Autistic Child:ऑटिज़्म पीड़ित बच्चों के साथ पेरेंट्स को रखना चाहिए ऐसा व्यवहार, लीजिए आसान टिप्स

Written By सुमन अग्रवाल | Updated: Jul 14, 2022, 11:49 AM IST

Autistic बच्चों को सम्भालना पेरेंट्स के लिए भी चैलेंजिंग है लेकिन कुछ बातों का खयाल रखना पेरेंट्स के लिए भी जरूरी है. आईए जानते हैं ऐसे बच्चों के लक्षण कैसे होते हैं और कैसे उन्हें सम्भालें?

डीएनए हिंदी: ऑटिज्म या ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (Autism) कोई बीमारी नहीं है बल्कि एक डेवलपमेंटल डिसेबिलिटी है जो किसी भी व्यक्ति में हो सकती है. अगर कोई ऑटिस्टिक व्यवहार करने वाले व्यक्ति को समझना थोड़ा मुश्किल होता है क्योंकि वे खुद को व्यक्त करने में अक्षम रहते हैं.ऑटिस्टिक बच्चों के अपना  जीवन जीना जितना चुनौतीपूर्ण होता है उतना ही उनके माता पिता के लिए भी होता है. आज हम ऐसे बच्चों के पेरेंट्स के लिए कुछ टिप्स लेकर आए हैं, जिन्हें अपनाकर वे बच्चों के साथ साथ अपना भी खयाल रख सकते हैं. 


क्या होता है ऑटिज्म (What is Autism in Hindi) 

यह कोई बीमारी नहीं है बस एक शारीरिक और मानसिक डिसेबिलिटी है. जिन बच्चों में यह डिसेबिलिटी होती है उनका विकास कहीं रुक सा जाता है. वे समाज के साथ खुद को ताल मिलाकर नहीं चल पाते हैं.वे सामान्य रूप से शब्दों या कार्यों के माध्यम से खुद को व्यक्त नहीं कर सकते हैं और अक्सर असामान्य रेपेटिटिव बेहवियर्स विकसित करते हैं. इसे ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर के रूप में भी जाना जाता है.ऑटिज्म को एक न्यूरो बिहेवियरल कंडीशन के रूप में भी समझा जा सकता है. ऐसे बच्चे अपने दिमाग तक मन की बात नहीं पहुंचा पाते हैं. 

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लक्षण (Symptoms of Autistic child) 

  • Autism वाले बच्चे इंसानों को भी वस्तुओं की तरह देखते हैं 
  • वे खुद को किसी के सामने व्यक्त नहीं कर पाते 
  • वे एक चीज करते हैं तो वही करते रह जाते हैं 
  • ये बच्चे ज्यादा मुस्कराते नहीं है या सिर्फ मुस्कुराते हैं जिसमें वह दिलचस्पी रखते हैं
  • ऑटिस्टिक बच्चे ज्यादातर अपने में रहना पसंद करते हैं और आमतौर पर दोस्त बनाने में रुचि नहीं रखते
  • वे लोगों से प्यार करते हैं लेकिन उसका इजहार नहीं कर पाते 
  • वे समाज के साथ ताल से ताल मिलाकर नहीं चल पाते हैं.
  • उनके लिए यह जानना मुश्किल होता है कि अन्य लोग क्या सोचते हैं या महसूस करते हैं 
  • वे अपने माता-पिता के बिहेवियर से भी कई बार परेशान हो जाते हैं, उन्हें अकेले रहना अच्छा लगता है 
  • एक ही बात को रिपीट करना और छोटी बात में नाराज हो जाना 

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क्या होती है उम्र 

वैसे तो 3 साल की उम्र से पहले या उससे भी पहले अगर बच्चे का विकास बंद हो जाए या फिर 12 महीने बाद भी आप चेक कर सकते हैं कि उसकी प्रतिक्रियाएं कैसी हैं 

9 महीने की उम्र के बाद भी अगर किसी बात पर वह कोई प्रतिक्रिया ना दे तो चेक करें. शिशु के चेहरे के भाव जैसे उदास, खुश, हैरान और गुस्से में भी कमजोर होते हैं, ऐसे में यह लक्षण हो सकते हैं.

सामाजिक रूप से इंटरैक्टिव गतिविधियों के साथ कमजोर इशारों जैसे जन्म के 1 वर्ष के बाद भी साधारण इंटरेक्टिव गेम खेलना

15-18 महीने की उम्र तक अपने आस-पास होने वाली किसी भी चीज़ के बारे में उंगलियों को इंगित करने या उसके बारे में उत्सुकता रखने जैसी सामाजिक बातचीत में कोई दिलचस्पी नहीं है

24-36 की उम्र तक दूसरों की भावनाओं और इमोशंस को समझने में परेशानी

30-60 महीने की उम्र तक भी दूसरों के साथ खेल खेलने में बहुत कम या कोई दिलचस्पी नहीं दिखाना

पेरेंट्स के लिए कुछ टिप्स (Tips for Parents) 

पेरेंट्स के लिए बच्चों को समझना या उनकी मदद करना काफी चुनौतीपूर्ण हो जाता है. ऐसे में वे खुद शारीरिक ,भावनात्मक और वित्तीय परेशानियों से लड़ते हैं. एक तो बच्चे की शारीरिक परेशानी से माता पिता दुखी होते हैं और खुद भी मानसिक रूप से कमजोर महसूस करते हैं. उपर से इसके इलाज में काफी खर्च होता है जिसकी वजह से वे आर्थिक रूप से भी परेशान होते हैं 

क्या हो सकते हैं उपाय (Treatment for Autistic Child) 

थेरेपी और काउंसलिंग

ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों की देखभाल करने वाले बच्चों के साथ काउंसलिंग सेशन में भाग ले सकते हैं. जहां उन्हें अलग-अलग तरह की भावनाओं के साथ डील करना सिखाया जाता है, देखभाल करने वाले के साथ कम्युनिकेशन गैप को भी कम करने में मदद करेगा. दवाइयों का प्रयोग एक सीमित अवधि के लिए ही डिप्रेशन और एंग्जाइटी को नियंत्रित कर सकता है इसलिए काउंसलिंग जैसी गतिविधियों में भाग लेने का प्रयास करें


सपोर्ट ग्रुप का हिस्सा बनें

कई ऐसे छोटे-छोटे समूह हैं, जो ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों की देखभाल करने वाले व्यक्ति को उनके साथ सही तरीके से डील करना सिखाते हैं, ऐसे में इन ग्रुप्स के साथ जुड़ने से अंदर के डर को खत्म करने में मदद मिलेगी और आप इसे पूरी तरह स्वीकार कर पाएंगी वहीं ये ग्रुप्स समस्या को पूरी तरह समझाने का भी प्रयास करते हैं।

स्वीकार करना है सबसे जरूरी

अक्सर जिस परिवार के बच्चे किसी समस्या से पीड़ित होते हैं, तो परिवार के सदस्य खुद को सामाजिक रुप से थोड़ा अलग कर लेते हैं। यदि कोई सामने से सहानुभूति दिखाएं, तो वे यह स्वीकार नहीं कर पाते. ऐसे में चीजों को स्वीकार करना सीखें और जरूरत पड़ने पर लोगों से मदद मांगे. यह आपको परिस्थिति को ठीक तरह समझने में मदद करेगा और एक बेहतर केयरटेकर बनने के लिए प्रेरित करेगा

(Disclaimer: हमारा लेख केवल जानकारी प्रदान करने के लिए है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें.) 


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