हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट के बाद सियासी घमासान मचा हुआ है. विपक्षी दल मोदी सरकार और सेबी पर जमकर निशाना साध रहे हैं. राहुल गांधी के बाद अब सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने SEBI पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा कि सेबी की जांच होनी चाहिए. यह कभी निवेशकों का सहारा नहीं बनी. इससे पहले राहुल गांधी ने सेबी की अध्यक्ष माधबी पुरी बुच से इस्तीफे की मांग की थी.
अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया X पर कहा, 'SEBI की ऐतिहासिक जांच होनी चाहिए, क्योंकि सेबी का इतिहास ही ऐसा रहा है कि वो कभी सही मायनों में निवेशकों का सरंक्षक व सहारा नहीं बना. भारत के बाजार में निवेश के प्रति सुरक्षा की भावना जगाने के लिए सेबी की प्रतिष्ठा की पुनर्स्थापना केवल एक निष्पक्ष जांच ही कर सकती है. SEBI प्रकरण की गहन-जांच भारत की अर्थव्यवस्था की अपरिहार्यता है.'
हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट में क्या?
हिंडनबर्ग रिसर्च ने आरोप लगाया कि सेबी की चेयरपर्सन माधवी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच ने एक फंड में निवेश किया था जिसका कथित तौर पर गौतम अडानी के बड़े भाई विनोद अडानी द्वारा इस्तेमाल किया जा रहा था. अमेरिकी कंपनी ने कहा कि संदेह है कि अडानी ग्रुप के खिलाफ सेबी शायद इसलिए कार्रवाई नहीं की क्योंकि बुच की अडानी समूह से जुड़े विदेशी फंडों में हिस्सेदारी थी.
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हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के बाद सेबी ने सफाई दी है. उन्होंने कहा कि उसने अडानी समूह के खिलाफ सभी आरोपों की विधिवत जांच की है. भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) ने बयान में कहा कि उसकी चेयरपर्सन माधवी पुरी बुच ने समय-समय पर संबंधित जानकारी दी और संभावित हितों के टकराव से जुड़े मामलों से खुद को अलग रखा.
सेबी ने कहा कि उसने अदाणी के खिलाफ हिंडनबर्ग द्वारा लगाए गए आरोपों की विधिवत जांच की है. उसकी 26 पहलुओं में से सिर्फ एक पहलू की जांच बची है और वह भी पूरी होने वाली है. सेबी ने कहा कि बुच ने समय-समय पर संबंधित खुलासे किए हैं और संभावित हितों के टकराव से जुड़े मामलों से खुद को अलग भी रखा है. इससे पहले बुच और उनके पति धवल ने आरोपों को निराधार बताया था.
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