डीएनए हिंदी: अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की समाजवादी पार्टी सरकार ने साल 2016 में और योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) की सरकार ने साल 2019 में उत्तर प्रदेश की 18 ओबीसी जातियों को अनुसूचित जाति (SC) में शामिल करने का फैसला लिया था. इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) ने इन जातियों को एससी का जाति प्रमाण पत्र जारी करने पर रोक लगा दी थी. अब हाई कोर्ट ने एक कदम और बढ़ाते हुए उस नोटिफिकेशन को ही रद्द कर दिया है जिसके तहत इन 18 जातियों को एससी में शामिल किया गया था.
अखिलेश यादव की सरकार ने 22 दिसंबर 2016 को एक नोटिफिकेशन जारी करके इन जातियों को एससी में शामिल करने का ऐलान कर दिया था. अखिलेश की सरकार ने सभी जिलों के डीएम को आदेश जारी किए थे कि इन जातियों के लोगों को एससी का प्रमाण पत्र जारी किया जाए. हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने 24 जनवरी 2017 को इस नोटिफिकेशन पर रोक लगा दी थी.
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दो बार जारी किया गया नोटिफिकेशन, दोनों बार कोर्ट ने रोका
जिन जातियों को ओबीसी से एससी में शामिल करने का फैसला लिया गया था उनमें मझवार, कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिंद, भर, राजभर, धीमान, बाथम, तुरहा गोडिया, मांझी और जातियां शामिल हैं. कोर्ट में याचिका दायर करने वाला शख्स का तर्क था कि किसी भी जाति को अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति या ओबीसी में शामिल करने का अधिकार राज्य सरकार को नहीं बल्कि देश की संसद को ही है.
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यूपी में सरकार बदलने के बाद 2017 में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनी. 24 जून 2019 को योगी आदित्यनाथ की सरकार ने भी एक नोटिफिकेश जारी किया और इन जातियों को एससी में शामिल करने का ऐलान कर दिया. अब हाई कोर्ट ने इस नोटिफिकेशन को भी रद्द कर दिया है. यानी इन जातियों को फिलहाल के लिए एससी में शामिल नहीं किया जा सकता है.
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