डीएनए हिंदी: अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ को शनिवार रात को गोली मार दी गई है. भरपूर सुरक्षा के बीच और पुलिस कस्टडी में इस तरह की हत्या से सनसनी मच गई है. प्रदेश की विपक्षी पार्टियों से लेकर देश के अलग-अलग नेता और आम लोग भी इस हत्याकांड पर सवाल उठा रहे हैं. उत्तर प्रदेश पुलिस के डीजीपी रहे डॉ. विक्रम सिंह ने इस मामले में पुलिस की लापरवाही, प्रशासन की चूक और कस्टडी में किसी दोषी की हत्या पर तीखे सवाल पूछे हैं. उन्होंने पश्चिमी यूपी के बिल्डर्स के पास अतीक अहमद का अवैध पैसा होने की बात भी कही है और आशंका जताई है कि शायद उन्हीं लोगों ने मौके का फायदा उठाया और हत्या करवा दी.
इस मामले में एक आरोपी सनी सिंह के तार सुंदर भाटी गैंग से भी जुड़ रहे हैं. कहा जा रहा है कि जेल में बंद रहने के दौरान सनी की मुलाकात सुंदर भाटी से हुई थी और वह उसके गैंग के लिए भी काम करने लगा है. सुंदर भाटी पश्चिमी यूपी से ही आता है इस वजह से विक्रम सिंह का कहना है कि इस मामले में एक एंगल से भी जांच करने की जरूरत है, ताकि यह सामने आ सके कि असल में इन तीनों ने अपनी मर्जी से अतीक और अशरफ पर हमला किया या किसी साजिश के तहत दोनों को मरवाया गया.
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पूर्व डीजीपी का कहना है कि बदमाशों के पास जो पिस्तौलें थीं वे तुर्की की बनी हुई थीं. इन पिस्तौलों की कीमत 20-20 लाख रुपये तक हो सकती हैं. यह सवालों के घेरे में है कि जिन लोगों ने हत्या की है वे इन्हें खरीद लें, मोटरसाइकिल खरीद लें, अस्पताल की रेकी करें, ऐसी क्या परिस्थितियां थीं कि पुलिस ने उन लोगों को चिह्नित नहीं किया जो इस अस्पताल का नियमित रूप से भ्रमण कर रहे थे. पुलिसकर्मियों ने उन्हें चिह्नित क्यों नहीं किया.
विक्रम सिंह ने कहा कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई बिल्डरों के घर अतीक अहमद का धन निवेशित था. हो सकता है कि उनके द्वारा देखा गया हो कि यह मौका अच्छा है, अतीक अहमद को मार दिया जाए, जिससे उसका निवेश पचाया जा सके.
पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह ने कहा है कि पूरे घटनाक्रम के दौरान पुलिस की उदासीनता सवालों के घेरे में है. यह कहना कि हत्यारों को गिरफ्तार कर लिया गया, उनके हथियार बरामद कर लिए गए, खोखे बरामद कर लिए गए इसका यह मतलब नहीं है. न्यायिक अभिरक्षा में दो महत्वपूर्ण अभियुक्तों की जिस तरह से हत्या की गई है, हत्यारों की कार्यप्रणाली और ट्रेनिंग पर सवाल खड़े कर रहे हैं. उनकी व्यूहरचना, उनके फील्ड क्राफ्ट की जानकारी इतनी सटीक कैसे थी यह सवाल खड़े कर रही है.
जाहिर है कि केवल 17 पुलिसकर्मियों का निलंबन पर्याप्त नहीं होगा. पुलिस के अधिकारी के जिन्होंने उदासीनता दिखाई, उनके खिलाफ कार्रवाई की जाए जो एक नाजीर बने. ऐसी उदासीनता पहले न हो. न्यायिक अभिरक्षा में हत्या का होना एक शर्मनाक घटना है. यह यूपी पुलिस के शर्मिंदगी का सबब है. यह भी सही है कि एक समिति पूरे प्रकरण की जांच करेगी. अभिरक्षा में हत्या की जो अवधारणा बनती है, वह सवालों के दायरे में है. बड़े कठोर कदम उठाने पड़ेंगे अन्यथा शर्मिंदगी होगी.
कौन हैं डॉक्टर विक्रम सिंह?
पूर्व IAS अधिकारी डॉक्टर विक्रम सिंह साल 2010 में रिटायर हो चुके हैं. इससे पहलेवह जून 2007 से सितंबर 2009 तक उत्तर प्रदेश के डीजीपी थे. मौजूदा वक्त में वह नोएडा इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर चांसलर है.
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