डीएनए हिंदीः 23 जनवरी, 2024 को, DTE और दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) ने पत्रिका के नए अध्ययन के कवरेज पर चर्चा करने के लिए एक वेबिनार का आयोजित कर तेजी से उच्च उपज देने वाली चावल और गेहूं की किस्मों को पर चर्चा की और जो बात सामने आई वह बेहद चौकाने वाली है.
आईसीएआर के नेतृत्व वाले अध्ययन ने इन आधुनिक अनाजों के खाद्य मूल्य की जांच की है और रिपोर्ट दी है कि उच्च उपज वाली किस्मों को विकसित करने पर केंद्रित प्रजनन कार्यक्रमों ने चावल और गेहूं के पोषक तत्वों को इस हद तक बदल दिया है कि उनका आहार और पोषण मूल्य कम ही नहीं, विषाक्तता से भरा भी है.
डीटीई की रिपोर्ट के अनुसार , पिछले 50 वर्षों में, चावल में जिंक और आयरन जैसे आवश्यक पोषक तत्वों की सांद्रता में क्रमशः 33 प्रतिशत और 27 प्रतिशत और गेहूं में 30 प्रतिशत और 19 प्रतिशत की कमी आई है.
वेबिनार में कहा कि 1980 के दशक के बाद, प्रजनकों ने अपना ध्यान ऐसी किस्मों को विकसित करने पर केंद्रित कर दिया जो कीटों और बीमारियों के प्रति प्रतिरोधी हों और लवणता, नमी और सूखे जैसे तनावों को सहन कर सकें.
जमीन से पोषक तत्व नहीं ले पा रहे पौधे
“उन्हें यह सोचने का मौका नहीं मिला कि पौधे मिट्टी से पोषक तत्व ले रहे हैं या नहीं. इसलिए, समय के साथ, हम जो देख रहे हैं वह यह है कि पौधों ने मिट्टी से पोषक तत्व लेने की अपनी क्षमता खो दी है, ”उन्होंने कहा.
2023 का अध्ययन आईसीएआर और बिधान चंद्र कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए 2021 के अध्ययन का विस्तार है. अध्ययन में अनाज पर निर्भर आबादी में जिंक और आयरन की कमी के कारणों पर गौर किया गया. जब अधिक उपज देने वाले चावल और गेहूं की किस्मों का परीक्षण किया गया, तो अनाज में जस्ता और लोहे का घनत्व कम हो गया.
पिछले 50 साल में इनकी फूड वैल्यू में 45 प्रतिशत तक गिरावट आई है. माना जा रहा है कि इसकी दर से अगर चावल और गेहूं की क्वालिटी में गिरावट आती रही तो 2040 तक देश में यह इंसानों के उपभोग के लिए बेकार हो जाएगा. अध्ययन में यह भी पता चला कि चावल में जहरीले तत्व आर्सेनिक की मात्रा 1,493 फीसदी बढ़ गई है.
(Disclaimer: यह लेख केवल आपकी जानकारी के लिए है. इस पर अमल करने से पहले अपने डॉक्टर से परामर्श लें.)
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