बांग्लादेशी लेखिका तसलीमा नसरीन की गृह मंत्री अमित शाह से अपील, कहा -'भारत मेरा दूसरा घर, मुझे यहीं रहने दीजिए'

Written By मीना प्रजापति | Updated: Oct 21, 2024, 07:41 PM IST

बांग्लादेशी लेखिका तसलीमा नसरीन ने भारत के गृह मंत्री अमित शाह से अपील की है कि वे उन्हें भारत में रहने दें. भारत उनका दूसरा घर है. वे यहां से जाना नहीं चाहतीं. इसके बारे में उन्होंने एक्स पर लिखा है.

बांग्लादेश की निर्वासित लेखिका तसलीमा नसरीन ने देश के गृह मंत्री अमित शाह से अपील की है कि वे उन्हें भारत में रहने दें. लेखिका ने सोशल मीडिया साइट एक्स पर पोस्ट लिखकर ये गुहार लगाई है. 

तसलीमा नसरीन की गुहार
तसलीमा नसरीन ने एक्स पर अमित शाह को टैग करते हुए लिखा- प्रिय अमित शाह जी नमस्कार. मैं भारत में रहती हूं क्योंकि मुझे इस महान देश से प्यार है. पिछले 20 सालों से ये मेरा दूसरा घर बन गया है, लेकिन जुलाई 22 से MHA मेरा रेजिडेंस परमिट नहीं बढ़ा रहा है. मैं बहुत चिंतित हूं. अगर आप मुझे यहां रहने देते हैं तो मैं आपकी आभारी रहूंगी.

सांप्रदायिकता की कट्टर आलोचक नसरीन 1994 से निर्वासन में रह रही हैं. बांग्लादेश में सांप्रदायिकता और महिला समानता पर अपने लेखन के कारण इस्लामी कट्टरपंथियों की आलोचना का सामना करने के बाद उन्हें बांग्लादेश छोड़ना पड़ा था. बांग्लादेश सरकार ने उनकी कुछ पुस्तकों जिनमें प्रसिद्ध उपन्यास 'लज्जा' (1993) और उनकी आत्मकथा 'आमार मेयेबेला' शामिल है, को प्रतिबंधित कर दिया गया था.

नसरीन ने अगले 10 साल स्वीडन, जर्मनी, फ्रांस और अमेरिका में निर्वासन में बिताए. 2004 में, नसरीन भारत में कोलकाता चली गईं और 2007 तक वहीं रहीं. इसके बाद वे तीन महीने के लिए दिल्ली चली गईं, जहां उन पर शारीरिक हमला होने के बाद वे घर में नज़रबंद रहीं, हालांकि, उन्हें 2008 में भारत छोड़कर अमेरिका जाना पड़ा. कुछ सालों के बाद, नसरीन भारत लौट आईं.


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'बांग्लादेश का हाल भी अफगानिस्तान जैसा हो सकता है': नसरीन
हाल ही में, तसलीमा नसरीन ने शेख हसीना के प्रधानमंत्री पद से हटने के बाद बांग्लादेश में पैदा हुए राजनीतिक संकट पर बात रखी थी.  लेखिका ने दावा किया कि इस्लामी कट्टरपंथी युवाओं का दिमाग खराब कर रहे हैं और उन्हें 'भारत विरोधी, हिंदू विरोधी और पाकिस्तान समर्थक' बनाने के लिए भड़का रहे हैं. PTI ने नसरीन के हवाले से कहा कि हिंदुओं के खिलाफ हिंसा, पत्रकारों को निशाना बनाना और जेलों से 'आतंकवादियों' को रिहा करना जैसी हालिया कार्रवाइयों से पता चलता है कि यह छात्रों का आंदोलन नहीं था, बल्कि 'इस्लामिक जिहादियों द्वारा योजनाबद्ध और वित्तपोषित' था.

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