डीएनए हिंदी: लंबे समय तक इतिहासकारों का मानना था कि भारत में बारुद के इस्तेमाल की शुरुआत मुगलकाल से हुई थी. ऐसा माना जाता है कि पानीपत के पहले युद्ध में इब्राहिम लोदी के खिलाफ बाबर ने तोपों और बारुद का इस्तेमाल किया था. अब कुछ इतिहासकारों ने दिल्ली सल्तनत में और दक्षिण के विजय नगर सलतनत में मुगल काल से सैकड़ों वर्ष पहले भी आतिशबाजी के प्रसंग खोजे हैं. हालांकि, मुगलकाल में अकबर के समय तक दिवाली पर आतिशबाजी का प्रचलन शुरू हो चुका था. मुगल बादशाह अकबर ने सर्वधर्म समभाव के तहत दिवाली के त्यौहार को बड़े पैमाने पर मनाना शुरू कर दिया था. इस दौरान आगरा के किले के सामने आतिशबाजी की गई थी. दिल्ली में प्रदूषण की वजह से दिवाली पर सिर्फ ग्रीन पटाखे चलाने की अनुमति है.
दिवाली के अलावा शादियों में भी आतिशबाजी की जाती थी. शाहजहां के बेटे दाराशिकोह की बारात में भी आतिशबाजी की गई थी. 16वीं सदी के कुछ पुर्तगाली नागरिकों ने भी गुजरात में ब्राह्मणों की शादी में आतिशबाजी का जिक्र किया था. इससे समझ सकते हैं कि कैसे मुगल काल में भारत में आतिशबाज़ी की जाती थी. रामायण का इतिहास करीब 5 हज़ार साल पुराना माना जाता है लेकिन पूरी दुनिया में पटाखों का इस्तेमाल ही करीब 2200 साल पहले चीन में शुरू हुआ था.
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भारत में यूं आए पटाखे भारत में
चीन में पटाखों की शुरुआत हुई थी तब ये पटाखे बारूद से नहीं बल्कि बांस से बनाए जाते थे. बारूद के इस्तेमाल से पटाखे बनाने की शुरुआत भी 9वीं सदी में चीन में हुई थी और फिर वहीं से पटाखे पूरी दुनिया में फैल गए. चीन में उस समय पटाखे बुरी आत्माओं को दूर भगाने के लिए जलाए जाते थे. माना जाता है कि 12वीं शताब्दी में भारत से एक बौद्ध धर्म गुरू चीन पहुंचे. उनका नाम था अतीश दीपंकर. अतीश दीपंकर ही चीन से पटाखों का विचार लेकर भारत लौटे थे.
औरंगजेब ने लगाया था पटाखों के इस्तेमाल पर बैन
वर्ष 1950 में इतिहासकार पीके गोडे की एक किताब प्रकाशित हुई थी जिसका नाम है History of Fireworks in India between 1400 and 1900. इसमें वो लिखते हैं कि वर्ष 1518 में पुर्तगाल से एक यात्री भारत आया था और उसने गुजरात में ब्राहम्ण परिवार की एक शादी में ज़ोरदार आतिशबाज़ी का जिक्र किया था. भारत के कई शहरों में आतिशबाज़ी पर प्रतिबंध लगाया जाना कोई नई बात नहीं है. करीब साढ़े 3 सौ साल पहले वर्ष 1667 में मुगल बादशाह औरंगज़ेब ने भारत में पटाखों के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी थी.
उसके इस आदेश की एक कॉपी आज भी बीकानेर के स्टेट आर्काइव में रखी गई है. इतिहासकार मानते हैं कि पटाखों का इस्तेमाल राजा महाराजा और मुगल बादशाह अपने मनोरंजन के लिए, त्योहारों और विवाह शादी जैसे कार्यक्रमों के दौरान करते थे. हालांकि, 18वीं शताब्दी आते आते दिवाली पर पटाखों का नियमित इस्तेमाल किया जाने लगा.
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