियों में हिसालू भी मिल जाएगा. बता दें कि पहाड़ की रूखी-सूखी धरती पर छोटी झाड़ियों में उगने वाला यह फल या बेरी जंगली रसदार फल है, जो देखने में आकर्षित तो लगता ही है साथ ही अपने औषधीय तत्वों के लिए भी विख्यात है. बता दें कि हिसालू दो प्रकार के होते हैं जो पीला और और काले रंग का होता है. वहीं पीले रंग का हिसालू आम है लेकिन काले रंग का हिसालू इतना आम नहीं है. इसमें मौजूद एंटी ऑक्सीडेंट की वजह से यह शरीर के लिए काफी गुणकारी माना जाता है. यह बुखार, पेट दर्द, खांसी एवं गले के दर्द में बड़ा ही फायदेमंद होता है. इतना ही नहीं यह किडनी के मरीजों के लिए यह दवा का काम करता है.
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घिंघारू
बता दें कि यह पहाड़ी फल कुमाऊनी में घिंगारु, गढ़वाली में घिंघरु और नेपाली में घंगारू के नाम से मशहूर है. यह एक ऐसा औषधीय पौधा है, जिसकी जड़ से लेकर फल, फूल, पत्तियां और टहनियां सभी सेहत के लिए काफी फायदेमंद मानी जाती हैं. यह मस्तिष्क में रक्त के प्रवाह को सुचारू करने में सक्षम है, जिससे स्मरण शक्ति को बढ़ावा मिलता है. यह खूनी दस्त रोकने में बेहद असरदार माना जाता है. इतना ही नहीं घिंघारू के औषधीय गुण रक्त से हानिकारक कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को कम करने में मदद करते हैं.
(Disclaimer: यह लेख केवल आपकी जानकारी के लिए है. इस पर अमल करने से पहले अपने विशेषज्ञ डॉक्टर से परामर्श लें.)
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