डीएनए हिंदी: हिमाचल प्रदेश कांग्रेस (Himachal Pradesh Congress) में मुख्यमंत्री चयन का विवाद सुखविंदर सिंह सुक्खू (Sukhvinder Singh Sukhu) का नाम फाइनल होते ही खत्म हो गया है, लेकिन कांग्रेस हाईकमान के इस फैसले को चौंकाने वाला माना जा रहा है. हिमाचल की राजनीति में दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह (Virbhadra Singh) के परिवार के प्रभाव को देखते हुए यह तय माना जा रहा था कि अगला मुख्यमंत्री उनके ही गुट से होगा. वीरभद्र सिंह की पत्नी व कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष प्रतिभा सिंह (Pratibha Singh) के समर्थकों ने लगातार उग्र प्रदर्शन से पार्टी पर दबाव बनाने में कोई कसर भी नहीं छोड़ी थी, इसके बावजूद हाईकमान ने सुक्खू के नाम पर मुहर लगाकर राज्य की राजनीति को नया मोड़ दे दिया है.
आइए 6 पॉइंट्स में वे कारण जानते हैं, जिनके चलते कांग्रेस हाईकमान ने वीरभद्र सिंह के राजशाही परिवार को छोड़कर सुक्खू पर दांव खेलने का निर्णय लिया है.
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1. हिमाचल के लोअर इलाके में बढ़ेगा कांग्रेस का प्रभाव
सुखविंदर सिंह सुक्खू लोअर हिमाचल प्रदेश इलाके से आते हैं. यह वो इलाका है, जो साल 1966 में हिमाचल प्रदेश में शामिल किया गया था. इस इलाके में नालागढ़, ऊना, कांगड़ा, हमीरपुर और कुल्लू का लोअर हिल्स एरिया शामिल है. सुक्खू इस इलाके से मुख्यमंत्री बनने वाले पहले कांग्रेसी नेता हैं. इस इलाके से अब तक इकलौता मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल (Prem Kumar Dhumal) के तौ पर भाजपा ने ही दिया था, जो केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर (Anurag Thakur) के पिता भी हैं. सुक्खू को मुख्यमंत्री बनाकर कांग्रेस ने इस इलाके में भगवा गढ़ को हिलाने का काम किया है.
2. वीरभद्र परिवार पर निर्भरता घटाने की कवायद
कांग्रेस पर अब तक परिवारवाद के आरोप लगते रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) इस मुद्दे पर ही कांग्रेस को घेरते रहे हैं. कांग्रेस यदि 6 बार हिमाचल के मुख्यमंत्री रहे वीरभद्र सिंह के परिवार से किसी को नियुक्त करती तो भाजपा को फिर यह मुद्दा मिल जाता. सुक्खू की तैनाती से भाजपा को यह मुद्दा नहीं मिलेगा. इसके अलावा कांग्रेस ने सुक्खू को चुनकर राज्य में पार्टी संगठन को वीरभद्र परिवार के प्रभाव से बाहर निकालने और उन पर निर्भरता कम करने की कवायद भी शुरू की है.
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3. गांधी परिवार के विश्वासपात्र होना भी सुक्खू के पक्ष में
सुखविंदर सिंह सुक्खू को गांधी परिवार का करीबी माना जाता है. पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) उन्हें अपने विश्वसनीय लोगों में गिनते हैं. सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ने भी भले ही वीरभद्र परिवार के प्रभाव को ध्यान में रखकर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद चुनाव के दौरान उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह को सौंपा हो, लेकिन सुक्खू को चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाकर उन पर भी अपना भरोसा दिखाया था. प्रियंका गांधी की रैलियां तय करने में भी सुक्खू की अहम भूमिका रही थी. टिकट वितरण में भी सुक्खू के समर्थक नेताओं को ज्यादा प्राथमिकता दी गई. गांधी परिवार से यह नजदीकी आखिर में सुक्खू के काम आई हैं.
4. जमीन से जुड़ा चेहरा होने की छवि
सुक्खू एक सरकारी रोडवेज ड्राइवर के बेटे हैं और खुद भी लंबे समय तक काउंटर पर बैठकर दूध बेचने का काम कर चुके हैं. इसके चलते उनकी छवि जमीन से जुड़े नेता की मानी जाती है. वे लंबे समय तक पार्टी संगठन में रहे हैं. इस कारण जमीनी स्तर पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं तक उनकी पकड़ को विपक्षी नेता भी मानते हैं. खुद राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा (Bharat Jodo Yatra) के जरिये कांग्रेस को दोबारा जमीनी स्तर पर जनता से जोड़ने की कवायद कर रहे हैं. ऐसे में सुक्खू के चयन को भी इसी कोशिश से जोड़ा जा रहा है.
5. बेहतरीन मैनेजमेंट वाली छवि कराएगी कांग्रेस के वादे पूरे
सुक्खू ने छात्र राजनीति के दौरान NSUI में, फिर यूथ कांग्रेस और इसके बाद सीनियर कांग्रेस में संगठन से जुड़े अलग-अलग पदों पर काम किया है. इस दौरान उनकी छवि बेहतरीन टाइम मैनेजमेंट स्किल्स वाले लीडर की रही है. कांग्रेस ने भाजपा का भगवा किला तोड़ने के लिए इस बार हिमाचल प्रदेश में वादों की बौछार लगाई है, जिनमें ओल्ड पेंशन स्कीम की वापसी से लेकर नौकरीपेशा वर्ग के लिए सुधारवादी कदम उठाने तक के वादे शामिल हैं. इन वादों को समय से पूरा करने के लिए सुक्खू जैसे टाइम मैनेजमेंट स्किल्स की ही जरूरत पार्टी को होगी.
6. मंडी में लोकसभा चुनाव नहीं चाहती थी कांग्रेस
वीरभद्र सिंह परिवार का मुख्यमंत्री पद पर दावा इसलिए भी कमजोर साबित हो गया, क्योंकि कांग्रेस हाईकमान फिलहाल मंडी लोकसभा सीट पर चुनाव नहीं चाहती थी. इस लोकसभा सीट से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह सांसद हैं, जिन्होंने साल 2021 में सभी को हैरान करते हुए यहां उपचुनाव में जीत हासिल की थी. यदि कांग्रेस प्रतिभा सिंह को मुख्यमंत्री बनाती तो उन्हें इस लोकसभा सीट से इस्तीफा देना पड़ता. ऐसे में कांग्रेस उपचुनाव कराकर एक लोकसभा सीट का खतरा नहीं उठाना चाहती थी.
वीरभद्र के बेटे और शिमला ग्रामीण विधानसभा सीट से दूसरी बार विधायक बने विक्रमादित्य सिंह का राजनीतिक अनुभव हाईकमान की नजर में मुख्यमंत्री पद के लिए पर्याप्त नहीं था. प्रतिभा सिंह ने शनिवार को अपना नाम कमजोर पड़ता देखकर अपने गुट के मुकेश अग्निहोत्री का नाम भी आगे किया था, लेकिन वीरभद्र परिवार से बाहर का मुख्यमंत्री चुनने की स्थिति में हाईकमान को सुक्खू का नाम ज्यादा प्रभावी दिखाई दिया. इस कारण उनके नाम पर ही मुहर लगाई गई.
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