क्या मुसलमानों के खिलाफ है CAA कानून? जानिए इस तरह के 5 जरूरी सवालों के जवाब

Written By कविता मिश्रा | Updated: Mar 11, 2024, 11:18 PM IST

CAA Notification (File Photo)

CAA Notification: सीएए को लेकर केंद्र सरकार ने अधिसूचना जारी कर दी है. नागरिकता पाने की पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन ही रखी गई है.

नागरिकता संशोधन कानून (CAA) को केंद्र की मोदी सरकार के द्वारा लागू किया जा चुका है. इसके लिए सरकार की तरफ से नोटिफिशन जारी कर दी गई है. इससे पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता मिलने का रास्ता साफ हो गया है. नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 एक ऐसा कानून है, जिसके तहत दिसंबर 2014 से पहले तीन पड़ोसी देश पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत में आने वाले छह धार्मिक अल्पसंख्यकों (हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई) को नागरिकता दी जाएगी. इसके लिए आवेदन की प्रक्रिया पूरी तरह से ऑनलाइन रखी गई है. आवेदन के लिए आवेदक को किसी अतिरिक्त दस्तावेज की आवश्यकता नहीं होगी. CAA से जुड़ें कई सवाल लोगों के मन में हैं, ऐसे में हम आपको CAA कानून से जुड़ें 5 जरूरी सवालों के जवाब देंगे... 

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने CAA को ‘आशा की एक नई किरण’ बताते हुए कहा था कि नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019 हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के उन लोगों को आशा की एक नई किरण देगा. जो पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में धर्म के आधार पर उत्पीड़न का सामना करने के बाद भारत आ गए हैं. गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि CAA भारत में किसी भी अल्पसंख्यक के खिलाफ नहीं है और हर एक भारतीय नागरिक के अधिकारों को समान रूप से संरक्षित किया जाएगा.


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नागरिकता कानून क्या करता है?

कानून के अनुसार किसी को भारत की नागरिकता अपने आप नहीं मिलती है. इसके लिए आपको अप्लाई करना होता है. जिसमें शर्त है कि वो भारत में पांच साल रह चुके हैं. इसके साथ उन्हें यह साबित करना होगा कि वो भारत में 31 दिसंबर 2014 से पहले आए हैं. ये साबित करना होगा कि वो अपने देशों से धार्मिक उत्पीड़न के कारण भागकर अपने देशों से आए हैं. वो उन भाषाओं को बोलते हैं जो संविधान की आठवीं अनुसूची में है और नागरिक कानून 1955 की तीसरी सूची की अनिवार्यताओं को पूरा करते हों. 


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नागरिकता संशोधन कानून क्या है?

नागरिकता संशोधन विधेयक से अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई अवैध प्रवासियों को नागरिकता के लिए पात्र बनाने के लिए नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन किया गया है. इस कानून में मुस्लिमों को शामिल नहीं किया गया है, इसमें सिर्फ बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के उन अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है, जिनमें हिंदू, बौद्ध, सिख, ईसाई, जैन और पारसी शामिल हैं. ये अल्पसंख्यक पिछले कई सालों से भारत में शरणार्थी बनकर रह रहे हैं. यह नागरिकता देने का कानून है, CAA से किसी भी भारतीय नागरिक के नागरिकता नहीं जाएगी, चाहे वह किसी भी धर्म का हो. यह कानून केवल उन लोगों के लिए है जिन्हें वर्षों से उत्पीड़न सहना पड़ा. 

भारत शरणार्थियों को किस प्रकार का वीज़ा जारी करता है?

भारत यह सुनिश्चित करता है कि शरणार्थी भारतीय लोगों के समान सुरक्षा सेवाओं तक पहुंच प्राप्त कर सकेंं. जो शरणार्थी पात्रता नहीं रखते (धर्म के बगैर भी) वो भारत की तदर्थ शरणार्थी नीति के साथ सुरक्षित रहते रहेंगे. भारत में रहने के लिए शरणार्थियों को लंबी अवधि के लिए वीजा जारी करता है. यूएन रिफ्यूजी एजेंसी यूएनएचसीआर के अनुसार, म्यांमार (बर्मा) , श्रीलंका, अफगानिस्तान आदि देशों के बहुत से शरणार्थी भारत में रह रहे हैं, जिन्हें किसी भी प्रकार की समस्या नहीं हैं. सरकार का कहना है कि यह कानून मुस्लिमों के लिए नहीं हैं, जिन शरणार्थीयों के देश में सबकुछ ठीक हो गया है, वह वापस अपने देश जा सकते हैं. 

रोहिंग्या मुद्दे से कैसे निपट रही है सरकार?

 म्यांमार की बहुसंख्यक आबादी बौद्ध है, जबकि रोहिंग्याओं को मुख्य रूप से अवैध बांग्लादेशी प्रवासी माना जाता है. हालाकिं, लंबे समय से वे म्यांमार के रखाइन प्रान्त में रह रहे हैं. बौद्धों का मानना यह है कि बांग्लादेश से भागकर आए रोहिंग्याओं को वापस वहीं चले जाना चाहिए. रोहिंग्याओं के साथ-साथ वैश्विक समुदाय आज जहां भारत से उम्मीद लगाए बैठा है कि वह राज्यविहीन रोहिंग्याओं को शरण देगा, वहीं भारत सरकार का गृह मंत्रालय देश में पहले से मौजूद रोहिंग्याओं को वापस भेजने के लिये कमर कस चुका है. रोहिंग्या वास्तविक तौर पर अविभाजित भारत के समय भारत आए थे, तब जबकि ब्रिटेन ने बर्मा पर कब्जा कर लिया. इसलिए बर्मा उन्हें अपने जातीय ग्रुप और योग्य नागरिकता में नहीं रखते.भारत में रोहिंग्या को शरणार्थी प्रोटेक्शन और लॉन्ग टर्म वीज़ा मिला हुआ है. लेकिन वो नागरिकता के योग्य नहीं होंगे.


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क्या मुसलमानों के खिलाफ है CAA कानून?

नागरिकता संशोधन कानून (CAA) को लेकर मुस्लिम समुदाय के कई संगठनों ने भारी विरोध किया. मुस्लिमों का कहना है कि मोदी सरकार ने उनके साथ भेदभाव किया है. इस कानून से मुस्लिमों को बाहर रखना गलत है. यह समानता के अधिकार के खिलाफ है और इससे देश की एकता और अखंडता को नुकसान पहुंचेगा. CAA के बहाने मुसलमानों को प्रताड़ित किया जा सकता है. कई मुस्लिम संगठनों का मानना है कि CAA से पूर्वोत्तर के राज्यों की डेमोग्राफी बदल सकती है. वहीं, गृहमंत्री अमित शाह ने नागरिकता संशोधन कानून को लेकर संसद में बताया था कि अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश मुस्लिम देश हैं। वहां धर्म के नाम पर बहुसंख्यक मुस्लिमों का उत्पीड़न नहीं होता है, जबकि इन देशों में हिंदुओं समेत अन्य समुदाय के लोगों को धर्म के आधार पर प्रताड़ित किया जाता है. इसलिए इन देशों के मुस्लिमों को नागरिकता कानून में शामिल नहीं किया गया है. उन्होंने बताया था कि चूंकि मुस्लिम इन देशों में बहुसंख्यक हैं, इसीलिए उन्हें इस कानून में शामिल नहीं किया गया फिर भी यदि इन देशों के मुस्लिम भारतीय नागरिकता चाहते हैं तो वह नियमानुसार आवेदन कर सकते हैं, जिस पर सरकार विचार करेगी.

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