डीएनए हिंदीः श्रद्धा वॉल्कर मर्डर केस में अपराधी आफताब से सच्चाई उगलवाने के लिए नार्को डिसेप्शन डिटेक्शन टेस्ट का सहारा लिया गया है. इस टेस्ट में तीन तरह की प्रक्रियाओं यानी टेस्ट होते हैं.
आपराधिक मामलों में सबूत और सच्चाई जानने के लिए नार्को टेस्ट किए जाने के बारे में तो आपने सुना ही होगा लेकिन क्या आपको पता है कि इसे टेस्ट को करने से पहले या बाद में क्या-क्या चीजें होती हैं. जैसे टेस्ट करने को लेकर कानूनी प्रॉसेस से लेकर शारीरिक दिक्कतें तक क्या’क्या होता है, चलिए आज आपको बताएं. नार्को टेस्ट क्या है और कितने प्रकार का होता है और ये कितना मददगार होता है, साथ ही इसे करने के बाद अपराधी पर क्या असर होता है आदि. 1 दिसंबर 2022 को आफताब पूनावाला का प्री नार्को टेस्ट हुआ और 2 दिसंबर को पोस्ट नर्को टेस्ट हुआ है.
नार्को टेस्ट क्या होता है? (What is Narco Test)
नार्को टेस्ट (Narco Test) को ट्रुथ सीरम के रूप में भी जाना जाता है. इसका उपयोग पहले महत्वपूर्ण मामलों को सुलझाने के लिए किया गया है. इस टेस्ट में एक दवा (जैसे सोडियम पेंटोथल, स्कोपोलामाइन और सोडियम अमाइटल) को शरीर की शिराओं में दिया जाता है. एनेस्थीसिया के जरिये इसे लेने वाले व्यक्ति को विभिन्न चरणों में प्रवेश करने का कारण बनता है और उसकी चैतन्यता कम होती जाती है. इस दवा को लेने के बाद शख्स सम्मोहक अवस्था चला जाता है. वह व्यक्ति कम संकोची हो जाता है और जानकारी प्रकट करने की अधिक संभावना होती है, जो आमतौर पर सचेत अवस्था में सामने नहीं आ पाती है.
NCBI के अनुसार, नार्को टेस्ट एक डिसेप्शन डिटेक्शन टेस्ट (Deception Detection Test) है, जिस कैटेगरी में पॉलीग्राफ और ब्रेन-मैपिंग टेस्ट भी आते हैं. अपराध से जुड़ी सच्चाई और सबूतों को ढूंढने में नार्को परीक्षण काफी मदद कर सकता है.
नार्को टेस्ट से पहले अपराधी की सहमति जरूरी
नार्को टेस्ट (Narco Test) कराने से पहले अपराधी की सहमति भी जरूरी होती है. सुप्रीम कोर्ट के अनुसार नार्को एनालिसिस, ब्रेन मैपिंग और पालीग्राफ टेस्ट किसी भी अपराधी की सहमति के बिना नहीं किए जा सकते हैं. बता दें कि नार्को टेस्ट के दौरान दिए गए बयान अदालत में प्राथमिक साक्ष्य के रूप में स्वीकार नहीं किए जाते हैं. जब अदालत को कुछ परिस्थितियों में लगता है कि मामले के तथ्य और प्रकृति इसकी अनुमति दे रहे हैं, इस टेस्ट की अनुमति दी जाती है.
नार्को टेस्ट से पहले होता है फिटनेस टेस्ट
नार्को टेस्ट से पहले अपराधी का फिटनेस टेस्ट होता है और इसमें लंग्स, हार्ट जैसे प्री-एनेस्थिसिएटिक टेस्ट होते हैं. नार्को टेस्ट के दौरान व्यक्ति की हिप्नोटिक स्टेज को मॉनिटर करने के लिए कुछ डिवाइस का इस्तेमाल किया जाता है. इंजेक्शन वाले पदार्थ की डोज व्यक्ति के लिंग, आयु, स्वास्थ्य और शारीरिक स्थिति के अनुसार तय होती है. नार्को टेस्ट की प्रक्रिया के दौरान, नाड़ी और रक्तचाप की लगातार निगरानी की जाती है. अगर ब्लड प्रेशर या पल्स गिर जाता है तो आरोपी को अस्थाई तौर पर आक्सीजन भी दी जाती है.
आरोपी से अर्धचेतन अवस्था में सच उगलवाने के प्रयास
नार्को टेस्ट में अपराधी के नर्वस सिस्टम में इंजेक्शन के जरिए दवा देकर उसे अर्धचेतन अवस्था में लाया जाता है. अर्धचेतन अवस्था में अपराधी बिलकुल ऐसे होता है जैसे सम्माेहन में होता है. जांच अधिकारी अपराधी को घटना के संबंध में इस दौरान उससे सच उगलवाने का प्रयास किया जाता है.
आरोपी के खुलासे की होती है वीडियो रिकार्डिंग
जांच एजेंसियों द्वारा साझा किए गए सवालों के आधार पर आरोपी व्यक्ति से डाक्टर पूछताछ करते हैं. इस चरण के दौरान किए गए खुलासे की वीडियो रिकार्डिंग भी की जाती है. खुलासे का उपयोग साक्ष्य एकत्र करने की प्रक्रिया में विशेषज्ञ द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट का उपयोग किया जाता है. कोर्ट के आदेश के बाद सरकारी अस्पताल में यह प्रक्रिया की जाती है.
आरोपी को पूरी प्रक्रिया की दी जाती है जानकारी
फारेंसिक साइंस लेबोरेटरी के अधिकारियों के मुताबिक, टेस्ट के दौरान पहले जांचकर्ता को लैबोरेटरी में भेजा जाता है. जहां उसे विस्तार से जानकारी दी जाती है. एक अधिकारी ने कहा कि इससे फिर मनोवैज्ञानिक के पास जांच अधिकारी (आईओ) के साथ एक सत्र होता है. लैबोरेटरी के विशेषज्ञ आरोपी के साथ बातचीत करते हैं, जहां उसे टेस्ट की प्रक्रिया के बारे में अवगत कराया जाता है क्योंकि इसके लिए उसकी सहमति अनिवार्य है. जब मनोवैज्ञानिक संतुष्ट हो जाते हैं कि आरोपी प्रक्रिया को पूरी तरह समझ गया है, तो उसकी डाक्टरी जांच की जाती है. उसके बाद प्रक्रिया शुरू होती है. साथ ही फोटोग्राफी टीम को भी लैबोरेटरी से भेजा जाता है.
नार्को टेस्ट के साइड इफेक्ट
नार्को टेस्ट से अपराधी में अधीनता का भाव पैदा करता है और इससे चिड़चिड़ापन, चिंता जैसी मानसिक दिक्कतें होती हैं. कुछ मामलों में नार्को टेस्ट के बाद लंबे समय तक एंग्जायटी और कमजोर याददाश्त जैसी चीजें भी देखने को मिलती है. कई बार हाई डोज के कारण रेस्पिरेटरी और हार्ट पेशेंट का ब्लड प्रेशर बहुत ज्यादा गिर सकता है, जिसके कारण सांस लेना मुश्किल हो सकता है और कोमा या मृत्यु जैसी स्थिति पैदा हो सकती है. इसलिए ही नार्को टेस्ट से पहले व्यक्ति का फिटनेस टेस्ट किया जाता है.
(Disclaimer: हमारा लेख केवल जानकारी प्रदान करने के लिए है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें.)
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