डीएनए हिंदी: महिलाओं के गर्भाशय (Uterus) में कुछ ऐसी गांठें मौजूद होती हैं तो पहले तकलीफ नहीं देती हैं लेकिन डिलीवरी के समय उसमें दिक्कत आती है. यूट्रस के अंदर बनने वाली मांसपेशियों के ट्यूमर को यूटेराइन फाइब्रॉयड्स (Uterine Fibroid) कहते हैं. ज्यादातर यह समस्या डिलीवरी के समय देखने को मिलती है. ये गांठें कई बार कोई तकलीफ नहीं देती हैं और केवल शरीर में ऐसे ही पड़ी रहती हैं लेकिन कभी कभी यह बहुत ही तकलीफ देह बन जाती है.
मेडिकल साइंस बताता है कि यह एक जगह रहें जरूरी नहीं है यह यूट्रस में इधर इधर चिपकी रहती हैं, लेकिन इनका इलाज आवश्यक है क्योंकि इनसे कई तरह की और बीमारियां जन्म लेती हैं.
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लक्षण (Symptoms of Fibroids)
फाइब्रॉयड के कोई पुख्ता लक्षण नहीं होते हैं लेकिन जब पीरियड्स (Periods) में बहुत ज्यादा पेन हो, लोअर बैक पेन, पेट में क्रैम्स, बार बार यूरिन आना, ब्लिडिंग (Bleeding) बहुत ज्यादा दिनों तक होना, कब्ज (Constipation) की शिकायत रहना, यौन संबंध (Sexual Relation) बनाने में दिक्कत आना ऐसे लक्षण दिखते ही तुरंत जांच करवानी चाहिए. ये गांठें छोटी बड़ी दोनों आकार की होती हैं और भारी भी होती हैं
फाइब्रॉयड्स का पता कैसे लगाएं (How to diagnose Fibroids)
अल्ट्रासाउंड (Ultrasound) के जरिए ही इसका पता लगाया जा सकता है.शुरुआती दौर में इसके लक्षण सामने नहीं आते हैं लेकिन प्रेग्नेंसी के दौरान या डिलीवरी के वक्त बहुत ज्यादा पेन होता है, इसलिए पहले ही थोड़ बहुत संकेत मिलते ही इसकी जांच करवा लेनी चाहिए. फाइब्रॉयडस की गांठे कैंसर (Non Cancerous) रहित होती हैं, अगर प्रेगनेंसी में किसी वजह से सर्जरी करनी पड़ जाए तो ज्यादा ब्लीडिंग होने लगती है, वहीं कुछ महिलाओं को इसकी वजह से एनीमिया भी हो जाता है.
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कारण (Causes of Fibroids)
महिलाओं के शरीर में मौजूद सेक्स हॉर्मोन प्रोजेस्टरॉन और एस्ट्रोजेन (Hormones) की अधिक मात्रा इस समस्या को जन्म देती है. इसके कारण कम उम्र यानी युवावस्था में फाइब्रॉयड होने की आशंका सबसे ज्यादा होती है क्योंकि मेनोपॉज के बाद महिला के शरीर में इन दोनों हॉर्मोन्स की मात्रा घट जाती है.
मिडिलएज में आने के बाद महिलाओं में फाइब्रॉयड का आकार सिकुड़कर अपने आप छोटा होने लगता है और कुछ समय बाद खत्म हो जाता है. वहीं फाइब्रॉयड की समस्या अनुवांशिक भी होती है. अगर आपके परिवार में किसी को यह समस्या रही है तो आपको बेहद सतर्क रहना चाहिए
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लाइफस्टाइल में बदलाव
- अपनी लाइफस्टाइल में थोड़ा सा बदलाव करके आप इस समस्या से निजात पा सकते हैं.
- खान-पान पर ध्यान, हेल्दी खाना ही महिलाओं के लिए बेहतर है
- रोजाना एक्सरसाइज करना बहुत जरूरी है.
- नशीले पदार्थों का सेवन कम करें
- जितना हो सके वजन और बीपी को कंट्रोल में रखें
- फल सब्जियों का सेवन खूब करें
- तनाव न लें और खुद को शांत रखें इससे हॉरमोनल डिसबैलेंस नहीं होगा
- शरीर में एस्ट्रोजन का स्तर बढ़ने से फाइब्रॉयड बढ़ जाता है
- कैफीन की चीजों का सेवन कम करें
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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