डीएनए हिंदीः जातीय रैलियों को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है. हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए तीखी टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा कि जाति आधारित रैलियों पर क्यों ना हमेशा के लिए बैन लगा दिया जाए. अगर ऐसी रैली होती हैं तो चुनाव आयोग को उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई क्यों नहीं करनी चाहिए. कोर्ट ने यह भी कहा कि जब 9 साल पर इस पर अंतरिम आदेश जारी किया गया था तो उस पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई हैं.
क्या है मामला?
हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में चीफ जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस जसप्रीत सिंह की अदालत में एक जनहित याचिका दाखिल की गई है. इसमें जाति आधारित रैलियों पर रोक लगाने की मांग की गई है. इसी मामले की सुनवाई करे हुए हाईकोर्ट ने नोटिस जारी किया है. इस मामले में अगली सुनवाई 15 दिसंबर को होगी. हाईकोर्ट ने इस मामले में चुनाव आयोग से भी जवाब मांगा है. बता दें कि जातीय रैलियों पर रोक की मांग को लेकर जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने 11 जुलाई 20213 को राज्य में जाति आधारित रैलियों के आयोजन पर अंतरिम रोक लगा दी थी.
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2013 में क्या आया था फैसला
2013 में जस्टिस उमा नाथ सिंह और जस्टिस महेंद्र दयाल की बेंच ने जाति आधारित रैलियों पर रोक की मांग पर कहा कि ऐसी रैलियां आयोजित करने की अप्रतिबंधित स्वतंत्रता, पूरी तरह से नापसंद है और आधुनिक पीढ़ी की समझ से परे है. ऐसा आयोजन कानून के शासन को नकारने और नागरिकों को मौलिक अधिकारों से वंचित करने का कार्य होगा. याचिकाकर्ता ने कहा था कि जातीय अल्पसंख्यक, बहुसंख्यक समूहों के वोटों को लुभाने के लिए डिजाइन किए गए राजनीतिक दलों की ऐसी अलोकतांत्रिक गतिविधियों के कारण अपने ही देश में द्वितीय श्रेणी के नागरिकों की श्रेणी में आ गए हैं.
(इनपुट- IANS)
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