पिता ने Will नहीं लिखा तो मौत के बाद बेटियों को मिलेगी सारी Property: Supreme Court

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Jan 21, 2022, 02:58 PM IST

सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक़ अगर किसी हिन्दू व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो उसकी संपत्ति पर उसकी बेटी का हक़ बाक़ी किसी अन्य रिश्तेदार से पहले होगा.

डीएनए हिंदी : गुरूवार को दिए गए एक महत्वपूर्ण फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का कहना है कि हिन्दू पिता अगर बिना किसी वसीयत के गुज़र जाते हैं तो उनकी संपत्ति पर बेटियों का भी हक़ होगा. इन संपत्ति में पिता द्वारा स्व-अर्जित  के साथ-साथ पैतृक  संपत्ति भी शामिल होगी. यह जजमेंट मद्रास हाई कोर्ट के एक फ़ैसले के ख़िलाफ़ की गयी अपील पर आया है. मद्रास हाई कोर्ट ने जो फ़ैसला दिया था उसका लेना देना हिन्दू महिलाओं और विधवाओं के संपत्ति अधिकार से था.

बेटियों को है पूरा हक़

देश की सर्वोच्च अदालत (Supreme Court) के मुताबिक़ अगर किसी हिन्दू व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो उसकी संपत्ति पर उसकी बेटी का हक़ बाक़ी किसी अन्य रिश्तेदार से पहले होगा. इन रिश्तेदारों में मृतक के भाई के बच्चे शामिल हैं. यह फ़ैसला न्यायाधीश एस अब्दुल नज़ीर और कृष्ण मुरारी की बेंच ने दिया है. बेंच के लिए 51 पेजों का फ़ैसला लिखते हुए न्यायाधीश मुरारी ने यह स्पष्ट किया कि बिना वसीयत मृत्यु के बाद पिता की संपत्ति वंशगत (Inheritance)  आधार पर बेटी के नाम होगी न कि उत्तरजीविता या survivor-ship  के नाम पर पिता के भाई के बेटों के नाम.

हिन्दू स्त्रियों की अधिकार सीमा का विस्तार

उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि न्यायपालिका का उद्देश्य हिन्दू स्त्रियों की उन अधिकार सीमाओं का विस्तार करना है जिनकी वजह से वे पहले पिता की संपत्ति पर पूरा हक़ नहीं जमा पाती थीं. सेक्शन 14 (I ) औरतों के सीमित अधिकार को पूर्ण अधिकार में बदलता है और  Hindu Succession Act, 1956 के सेक्शन 15 के साथ अनुरूपता में है.

अगर किसी हिन्दू स्त्री का निधन बिना किसी संतान और वसीयत के होता है तो पिता या माँ से अर्जित संपत्ति उसके पिता के उत्तराधिकारियों को मिलेगी. वहीं पति या श्वसुर से प्राप्त संपत्ति पति के उत्तराधिकारियों को हासिल होगी. इसका मुख्य उद्देश्य संपत्ति का अपने स्रोत तक वापस लौट जाना है.

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के इस फैसले ने मार्च 1994 में ट्रायल कोर्ट के द्वारा पास किए गए और जनवरी 2009 में मद्रास हाई कोर्ट के द्वारा सही माने गए फ़ैसले को ख़ारिज कर दिया है. 

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