Allahabad High Court: हाई कोर्ट का अहम फैसला, पत्नी को गुजारा भत्ता देना कर्तव्य, नौकरी नहीं तो मजदूरी करे पति

Written By स्मिता मुग्धा | Updated: Jan 28, 2024, 11:57 AM IST

Allahabad HC On Maintenance 

High Court On Maintenance: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने महिला को गुजारा भत्ता देने के मामले में अहम फैसला दिया है. कोर्ट ने कहा कि अगर नौकरी नहीं है तो भी पत्नी को गुजारा भत्ता देना जरूरी है.

डीएनए हिंदी: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने गुजारा भत्ते से जुड़े एक केस में महत्वपूर्ण टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा कि पत्नी को गुजारा भत्ता देना पति का कर्तव्य है. कोर्ट ने कहा कि अगर पति की नौकरी से कोई आय नहीं है तो भी वह अपनी पत्नी को भरण-पोषण देने के लिए बाध्य है. गुजारा भत्ता से जुड़े केस की सुनवाई करते हुए बेंच ने कहा कि नौकरी नहीं होने की सूरत में याचिकाकर्ता मजदूरी कर सकता है और एक अकुशल श्रमिक के तौर पर रोज 300-400 रुपये कमा सकता है. तलाक और गुजारा भत्ता के संबंध में हाई कोर्ट की यह टिप्पणी महत्वपूर्ण मानी जा रही है. याचिकाकर्ता ने कोर्ट में अपील की थी कि उसकी पत्नी खुद हर महीने 10,000 रुपये कमाती है और वह बेरोजगार है. ऐसी स्थिति में गुजारा भत्ता नहीं दे सकता. 

हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ से जुड़ी न्यायमूर्ति रेनू अग्रवाल बेंच ने पारिवारिक अदालत ने यह टिप्पणी की है. पति ने फैमिली कोर्ट नंबर 2 के आदेश को चुनौती देते हुए 21 फरवरी 2023 को इलाहाबाद हाई कोर्ट में रिव्यू पिटिशन दाखिल की थी. निचली अदालत ने हर महीने के लिए गुजारा भत्ता तय किया था जिसके खिलाफ याचिकाकर्ता ने ऊपरी अदालत में अपील की थी. पारिवारिक अदालत ने याचिकाकर्ता पति को आदेश दिया था कि वह उससे अलग रह रही पत्नी को भरण-पोषण के रूप में 2,000 रुपये प्रति महीने के हिसाब से दे.

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मजदूरी करके पत्नी को देना होगा 
हाई कोर्ट ने आदेश को बरकरार रखते हुए कहा कि अकुशल श्रमिक के तौर पर काम करके भी रोज 300-400 रुपये कमाए जा सकते हैं. पत्नी को गुजारा भत्ता देना पति का कर्तव्य है. साथ ही, कोर्ट ने महिला की बकाया मेंटनेंस राशि भी वापस लौटाने की व्यवस्था करने का निर्देश दिया है. याचिकाकर्ता ने अपने बेरोजगार होने का हवाला देते हुए कहा था कि उसकी पत्नी ग्रेजुएट है और खुद टीचर की नौकरी करती है. उसकी आर्थिक स्थिति गुजारा भत्ता देने लायक नहीं है.

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यह है पूरा मामला 
जानकारी के मुताबिक, याचिकाकर्ता की 2015 में शादी हुई थी और 2016 में ही पत्नी ने दहेज की मांग को लेकर पति और ससुराल वालों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी. इसके बाद से महिला अपने माता-पिता के साथ ही रह रही थी. इसी मामले में फैमिली कोर्ट ने पति को हर महीने 2,000 रुपये गुजारा भत्ता देने के लिए कहा था. इसके खिलाफ पति ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी जिसे उच्च न्यायालय ने अस्वीकार कर दिया है.  

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