डीएनए हिंदी: साल 2019 में अनुच्छेद 370 और 35ए को खत्म करके जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को अलग कर दिया गया. साथ ही इन दोनों को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया है. अब तीन साल बाद उम्मीद जताई जा रही है कि साल के आखिर में या अगले साल की शुरुआत में जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव (Jammu Kashmir Assembly Elections) कराए जा सकते हैं. इन तीन सालों में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने परोक्ष रूप से कुछ ऐसे काम किए हैं जिनके लिए कहा जा रहा है कि यह सब कुछ बीजेपी (BJP) अपनी सरकार बनाने के लिए कर रही है. अब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व सीएम रहे गुलाम नबी आजाद (Ghulam Nabi Azad) के कांग्रेस छोड़ने और उनके समर्थन में पांच और पूर्व विधायकों के पार्टी छोड़ देने के बाद इसे और बल मिल रहा है. कहा जा रहा है कि भले ही गुलाम नबी आजाद अपनी पार्टी बनाएंगे लेकिन मदद वह बीजेपी की ही करेंगे.
15 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर को विधानसभा वाला केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया और लद्दाख को बिना विधानसभा का केंद्र शासित प्रदेश. इसी के साथ तय हो गया कि जम्मू-कश्मीर में अब अगले चुनाव तब ही होंगे जब नए सिरे से परिसीमन होगा. परिसीमन में विधानसभा क्षेत्र की सीमाओं में परिवर्तन करना, विधानसभाओं की संख्या घटना या बढ़ाना और नई विधानसभाएं बनाना आदि शामिल होता है.
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परिसीमन ने बदल दी तस्वीर
जम्मू-कश्मीर में जब नया परिसीमन हुआ तो सीटों की संख्या 83 से बढ़ाकर 90 कर दी गईं जबकि लद्दाख क्षेत्र पूरी तरह से बाहर हो चुका था. जम्मू में सीटों की संख्या 37 से बढ़ाकर 43 कर दी गईं और कश्मीर में सिर्फ़ एक सीट बढ़ाई गई और सीटों से संख्या 46 के बजाय 47 हो गई. विपक्ष का आरोप है कि इस तरह से बीजेपी यह कोशिश कर रही है कि मुस्लिमों की आबादी वाले क्षेत्र का प्रतिनिधित्व घटाया जाए और हिंदू बहुल क्षेत्र की सीटें बढ़ाई जाएं ताकि बीजेपी को ज्यादा सीटें जीतने में आसानी हो.
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25 लाख नए वोटर बदलेंगे बीजेपी की किस्मत?
हाल ही में खबरें आईं कि जम्मू-कश्मीर के अगले चुनाव के लिए जो वोटर लिस्ट तैयार हो रही है उसमें मतदाताओं की संख्या 25 लाख ज्यादा होने वाली है. विपक्ष ने तुरंत ही आरोप लगाए कि वह बाहरी मतदाताओं को जम्मू-कश्मीर में वोट देने के अधिकार देकर लोकतंत्र का मजाक बना रही है. इस मुद्दे पर नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारुख अब्दुल्ला के घर लगभग सभी बड़ी विपक्षी पार्टियों की बैठक हुई. बैठक में सभी पार्टियों ने एक सुर में कहा कि बाहरी लोगों को वोटिंग का अधिकार देना सही नहीं है.
गुलाम नबी आजाद का इस्तीफा, बीजेपी के लिए मौका?
जम्मू-कश्मीर में बीजेपी के लिए सबसे बड़ी समस्या चेहरे की है. उसके पास जितने भी नेता हैं वे हिंदू हैं. कोई ऐसा बड़ा नेता नहीं है जो घाटी में भी बीजेपी को कुछ वोट दिला सके. ऐसे में बीजेपी किसी ऐसे शख्स की तलाश में है जो कश्मीर घाटी से उसके लिए कुछ सीटें जीत सके या फिर वह नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी को नुकसान पहुंचाए और बीजेपी का काम बन जाए. गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस छोड़ने के साथ ही ऐलान किया है वह अपनी पार्टी बनाएंगे.
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गुलाम नबी आजाद जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम रहे हैं. उनके समर्थन में पांच और पूर्व विधायकों ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया है. इसीलिए कयास लगाए जा रहे हैं कि गुलाम नबी आजाद बीजेपी के लिए किंग नहीं किंगमेकर की भूमिका निभाने वाले हैं. अगर वह अपने कुछ पुराने सहयोगियों को लेकर कश्मीर घाटी में चुनाव लड़े और 8-10 सीटें जीतने में कामयाब हो गए तो जाहिर सी बात है कि बीजेपी उनको हरियाणा के दुष्यंत चौटाला की तरह की बड़ा ऑफर देकर अपने पाले में कर सकती है.
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