देश भर में खत्म किए जाएंगे सभी 62 कैंटोनमेंट, हिमाचल प्रदेश से हो चुकी है शुरुआत

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:May 02, 2023, 11:23 AM IST

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Cantonment Board Abolished: देशभर में मौजूद कैंटोनमेंट इलाकों को खत्म करने की प्रक्रिया हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला से शुरू हो चुकी है.

डीएनए हिंदी: देश के कुल 62 शहर ऐसे हैं जहां सैनिक छावनियां यानी कैंटोनमेंट मौजूद हैं. अब धीरे-धीरे इनको खत्म किए जाने की प्रक्रिया शुरू की जा रही है. इन इलाकों को अब नगर निगम या नगर पालिकाओं में मिला दिया जाएगा. सिर्फ उस इलाके की जिम्मेदारी सेना की होगी जहा सैनिक रहेंगे. उन इलाकों को मिलिट्री स्टेशन बना दिया जाएगा. हिमाचल प्रदेश से इसकी शुरुआत भी हो गई है. जनवरी महीने में रक्षा मंत्रालय ने शिमला के खसयोल कैंट इलाके को नगर निगम में मिलाने को मंजूरी भी दे दी थी. इसी तरह बाकी के कैंटोनमेंट को भी खत्म किया जाना है.

इन छावनियों में से कई ऐसी भी हैं जो 200 साल से भी ज्यादा पुरानी हैं. इन्हें अंग्रेजों ने इसलिए बनाया था ताकि सेना को शहरों से दूर रखा जा सके. अब भारत सरकार इन्हें खत्म करने की दिशा में कदम बढ़ा चुकी है. सरकार का तर्क यह है कि छावनियों में रहने वाले नागरिकों को स्थानीय नागरिकों को मिलने वाली सुविधाएं नहीं मिल पाती हैं. दूसरी तरफ सेना को भी इन छावनियों की व्यवस्था में अपने संसाधन खर्च करने पड़ते हैं.

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कैंटोनमेंट बोर्ड देखता है सारे इंतजाम
दरअसल, छावनियों की व्यवस्था करने के लिए कैंटोनमेंट बोर्ड होता है जिसमें चुनाव से आए हुए जनप्रतिनिधियों के अलावा सेना और नागरिक प्रशासन के अधिकारी होते हैं. यही बोर्ड छावनी की व्यवस्था के लिए ज़िम्मेदार होता है. इन छावनियों की शुरुआत अंग्रेजी फौज के रहने के लिए शहर से दूर बनाई गई बस्तियों से हुई थी जहां रोजमर्रा की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए नागरिक आबादी को भी बसाया गया था. अब इन कैंटोनमेंट बोर्डों के भंग कर दिया जाएगा और छावनियों को नगर पालिकाओं या सेना के बीच बांट दिया जाएगा.

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हिमाचल प्रदेश की खसयोल छावनी से इसकी शुरुआत हो चुकी है. इसके बाद राजस्थान के नसीराबाद छावनी में कार्यवाही शुरू होगी. इन 62 छावनियों में से 56 अंग्रेज़ों के जमाने की हैं जबकि 6 को आज़ादी के बाद बनाया गया है. सेना के पास पूरे देश में लगभग 18 लाख एकड़ ज़मीन है।.इसमें से लगभग 1.61 लाख एकड़ ज़मीन देश भर में फैली छावनियों के पास है. इस ज़मीन और उसपर बनी छावनियों की देखभाल में रक्षा बजट का एक बड़ा हिस्सा खर्च होता है. साथ ही ये छावनियां अब बड़े शहरों के बीचोंबीच आ गई हैं लेकिन यहां रहने वाले नगर निकायों की सुविधाओं से वंचित होते हैं.

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