डीएनए हिंदी: सेना में जवानों की भर्ती के लिए 'अग्निवीर' योजना शुरू की गई है. इसी योजना के तहत भर्ती हुए सेना के जवान अमृतपाल सिंह पहले ऐसे अग्निवीर बने हैं जो शहीद हो गए. सिर्फ 19 साल की उम्र में शहीद हुए अमृतपाल का पार्थिक शरीर जब पंजाब में उनके घर पहुंचा तो उनकी बहनें और अन्य महिलाएं शव को कंधा देती नजर आईं. हैरान करने वाली बात यह थी कि शहीद को सम्मान देने के लिए सेना की ओर से कोई इंतजाम नहीं किया गया. अब विपक्षी नेताओं ने मोदी सरकार को घेरते हुए सवाल पूछा गया कि क्या अग्निवीर में भर्ती हुए जवान शहीद नहीं हैं?
शिरोमणि अकाली दल (शिअद) नेता बिक्रम मजीठिया ने शहीद अमृतपाल सिंह को सम्मानित नहीं करने के फैसले की निंदा की. उन्होंने कहा, 'कोई गार्ड ऑफ ऑनर नहीं दिया गया. यहां तक कि शहीद के शव को पंजाब में घर वापस लाने के लिए सेना की एम्बुलेंस उपलब्ध नहीं कराई गई.' अकाली दल ने अग्निवीर योजना को खत्म करने और इसके तहत अब तक भर्ती सभी सैनिकों की सेवाओं को नियमित करने की मांग की है. रक्षा मंत्रालय के एक बयान में इस घटना को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा गया है कि अग्निवीर अमृतपाल सिंह की राजौरी सेक्टर में संतरी ड्यूटी के दौरान खुद गोली लगने से मौत हो गई. इसमें कहा गया है कि अधिक विवरण सुनिश्चित करने के लिए कोर्ट ऑफ इंक्वायरी जारी है.
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मामले में जारी है जांच
रक्षा मंत्रालय के बयान में कहा गया है कि मृतक के पार्थिव शरीर को जूनियर कमीशंड अधिकारी और चार अन्य रैंक के लोगों के साथ यूनिट द्वारा किराए पर ली गई एक सिविल एम्बुलेंस में ले जाया गया. अंतिम संस्कार में सेना के जवान भी शामिल हुए. इसमें कहा गया है कि मौत का कारण खुद को पहुंचाई गई चोट है, मौजूदा नीति के अनुसार कोई गार्ड ऑफ ऑनर या सैन्य अंतिम संस्कार प्रदान नहीं किया गया था.
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जम्मू कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने भी सवाल उठाते हुए कहा है, 'अग्निवीर बनाए ही इसलिए गए हैं ताकि शहीद का दर्जा न दिया जाए.' उन्होंने आगे कहा कि केंद्र सरकार को शर्म आनी चाहिए कि वह अग्निवीरों को शहीद का दर्जा नहीं दे रही है. बाद में स्थानीय लोगों ने पुलिस से बात की और पुलिस ने शहीद को सलामी दी.
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