Bilkis Bano Case: 'बलात्कार का दोषी वकालत कैसे कर सकता है?' सुप्रीम कोर्ट ने पूछा सवाल

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Aug 25, 2023, 07:39 AM IST

Bilkis Bano Gangrape Case

Bilkis Bano Case: गुजरात सरकार ने बिलकिस बानो सामूहिक बलात्कार केस के 11 दोषियों को पिछले साल अगस्त में 1992 की छूट नीति के आधार पर रिहा किया था.

डीएनए हिंदी: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) उस वक्त हैरान रह गया जब सुनवाई के दौरान बताया गया कि बिलकिस बानो सामूहिक बलात्कार केस के दोषियों में से एक रिहाई के बाद गुजरात में वकालत कर रहा है. 'वकालत को एक नेक पेशा' माने जाने का उल्लेख करते हुए उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को इस बात पर आश्चर्य जताया.

मामला सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में तब आया जब अधिवक्ता ऋषि मल्होत्रा ने समय से पहले रिहा किए गए 11 दोषियों में से एक राधेश्याम शाह को दी गई छूट का बचाव करते हुए जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की पीठ को बताया कि उनके मुवक्किल ने 15 साल से अधिक की वास्तविक सजा काट ली है और राज्य सरकार ने उसके आचरण पर ध्यान देने के बाद उसे राहत दी. दोषी के वकील मल्होत्रा ने कहा, 'आज लगभग 1 साल बीत गया है और मेरे मुवक्किल के खिलाफ एक भी मामला नहीं आया है. वह एक मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण में वकील है. सजा से पहले वह वकील था और उन्होंने फिर से वकालत करना शुरू कर दी है.'

सजा के बाद क्या मिल जाता है वकालत का लाइसेंस?
इसपर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'सजा के बाद क्या वकालत करने का लाइसेंस दिया जा सकता है? वकालत को एक नेक पेशा माना जाता है. बार काउंसिल (ऑफ इंडिया) को यह बताना होगा कि क्या कोई दोषी वकालत कर सकता है. आप मुजरिम हैं, इसमें कोई शक नहीं. आपको दी गई छूट के कारण आप जेल से बाहर हैं. दोषसिद्धि बनी रहती है केवल सजा कम कर दी जाती है.'

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दोषी के वकील ने इस पर कहा, 'मैं इस बारे में पक्के तौर पर नहीं कह सकता.' अधिवक्ता अधिनियम की धारा 24ए में कहा गया है कि नैतिक अधमता से जुड़े अपराध के लिए दोषी ठहराए गए व्यक्ति को वकील के रूप में नामांकित नहीं किया जा सकता है. इसमें यह भी कहा गया है कि नामांकन के लिए अयोग्यता उसकी रिहाई या (मामला) खत्म होने या हटाए जाने के 2 साल की अवधि बीत जाने के बाद प्रभावी नहीं होगी.

गुजरात सरकार ने किए थे रिहा
बता दें कि गुजरात सरकार ने 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो सामूहिक बलात्कार मामले और उसके परिवार के सदस्यों की हत्या के 11 दोषियों को पिछले साल अगस्त में 1992 की छूट नीति के आधार पर रिहा किया था. न कि 2014 में अपनाई गई नीति के आधार पर जो आज प्रभावी है. राज्य 2014 की नीति के तहत सीबीआई द्वारा जांच किए गए अपराध के लिए छूट नहीं दे सकता है या जहां लोगों को बलात्कार या सामूहिक बलात्कार के साथ हत्या का दोषी ठहराया गया है.

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