डीएनए हिंदी: बिहार विधानसभा ने 75% आरक्षण का बिल निर्विरोध पास हो गया है. सदन में मौजूद किसी सदस्य ने इसका विरोध नहीं किया. भारतीय जनता पार्टी ने भी इसका समर्थन किया. जतिगत सर्वे रिपोर्ट आने के बाद नीतीश कुमार ने आरक्षण सीमा की घोषणा की थी. नया बिल लागू होने के बाद अनारक्षित कोटा सिर्फ 25% तक रह जाएगा. नीतीश कुमार सरकार के इस फैसले का असर वोट बैंक की राजनीति पर भी बड़े पैमाने पर देखने को मिल सकता है. अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव और फिर 2025 में बिहार विधानसभा चुनाव में यह सरकार के लिए एक बड़ा मुद्दा बनता दिख रहा है. दूसरी ओर अब दूसरे राज्यों में भी आरक्षण के मौजूदा प्रावधान में संशोधन की मांग की जा सकती है.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कास्ट सर्वे रिपोर्ट जारी करने के बाद ही ऐलान किया था कि प्रदेश में आरक्षण के मौजूदा प्रावधानों में बदलाव किया जाएगा. आरक्षण संशोधन विधेयक- 2023 के तहत, सरकारी सेवाओं में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए 15 प्रतिशत अतिरिक्त आरक्षण दिए जाने की व्यवस्था की गई है. बिहार में जेडीयू और आरजेडी गठबंधन की सरकार के इस फैसले को सहयोगी दल क्रांतिकारी कदम बता रहे हैं.
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नए आरक्षण नीति के साथ क्या बदलाव होंगे
नई आरक्षण नीति के तहत, एससी का कोटा 16% से बढ़ाकर 20% करने का प्रस्ताव दिया गया है. एसटी का कोटा 1% से बढ़ाकर 2% किए जाने का प्रस्ताव सरकार की ओर से दिया गया है. बिहार में अब तक ओबीसी, जो आबादी का 27 प्रतिशत है और उन्हें 12 प्रतिशत आरक्षण मिलता है, जबकि अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) जो कि आबादी का 36 प्रतिशत हैं, उन्हें 18 प्रतिशत आरक्षण मिलता है. नए प्रस्ताव में दोनों को मिलाकर आरक्षण सीमा बढ़ाकर 43 फीसदी करने का प्रस्ताव दिया गया था. इसके अलावा आर्थिक आधार पर मिलने वाले आरक्षण की सीमा 10% है. इस तरह से बिहार में अब 75% आरक्षित सीटें होंगी जबकि सामान्य वर्ग के लिए 25% सीटें ही बचेंगी.
नीतीश कुमार ने लोकसभा चुनाव से पहले चल दिया बड़ा दांव?
नीतीश कुमार एनडीए से अलग होकर अब इंडिया गठबंधन में हैं. पहले जाति जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक करने और फिर आरक्षण नीति में बदलाव के साथ उन्होंने एक ही बार में बड़े वोट बैंक को साधने की कोशिश की है. मीडिया में अक्सर चर्चा रहती है कि इंडिया गठबंधन के पीएम फेस के लिए नीतीश चेहरा हो सकते हैं. उनके इस कदम ने एक साथ पैन इंडिया छवि बनाने का भी काम किया है. अब दूसरे राज्यों में भी इसी तरह से आरक्षण सीमा बढ़ाने की मांग की जा सकती है और उदाहरण के तौर पर नीतीश कुमार का नाम लिया जाएगा.
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