डीएनए हिंदी: सम्राट अकबर के दरबार में एक दरबारी कवि थे अब्दुल रहीम खानखाना. उनके बारे में कहा जाता है कि वह भक्ति काल और रीति काल के बीच किसी सेतु की तरह थे. उन्होंने एक दोहा लिखा था, 'एकै साधे सब सधै, सब साधै सब जाय-रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय.' भारतीय राजनीति में अगर किसी को इस दोहे से सीखने की जरूरत है तो अभी कांग्रेस (Congress) को है.
कांग्रेस से यह समझने में चूक हो रही है कि गुजरात (Gujarat Assembly Election) और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव (Himachal Pradesh Assembly ELection) की तैयारियों में दूसरी सियासी पार्टियां जोर-शोर से जुटी हुई हैं, वहीं कांग्रेस का पूरा जोर राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की भारत जोड़ो यात्रा (Bharat Jodo Yatra) पर है. 7 सितंबर को शुरू हुई भारत जोड़ो यात्रा से कांग्रेस कश्मीर से कन्याकुमारी तक साधने की कोशिश कर रही है लेकिन चुनावी राज्यों में वह बड़ी भूल कर रही है.
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क्यों कांग्रेस को कमजोर कर सकती है यह यात्रा?
भारतीय जनता पार्टी (BJP) हर चुनाव में बेहद सधी हुई रणनीति अपनाती है. केंद्रीय नेतृत्व को यह पता है कि कब क्या कदम उठाना है. गुजरात और हिमाचल प्रदेश में पार्टी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. चुनाव से पहले ही बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व का एक धड़ा वहां पहुंच गया है.
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गुजरात में कहां हो रही है कांग्रेस से चूक?
बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा ने गुजरात में अल्पसंख्यकों को साधने के लिए विधानसभा क्षेत्र में कम से कम 100 अल्पसंख्यक मित्र बनाए हैं. जिन क्षेत्रों में मुस्लिम समुदाय की आबादी ज्यादा है, वहां ये अल्पसंख्यक मित्र बीजेपी की नीतियों का प्रचार-प्रसार करेंगे. किसी भी समुदाय को ऐसे साधने की कोशिश कांग्रेस नहीं कर रही है. कांग्रेस के पास न तो दलित वोटरों को साधने का कोई प्लान है, न ही आदिवासी वर्ग के लिए उनके पास कोई एक्शन प्लान है. गुजरात में नवंबर-दिसंबर में विधानसभा चुनाव हो सकते हैं.
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गुजरात में पाटीदार समुदाय का चुनावों में रोल बहुत अहम है. पाटीदारों के सबसे बड़े नेताओं में शुमार हार्दिक पटेल कांग्रेस छोड़कर बीजेपी के साथ आ गए हैं. हार्दिक पटेल अपने वर्ग के वोटरों को प्रभावित करते हैं. उनके नेतृत्व में चले पाटीदार आंदोलन ने हार्दिक पटेल को राष्ट्रीय पटल पर ला दिया था. वहीं अहमद पटेल के निधन के बाद कांग्रेस के पास गुजरात में कोई प्रभावी चेहरा तक नहीं है. जिग्नेश मेवाणी पर दांव खेलने से कांग्रेस अभी बच रही है. कांग्रेस का ध्यान राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा पर है. विपक्ष तो यह भी कह रहा है कि कांग्रेस एक बार फिर राहुल गांधी की इमेज रिबिल्डिंग कर रही है.
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हिमाचल प्रदेश में क्या कर रही है कांग्रेस?
हिमाचल प्रदेश के लिए भी बीजेपी अहम प्लान तैयार कर चुकी है. वहां भी कांग्रेस अंदरुनी कलह से जूझ रही है. वहीं बीजेपी ने हिमाचल प्रदेश को साधने की अलग रणनीति पर काम कर रही है. बीजेपी का जोर बूथ स्तर पर कार्यकर्ताओं को तैनात करना शुरू कर दिया है. चुनाव प्रभारियों को भी अहम जिम्मेदारी सौंपी जाएगी. चुनावी प्रबंधन की टीमें भी सूबे में एक्टिव हो गई हैं.
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हिमाचल प्रदेश का एक पैटर्न रहा है कि यहां हर चुनाव में एंटी इनकंबेंसी हावी होती है और सत्ता परिवर्तन हो जाता है. नवंबर-दिसंबर में होने वाले चुनाव में भी यह फैक्टर काम कर सकता है. बीजेपी जोर दे रही है कि कैसे हर आदमी तक केंद्र की योजनाओं को पहुंचाया जाए. वहीं कांग्रेस असमंजस में है कि कैसे कलह खत्म किया जाए.
प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष प्रतिभा सिंह और राज्य अभियान समिति के अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू के बीच सत्ता को लेकर संघर्ष चल रहा है. टिकट बंटवारे पर भी इसका असर हो सकता है. इसे सुलझाने के लिए कांग्रेस कोई पहल करती नजर नहीं आ रही है.
न ही सोनिया गांधी, राहुल गांधी या प्रियंका गांधी अभी हिमाचल पर अपना ध्यान भी ले जा रहे हैं. राजनीति के जानकारों का कहना है कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा पार्टी का फोकस चुनावी राज्यों से हटा रही है.
और कहां चूक कर रही है कांग्रेस?
कांग्रेस केंद्र सरकार की कमियां तो अपनी रैली और जनसभाओं में बताती है लेकिन अपने एजेंडे पर बात नहीं करती है. बीजेपी अपने विजन को लेकर बेहद मुखर है. सत्ता में आने पर कांग्रेस का एजेंडा क्या होगा इसे जनता तक समझाने में हर बार पार्टी फेल हो रही है. कांग्रेस यह तथ्य भी स्वीकार नहीं पा रही है कि अब दोनों राज्यों में आम आदमी पार्टी (AAP) एक महत्वपूर्ण फैक्टर है.
गुजरात में भी टीम अरविंद केजरीवाल ने अपनी पैंठ बना ली है. हिमचाल प्रदेश पंजाब का पड़ोसी राज्य है. पंजाब में भारी बहुमत से मिली जीत ने भी हिमाचल प्रदेश में AAP का जनाधार मजबूत किया है. कांग्रेस को विधानसभा चुनावों में बीजेपी के अलावा दूसरे भी फैक्टर्स से जूझना पड़ेगा. इन तथ्यों को कांग्रेस का शीर्ष नेतृ्त्व लगातार नजरअंदाज कर रहा है. सियासत पर पकड़ रखने वाले जानकार कहते हैं कि 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों में पार्टी को दोबारा खड़ा करने की कोशिश कहीं चुनावी राज्यों में कांग्रेस का खेल न बिगाड़ दे.
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