पंजाब चुनाव: कांग्रेस में कलह, अमरिंदर की पुरानी पार्टी से नाराजगी, क्या बीजेपी को हो सकता है फायदा?

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Nov 17, 2021, 04:19 PM IST

पंजाब में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों पर अब सबकी नजर है. कांग्रेस जहां अंतरकलह से जूझ रही है वहीं बीजेपी को सहयोगी पार्टी की तलाश है.

डीएनए हिंदी: पंजाब में अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. राजनीतिक पार्टियों ने अभी से चुनावी बिसात बिछानी शुरू कर दी है. कांग्रेस पार्टी में जहां अंदरुनी कलह मची हुई है वहीं भारतीय जनता पार्टी(BJP) को एक मजबूत सहयोगी की तलाश है. कभी भारतीय जनता पार्टी के सहयोगी रहे अकाली दल ने तीनों नए कृषि कानूनों को किसान विरोधी बताते हुए 17 सितंबर 2020 को समर्थन वापस ले लिया था. 1997 से अकाली दल और बीजेपी का अटूट साथ किसान आंदलोन पर असहमति की वजह से टूट गया. बीजेपी को पंजाब में सहयोगी की तलाश है.

सहयोगी पार्टी की जरूरत कांग्रेस को भी है. कैप्टन अमरिंदर सिंह की अगुवाई में कांग्रेस पार्टी को विधानसभा की कुल 117 सीटों में से 80 विधानसभा सीटों पर जीत मिली थी. अकाली दल का ग्राफ ऐसा गिरा कि महज 14 सीटें हासिल हुईं. मोदी लहर में भी बीजेपी के हिस्से 2 सीटें आईं. आम आदमी पार्टी नई पार्टी थी लेकिन 17 सीटें हासिल करने में कामयाब रही.

कैप्टन अमरिंदर सिंह ने 16 मार्च 2017 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. शपथग्रहण में बीजेपी से इस्तीफा देकर कांग्रेस में आए नवजोत सिंह सिद्धू को भी शामिल किया गया. बीजेपी में हाशिए पर रहे नवजोत सिंह सिद्धू, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के करीबी नेताओं में शुमार होने लगे. कैप्टन अमरिंदर सिंह, पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के दोस्त थे. सोनिया गांधी के भरोसेमंद नेताओं में गिने जाते थे. 

नवजोत खेमे और कैप्टन खेमे की तनातनी इतनी बढ़ी कि सोनिया गांधी को खुद कह देना पड़ा कि कैप्टन अमरिंदर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दें. कैप्टन ने 19 सिंतबर को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. 2 नवंबर को उन्होंने कांग्रेस पार्टी से भी इस्तीफा दे दिया. कैप्टन अमरिंदर ने नई पार्टी बनाई है जिसका नाम 'पंजाब लोक कांग्रेस' रखा है.

कांग्रेस के लिए सिरदर्द हैं सिद्धू?

नवजोत सिंह सिद्धू सही मायने में ऐसे नेता नहीं हैं जिनका व्यापक जनाधार हो. कांग्रेस के लिए किसी ने सबसे ज्यादा मुसीबत पंजाब में खड़ा किया है तो वे नवजोत सिंह सिद्धू ही हैं. तृप्त राजिंदर बाजवा भी कैप्टन का विरोध कर रहे थे लेकिन सिद्धू सबसे मुखर रहे. कैप्टन कैबिनेट में मंत्री होने के बावजूद उनके फैसलों के खिलाफ वे खड़े हो जाते थे. बिजली, किसान और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर वे लगातार घेर रहे थे.

सिर्फ यही नहीं, नवजोत सिंह सिद्धू शायद ही कोई ऐसा दिन रहा है जब वे विवादों में न रहे हों. कभी वे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की तारीफ कर कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ाते थे तो कभी अमरिंदर सिंह के खिलाफ बयान देकर. जब उन्हें पंजाब कांग्रेस की कमान सौंपी गई तब उनके सलाहकारों के विवादित बयान सुर्खियों में रहे. कैप्टन के इस्तीफे के बाद लोग उन्हें मुख्यमंत्री पद का दावेदार मान रहे थे. कैप्टन अमरिंदर ने पाकिस्तान कनेक्शन पर सिद्धू के खिलाफ बयान दिया था और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बता दिया था. सीएम की गद्दी सिद्धू को नहीं मिली. चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया गया. सीएम चन्नी के सत्तारूढ़ होने के कुछ ही दिनों बाद फिर सिद्धू ने भ्रष्टाचार और बिजली का मुद्दा छेड़ दिया. 28 सिंतबर को उन्होंने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया. एक बार फिर सिद्धू अध्यक्ष पद संभालने के लिए मान गए हैं.

पंजाब की राजनीति पर असमंजस में हैं चुनावी रणनीतिकार

पंजाब में कांग्रेस की अंदरुनी कलह, बीजेपी के खिलाफ किसानों का आक्रोश और अकाली दल की सिमटती राजनीतिक पकड़ ने सियासत के जानकारों को भ्रम में डाल दिया है. स्पष्ट तौर पर कुछ भी कहा नहीं जा सकता कि पंजाब कांग्रेस की राजनीतिक किस करवट बैठेगी. कांग्रेस का कलह अभी तक संभला नहीं है. कभी नवजोत सिंह सिद्धू नाराज होते हैं तो कभी सुनील जाखड़. खुद आलाकमान भी यह तय नहीं कर पा रहा है कि पंजाब में कांग्रेस पार्टी की राजनीति किस तरफ जा रही है. अब तक पंजाब की सत्ता की लड़ाई कांग्रेस गठबंधन और एनडीए गठबंधन में थी. एनडीए गठबंधन टूट चुका है. कैप्टन अमरिंदर सिंह की नई पार्टी का गठबंधन बीजेपी के साथ हो सकता है. किसान आंदोलन के मुद्दे पर अमरिंदर का रुख बीजेपी से बहुत अलग है ऐसे में इस गठबंधन पर भी अभी कुछ स्पष्ट तौर पर नहीं कहा जा सकता है.


क्या दूसरी पार्टियों की कमजोरी बीजेपी को देगी मजबूती?

किसी भी पार्टी की लहर अभी पंजाब में नहीं देखने को मिल रही है. राजनीतिक विश्लेषकों की तरह वोटरों भी भ्रम में हो सकता कि किसके साथ जाएं. किसान आंदोलन के मुद्दे पर बीजेपी सबसे ज्यादा विरोध का सामना पंजाब में ही कर रही है. 2014 और 2019 की मोदी लहर में भी पंजाब में बीजेपी को बढ़त हासिल नहीं हुई थी. तब न तो किसान आंदोलन का मुद्दा था न ही लगातार बढ़ रही मंहगाई का. ऐसे में भले ही पंजाब की स्थानीय पार्टी और कांग्रेस में कितना भी घमासान देखने को मिले, बीजेपी के पक्ष में अभी समीकरण बनते नहीं दिख रहे हैं.
 

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