58th Jnanpith Award 2023: स्वामी रामभद्राचार्य और गुलजार को ज्ञानपीठ पुरस्कार का ऐलान

नीलेश मिश्र | Updated:Feb 17, 2024, 07:45 PM IST

Swami Rambhadrachary

Jnanpith Award 203: साल 2023 के लिए स्वामी रामभद्राचार्य (संस्कृत) और गुलजार (उर्दू) को ज्ञानपीठ पुरस्कार देने की घोषणा की गई है.

साल 2023 के ज्ञानपीठ पुरस्कारों का ऐलान कर दिया गया है. इस बार संस्कृत के लिए जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य को संस्कृत के लिए और गुलजार को उर्दू के लिए सम्मानित किया जाएगा. साल 2022 के लिए दामोदर मौजो को कोंकणी भाषा के लिए सम्मानित किया गया था. स्वामी रामभद्राचार्य संत और कथावाचक हैं तो गुलजार भारत के मशहूर गीतकारों में से एक हैं.

कौन हैं स्वामी रामभद्राचार्य?
जन्म से ही नेत्रहीन स्वामी रामभद्राचार्य चित्रकूट में तुलसी पीठ के संस्थापक और मुखिया हैं. वह 100 से ज्यादा किताबों की रचना कर चुके हैं. वह हनुमान चालीसा में भी कई कमियां निकाल चुके हैं. उनका कहना है कि उन्हें जितना भी ज्ञान है वह सब उन्हें सुनकर अर्जित किया है क्योंकि वह देखकर पढ़ नहीं सकते हैं. बाबरी मस्जिद और राम मंदिर के विवाद में भी वह अहम कड़ी रहे हैं और कोर्ट में तर्क रख चुके हैं.


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गुलजार को ज्ञानपीठ पुरस्कार
हिंदी और उर्दू के मशहूर शायर और गीतकार गुलजार को इस बार उर्दू के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया जाएगा. इससे पहले साल 2002 में उन्हें उर्दू के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार, 2013 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार और 2004 में पद्म भूषण से सम्मानित किया जा चुका है. हिंदी सिनेमा में शानदार काम के लिए गुलजार पांच बार नेशनल फिल्म अवॉर्ड भी जीत चुके हैं.

क्या है ज्ञानपीठ पुरस्कार?
भारत में यह साहित्य के लिए दिया जाने वाला सर्वोच्च पुरस्कार है जिसे भारतीय ज्ञानपीठ न्यास की ओर से दिया जाता है. साल 1961 में श्रीसाहू शांति प्रसाद जैन के 50वें जन्मदिन पर उन्होंने खुद इसकी स्थापना की गई थी. 1965 में पहली बार ज्ञानपीठ पुरस्कार जी शंकर कुरुप  को मलयालम भाषा के लिए दिया  गया था.


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साल 2012 के बाद से इस पुरस्कार के साथ 11 लाख रुपये की नकद राशि भी दी जाती है. इसके लिए जरूरी है कि वह साहित्य भारतीय संविधान की 8वीं अनुसूची में दर्ज 22 भाषाओं में से किसी एक भाषा में लिखा गया हो.

2022 में दामोदर मौजो (कोंकणी), 2021 में निलोमणि फुकन (असमिया), 2019 में अक्कितम (मलयालम), 2018 में अमित्व घोष (अंग्रेजी), 2017 में कृष्णा सोबती (हिंदी) और 2016 में शंख घोष (बांग्ला) इस पुरस्कार को हासिल कर चुके हैं.

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