'सवर्ण परिधान' में सामने आई BR Ambedkar की फोटो, किताब के कवर पर केरल में बवाल

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Aug 19, 2022, 10:46 PM IST

भीमराव अंबेडकर की इसी तस्वीर पर मचा है सियासी बवाल.

महापुरुषों की तस्वीरों पर सियासी बवाल नई बात नहीं है. आमतौर पर नीले ड्रेस में छापी जा रही तस्वीरों के बीच अंबेडकर की एक तस्वीर पर केरल में सियासी हंगामा बरपा है. आखिर क्या है वजह, आइए समझते है.

डीएनए हिंदी: कपड़े किसी वर्ग विशेष के नहीं होते. आज़ाद भारत में कोई भी पोशाक, किसी भी वर्ग विशेष का व्यक्ति पहन सकता है. भारतीय संविधान ने  न तो सर्वणों के लिए किसी खास तरह की पोशाक तय की है, न ही पिछड़ों के लिए. दलित, आदिवासी और मुसलमानों के लिए भी नहीं. सियासत कपड़ों पर भी हो सकती है क्योंकि ऐसा ही एक मामला केरल से आया है. मलयाली मेमोरियल किताब के कवर पर छपी भीम राव अंबेडकर (BR Ambedkar) की एक तस्वीर पर जमकर हंगामा बरपा है.

किताब के कवर पेज पर अंबेडर धोती और शर्ट पहने नजर आ रहे हैं. कसवु धोती को लोग दक्षिण भारत में व्यापक तौर पर पहनते हैं इसे लेकिन सर्वण पोशाक के तौर पर चिन्हित किया गया है. डीसी बुक्स की इस किताब पर हंगमा बरपा है.

अंबेडकर जिस घर में बैठे नजर आ रहे हैं वह किसी सामंती परिवार की तरह नजर आ रहा है. उनके कंधे पर एक गमछा भी नजर आ रहा है. घर की पृष्ठभूमि सामंती परिवेश की है.

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क्यों आहत हैं अंबेडकर के समर्थक?

पाठकों के एक वर्ग का कहना है कि कथित सवर्ण जातियों में शुमार नायर समुदाय अंबेडकर की विरासत को हासिल करना चाहता है. यही उन्हें अपनाने का एक जानबूझकर किया गया प्रयास है. वहीं एक दूसरे समूह का कहना है कि यह एक मार्केटिंग रणनीति है.

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विवाद भड़कने के बाद दलित एक्टिविस्ट सनी एम कपिकाड ने मीडिया से कहा कि ऐसी तस्वीरों को दर्शना एक तरह का अपराध है. उनके कहने का इशारा इस ओर था कि जिस व्यवस्था के खिलाफ अंबेडकर हमेशा से मुखर रहे, उसी का हिस्सा बनाना दुर्भाग्यपूर्ण है.

'अंबेडकर की ऐसी तस्वीर भी दिखाना अपराध'

सनी एम कपिकाड ने एक न्यूज चैनल से हुई बातचीत में कहा, 'यह एक अपराध है क्योंकि यह अंबेडकर का अनुसरण करने वालों पर हमला है. नायरों के पैतृक गृह में अंबेडकर के बैठाते हुए दिखाने की कल्पना भी अपने आप में एक हमला है.'

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सनी एम कपिकाड ने कहा, 'यहां महात्मा गांधी की तस्वीर भी है लेकिन यह एक परिचित गांधी हैं. हमने शुरुआती वर्षों में गांधी को कोट और सूट में देखा है, लेकिन अम्बेडकर के साथ ऐसा नहीं है. मेरा मानना ​​है कि यह एक साजिश है. अम्बेडकर पर एक पहचान जबरन थोपने और कब्जा करने की कोशिश की जा रही है. विवाद के जरिए बाजार को लुभाने की कोशिश की जा रही है.'

क्या है लेखक की सफाई?

दलित कार्यकर्ताओं ने भी सवाल उठाया है कि डीसी बुक्स जैसे स्थापित प्रकाशन इस तरह के कदम का समर्थन कैसे कर सकते हैं. डीसी बुक्स की ओर से प्रकाशित मलयाली मेमोरियल को लघु कथाकार उन्नी आर ने लिखा है. वहीं उन्नी आर कहा है कि दर्शकों को कवर की प्रासंगिकता को समझने के लिए किताब को पहने पढ़ना चाहिए.

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