DNA TV Show: 92 साल की उम्र में सलीमन अम्मा ने दी परीक्षा, पढ़ने की ऐसी जिद जान दिल खुश हो जाएगा 

Written By डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated: Sep 28, 2023, 11:17 PM IST

Saliman Amma

DNA Positive News: हम सबने कभी न कभी तो यह जरूर सुना होगा कि शिक्षा से घर रौशन होते हैं. किसी भी समाज की प्रगति वहां के शिक्षा स्तर से मापी जा सकती है. शिक्षा के इसी महत्व को समझते हुए 92 साल की सलीमन अम्मा ने सबके लिए आदर्श पेश किया है.  

डीएनए हिंदी: कहते हैं कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती है. उम्र के जिस दौर में आप नई शुरुआत करना चाहें तो वाकई कर सकते हैं और बात पढ़ाई की हो, तो शिक्षित होने के लिए हर उम्र ठीक है. तभी को कहा जाता है कि

जरूरी नहीं कि रोशनी चिरागों से ही हो, शिक्षा से भी घर रोशन होते हैं 
यानि शिक्षा की रोशनी ऐसी रोशनी है, जो अंधेरे में भी रास्ता दिखा सकती है. 

बुलंदशहर की रहने वाली बयानवें वर्ष की सलीमन अम्मा इस बात को भलीभांति समझती हैं. शायद इसलिए वो उम्र के इस पड़ाव में भी भारत सरकार के साक्षरता अभियान से जुड़ीं और साक्षर बनीं. सलीमन अम्मा न केवल बैसाखी का सहारा लेकर, नव भारत साक्षर परीक्षा केंद्र पहुंचीं, बल्कि उन्होंने कांपते हाथों से परीक्षा में हिस्सा भी लिया. उनकी कहानी ऐसे सभी लोगों के लिए मिसाल है, जो बचपन में नहीं पढ़ सके लेकिन अब शुरुआत करना चाहते हैं. 

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DNA TV Show में उनकी कहानी के बारे में बताया गया जिसे जानकर भारत के हर नागरिक को गर्व बोगा. सलीमन अम्मा बचपन से पढ़ना चाहती थीं, लेकिन परिवार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया.  14 वर्ष की छोटी उम्र में सलीमन का निकाह कर दिया गया. फिर वो घरबार में ऐसे उलझीं की पढ़ने का उनका सपना चकनाचूर हो गया लेकिन अब सलीमन अम्मा पढ़ सकती हैं. न सिर्फ उन्होंने उम्र के इस दौर में अपनी पढ़ाई शुरू की बल्कि वह पूरे उत्साह से परीक्षा ङी देती थीं. 

भारत साक्षऱ अभियान के तहत की पढ़ाई
एक वक्त था जब सलीमन पैसों का हिसाब भी नहीं कर पाती थी लेकिन नव भारत साक्षर अभियान ने अब उन्हें गिनती गिनने लायक साक्षर बना दिया है. इसके अलावा, अब वह अपने हस्ताक्षर समेत अक्षरों को पहचान और लिख सकती हैं. किसी भी समाज की तरक्की मापने का आधार महिलाओं की साक्षरता दर मानी जाती है. सलीमन अम्मा की पढ़ने के लिए ललक बदलते भारत की तस्वीर भी कही जा सकती हैं जहां वह बुढ़ापे में बस आराम नहीं करना चाहती हैं, बल्कि पढ़ना-लिखना चाहती हैं.

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परीक्षा देने के लिए भी पहुंची अम्मा
बुलंदशहर में नव साक्षर परीक्षा आयोजित कराई गई थी. इसमें सलीमन अम्मा ने भी कांपते हाथों से पेंसिल थामी और सवालों के जवाब दिए थे. परीक्षा में चित्र आधारित सवाल पूछे गए जिनका सलीमन अम्मा ने सही जवाब दिया.  सच ही है कि पढ़ने-लिखने की कोई उम्र नहीं होती है.  इंसान किसी भी उम्र में पढ़कर साक्षर बन सकता है. 92 वर्ष की सलीमन अम्मा ने भी ये साबित कर दिखाया है. उनकी कहानी बदलते भारत के हर नागरिक के लिए प्रेरणा है.

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