डीएनए हिंदी: जम्मू-कश्मीर में केंद्र सरकार की ओर से निरस्त किए गए अनुच्छेद 370 के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल की गई थी. दोनों तरफ के पक्ष कोर्ट में रखे जा चुके हैं और 5 सितंबर को अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. सुप्रीम कोर्ट सोमवार (11 दिसंबर) को अपना फैसला सुनाने वाला है. मोदी सरकार के साहसिक फैसलों में से एक इसे माना जाता है. दूसरी ओर कांग्रेस समेत कुछेक और विपक्षी दलों ने इसका विरोध किया था. प्रदेश के नेताओं फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती भी इसे जम्मू-कश्मीर के साथ भेदभाव और अन्याय बढ़ाने वाला फैसला बता चुकी हैं. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के साथ ही भविष्य की तस्वीर भी साफ हो जाएगी.
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ फैसला सुनाएगी. बेंच में जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत शामिल हैं. जम्मू-कश्मीर के विलय के प्रस्ताव पर दस्तखत से लेकर आर्टिकल 370 के हटाए जाने तक का पूरा इतिहास जानते हैं. बीजेपी के घोषणा पत्र में जम्मू-कश्मीर से 370 हटाए जाने और राम मंदिर बनाने का प्रस्ताव प्रमुखता से शामिल किया गया था और दोनों पर केंद्र सरकार ने अहम फैसला लिया है.
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राजा हरि सिंह ने किया था विलय पत्र पर हस्ताक्षर
26 अक्टूबर 1947 को जम्मू और कश्मीर के आखिरी शासक महाराजा हरि सिंह ने भारत में शामिल होने के लिए विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए थे. विलय पत्र के मुताबिक, संघ की शक्तियां विदेशी मामलों, रक्षा और संचार तक सीमित थीं. प्रदेश का अपना संविधान भी था. 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ था और अनुच्छेद 370 में कहा गया था कि भारत अपनी सरकार की सहमति के बिना विलय पत्र से निर्धारित दायरे के बाहर जम्मू-कश्मीर में कानून नहीं बनाएगा.
2019 में आर्टिकल 370 निरस्त कर दिया गया
5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 विधेयक को गृह मंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में पेश किया था. 6 अगस्त 2019 को लोकसभा की ओर से पारित कर दिया गया था और 9 अगस्त 2019 को इसे राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई थी. इस मंजूरी के साथ ही आर्टिकल 370 निरस्त कर दिया गया. अनुच्छेद 370 की क्लॉज 1 को छोड़कर सभी प्रावधान समाप्त हो गए. क्लॉज 1 में कहा गया है कि जम्मू-कश्मीर में भारत का संविधान चलेगा.
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