सारण बिहार की एक ऐसी लोकसभा सीट जहां सभी समीकरण हुए फेल, क्या रूडी फिर खिलाएंगे कमल या रोहिणी जलाएंगी लालटेन

पूजा मेहरोत्रा | Updated:Apr 03, 2024, 07:29 PM IST

Rajiv Pratap Rudy vs Rohini Acharya

लोकनायक जय प्रकाश नारायण की जन्मभूमि रही ये सारण सीट बिहार की सबसे हाई प्रोफाइल संसदीय सीट रही है. यहां जाति समीकरण हो या फिर लालू यादव का गढ़ माना जाता हो, 2009 से यहां सारे समीकरण फेल होते दिख रहे हैं.

2024 का लोकसभा चुनाव केंद्रीय पार्टी हो या फिर क्षेत्रीय पार्टी राजनीतिक रूप से बहुत ही महत्वपूर्ण है. गठजोड़ की बात करें या फिर जातीय समीकरण की या फिर बात करें उम्मीदवारों के सलेक्शन की सभी चौंकाने वाले साबित हो रहे हैं.

यहां यह देखना बहुत महत्वपूर्ण है कि जब पीएम मोदी परिवारवाद का आरोप लगाते हैं तो उसके पलटवार करते हुए मोदी उसे अपना चुनावी अभियान बना देते हैं. और देखते देखते पिछले तीन बार से यह लहर देश देख भी रही है. 
लालू यादव ने पीएम मोदी को ललकारा और परिवार का पाठ पढ़ाया तो पीएम मोदी ने पूरा देश मेरा परिवार का नारा लगाया और फिर तो अभियान ही चल गया मोदी का परिवार.


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बिहार में पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव और राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री की डॉक्टर बेटी रोहिणी आचार्य बिहार की सारण लोकसभा सीट से उतारा है. रोहिणी आचार्य आरजेडी प्रत्याशी हैं. इस सीट पर रोहिणी की टक्कर बीजेपी प्रत्याशी राजीव प्रताप रूडी से है. राजीव प्रताप रूडी सारण लोकसभा सीट से 4 बार के सांसद है.  इस दौरान राजीव प्रताप रूडी ने लालू यादव की पत्नी राबड़ी देवी और उनके समधी चंद्रिका राय को भी चुनाव में हराया है. हालांकि ऐसा माना जा रहा है कि तेज प्रताप की पत्नी एश्वर्या के साथ लालू परिवार का व्यवहार बड़ा मुद्दा बनेगा.

सारण में पांचवें चरण में 20 मई को मतदान होगा.


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2014 और 2019 में नहीं चला जाति समीकरण

2014 में सारण सीट से बीजेपी के उम्मीदवार राजीव प्रताप रुडी जीते थे. रुडी ने लालू यादव की पत्नी और बिहार की पूर्व सीएम राबड़ी देवी को हराया. चारा घोटाले में सजा होने के बाद लालू यादव की सदस्यता छिन जाने के बाद राबड़ी देवी सारण से चुनाव मैदान में उतरी थीं लेकिन मोदी लहर में जीत बीजेपी के हाथ लगी. राजीव प्रताप रुडी को 3,55,120 वोट मिले थे. जबकि राबड़ी देवी को 3,14,172  वोट. जेडीयू के सलीम परवेज 1,07,008  वोटों के साथ तीसरे नंबर पर रहे थे.

2008 के परिसीमन से पहले इसका नाम छपरा था. छपरा शहर सारण जिले का मुख्यालय तो है ही साथ ही ये सीट राजपूतों और यादवों का गढ़ भी माना जाता है. हालांकि बनिया, मुस्लिम और दलित भी यहां का हिस्सा हैं. यादवों की आबादी 25 फीसदी है जबकि राजपूत 23 फीसदी हैं.  इनके अलावा सारण में वैश्य वोटर 20 प्रतिशत, मुस्लिम 13 प्रतिशत और दलित 12 प्रतिशत हैं. अगर एमवाई समीकरण की बात करें तो इसी समीकरण को मिलाकर लालू यादव चार बार के सांसद रह चुके हैं और उन्होंने 1977 में अपनी संसदीय पारी यहीं से शुरू की थी. इसके बाद 2014 में रावड़ी देवी ने इस सीट से अपना भाग्य आजमाया था लेकिन मोदी लहर में सारे समीकरण फेल होते हुए दिखाई दिए और यही हाल 2019 में भी हुआ जब चंद्रिका राय को करीब एक लाख के मार्जिन से राजीव प्रसाद रूडी ने हराया. और सारे समीकरणों को धत्ता बताकर  6 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त बनाते हुए 51 प्रतिशत वोट हासिल किए. उन्होंने करीब 1.40 लाख वोटों के अंतर से राजद के उम्मीदवार चंद्रिका राय को मात दी थी. 

सारण लोकसभा क्षेत्र में वोटरों की कुल तादाद 1,268,338  है. इसमें से 580,605 महिला मतदाता हैं जबकि 687,733 पुरुष मतदाता हैं.

सारण लोकसभा क्षेत्र में 6 विधानसभा सीटें हैं जिसमें मढ़ौरा, छपरा, गरखा, अमनौर, परसा और सोनपुर शामिल है. आगर बात करें कब्जे की तो इनमें से चार सीटों पर राजद का कब्जा है और दो पर बीजेपी के विधायक हैं. 


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ऐतिहासिक सीट

लोकनायक जय प्रकाश नारायण की जन्मभूमि रही ये सारण सीट बिहार की सबसे हाई प्रोफाइल संसदीय सीट रही है. लोकनायक जयप्रकाश नारायण का जन्म सारण के सिताब दियारा में हुआ था. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री दरोगा राय भी सारण के ही रहने वाले थे. दरोगा राय के बेटे चंद्रिका राय लालू यादव के समधि हैं और उनकी बेटी ऐश्वर्या राय की शादी तेज प्रताप से हुई है.  खुद चंद्रिका परसा विधानसभा सीट से विधायक भी हैं. तीन तीन नदियों गंगा, गंडक एवं घाघरा से घिरा सारण जिला ऐतिहासिक है और यह उपजाऊ भी है.

सोनपुर मेला तो विश्व प्रसिद्ध मेला है ही साथ ही छपरा से महज 11 किलोमीटर दूर चिरांद में 4000 साल पुराना इतिहास भी दर्ज है. 1960 में पुरातत्व विभाग द्वारा की गई खुदाई में कई अवशेष भी मिले थे. यह एक इंडस्ट्रीयल एरिया भी है. मढौरा का चीनी मील और मर्टन मील की बात करें या फिर रेल चक्का कारखाना, डीजल रेल इंजन लोकोमोटिव कारखाना, सारण इंजीनियरिंग, रेल कोच फैक्ट्री की सब यहां मौजूग है. लेकिन यह विडंबना ही है कि इतनी इंडस्ट्री और काम होने के बाद भी शिक्षा और रोजगार के लिए लोग बड़े शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं.

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