Shocking News: 'मौत का घर' हैं देश के टॉप हॉस्पिटल, ICMR की जांच में मिले डेडली वायरस के 'सुपरबग्स'

कुलदीप पंवार | Updated:Sep 11, 2024, 08:30 PM IST

Shocking News: भारतीय चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (ICMR) की एक नई रिपोर्ट सामने आई है, जो देश के 21 टॉप अस्पतालों की जांच पर आधारित है. इन अस्पतालों में जानलेवा सुपरबग्स की मौजूदगी ने सभी को चौंका दिया है.

Shocking News: हम लोग गंभीर बीमारी की स्थिति में यदि अस्पताल में भर्ती होना पड़े तो आमतौर पर टॉप अस्पतालों को तरजीह देते हैं. इसके पीछे हम लोगों के मन में इन अस्पतालों के चमकते-दमकते परिसर के कीटाणुरहित होने की सोच मुख्य कारण होती है. लेकिन अब एक नई रिपोर्ट सामने आई है, जिसे पढ़ने के बाद शायद आप खौफजदा हो जाएंगे. दरअसल भारतीय चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (ICMR) ने दिल्ली से चेन्नई तक देश के टॉप 21 अस्पतालों मे एक जांच की है. इस जांच में ऐसी बातें सामने आई हैं, जो आपको चौंका सकती हैं. कीटाणुरहित चमक-दमक वाले इन अस्पतालों में ऐसे घातक सुपरबग्स (वायरस के ज्यादा खतरनाक वैरिएंट्स) की मौजूदगी देखी गई है, जो वहां भर्ती मरीजों ही नहीं बल्कि उनसे मिलने के लिए आने वाले लोगों के लिए भी जानलेवा साबित हो सकते हैं. ये सुपरबग्स वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) की तरफ से 'डेडली वायरस' के तौर पर क्लासीफाइड हैं, जिससे इनके खतरनाक होने का अंदाजा लगाया जा सकता है.

मरीजों के सैंपल में मिले हैं ये सुपरबग्स

ICMR की रिपोर्ट में दावा किया गया है. इन क्लासीफाइड सुपरबग्स में क्लेबसिएला न्यूमोनिया, एस्चेरिचिया कोलाई0 जैसे डेडली वायरस शामिल हैं. ये सुपरबग्स मरीजों के खून, यूरीन या अन्य तरल पदार्थों के उन सैंपल में मिले हैं, जो OPD, वार्ड और ICU से जुटाए गए थे. 

नामी-गिरामी अस्पताल भी हैं शामिल

ICMR की इस जांच के दायरे में जो अस्पताल शामिल किए गए हैं, उनमें कई बेहद नामी-गिरामी हैं. इनमें Delhi AIIMS, PGI चंडीगढ़, अपोलो अस्पताल चेन्नई और दिल्ली के गंगाराम अस्पताल जैसे अस्पताल शामिल हैं. ICMR के खुलासे के बाद इन अस्पतालों के प्रबंधन में हड़कंप मचा हुआ है. इन सभी अस्पतालों को सुपरबग्स का प्रसार रोकने वाली दवाओं के बेहतर मैनेजमेंट और जीवाणु अपशिष्ट के निस्तारण में सख्त प्रोटोकॉल के पालन की सलाह दी गई है.

जान लीजिए क्या होते हैं सुपरबग्स

सुपरबग्स अमूमन ऐसे बैक्टीरिया, वायरस, फंगी या परजीवी के स्ट्रेन यानी एडवांस वैरिएंट कहे जाते हैं, जिन पर एंटीबायोटिक दवाएं बेअसर हो चुकी हैं. एंटीबायोटिक दवाओं के अंधाधुंध उपयोग के कारण इन वैरिएंट में इनके खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता बन चुकी होती है.इनमें कुछ एंटीमाइक्रोबियल रजिस्टेंस (AMR) बन जाते हैं. इसका एक उदाहरण पशु पालन के दौरान दवाओं के अंधाधुंध उपयोग से इंसानों में मौजूद बैक्टीरिया आदि का सुपरबग वैरिएंट बनना. दूसरा तरीका फार्मा कंपनियों या अस्पतालों के मेडिकल वेस्ट को सही ट्रीटमेंट के बिना डंप करना. इससे भी रजिस्टेंस सुपरबग्स बनाता है. एक्सपर्ट्स इसे जेनेटिक कैपिटलिज्म कहते हैं, जो पहले एक प्राकृतिक घटना होती थी, लेकिन अब दवाओं के अंधाधुंध उपयोग ने इसे खतरनाक बना दिया है.

कैंसर से भी बड़ी महामारी बनने जा रहे हैं सुपरबग्स

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) ने इस साल की शुरुआत में एक रिपोर्ट पेश की थी. इस रिपोर्ट में दावा किया गया था कि साल 2050 तक सुपरबग्स कैंसर से भी बड़ी महामारी बन सकते हैं. रिपोर्ट में सुपरबग्स के प्रत्यक्ष आर्थिक परिणाम 2030 के अंत तक लगभग 3.4 ट्रिलियन डॉलर प्रति वर्ष होंगे. इसके अलावा, 24 मिलियन लोग चरम गरीबी में धकेले जा सकते हैं.

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