पश्चिम बंगाल की ममता सरकार को उस वक्त बड़ा झटका लगा, जब कलकत्ता हाईकोर्ट ने बुधवार को 2010 के बाद के जारी सभी ओबीसी सर्टिफिकेट (OBC Certificate) को रद्द करने का फैसला सुनाया. कोर्ट ने कहा कि ये सर्टिफिकेट किसी नियम का पालन किए बिना दिए गए थे. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि जिन लोगों को इस OBC सर्टिफिकेट के जरिए नौकरियां मिली थी, उनका क्या होगा?
सबसे पहले हम पश्चिम बंगाल में ओबीसी आरक्षण का गणित समझते हैं. ममता सरकार ने 2012 में एक कानून लागू किया था. इसमें ओबीसी वर्ग के लोगों को नौकरियों में आरक्षण देने का प्रावधान किया गया था. इस कानून तहत 2 कैटेगरी बनाई गई OBC-A और OBC-B, जिसमें कई जातियों को शामिल किया गया था. लेकिन इसके प्रावधान को लेकर कोर्ट में चुनौती दी गई. जिसके बाद कोर्ट ने इस प्रावधान को रद्द कर दिया.
ममता सरकार ने OBC की बनाई थी 2 कैटेगरी
कोर्ट ने कहा था कि राज्य सरकार ने जो ओबीसी सर्टिफिकेट जारी किए उसमें 1993 के पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग आयोग के नियमों का पालन नहीं किया गया. ममता सरकार पश्चिम बंगाल में OBC वर्ग को 17 फीसदी आरक्षण देती है. इस आरक्षण को दो हिस्सों में बांटा गया था. एक हिस्से में ओबीसी-ए और दूसरी में ओबीसी-बी. सरकार ने OBC-A कैटेगरी में 81 जातियों के शामिल किया. इसमें 56 मुस्लिम जातियां हैं.
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वहीं, दूसरी कैटेगरी OBC-B में 99 जातियां हैं, जिसमें 41 जातियां मुस्लिम हैं. हाईकोर्ट ने कहा गया कि 77 मुस्लिम जातियों को पिछड़ा वर्ग में शामिल करके सरकार ने उनका अपमान किया है. यह सिर्फ चुनावी वोट बैंक बढ़ाने के लिए ऐसा किया गया.
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अगर राज्य सरकार OBC की लिस्ट बनाती है तो उसे 1993 के कानून के तहत पिछड़ा वर्ग आयोग की राय लेना अनिवार्य होगा.
सर्टिफिकेट रद्द पर कितने लोगों की नौकरी जाएगी?
हाईकोर्ट के इस फैसले का लगभग 5 लाख लोगों पर पड़ेगा. मतलब कि जिन लोगों का 2010 से 2024 के बीच ओबीसी सर्टिफिकेट जारी किया गया वो अब अमान्य माना जाएगा. लेकिन कोर्ट ने साथ ही यह भी स्पष्ट कहा कि इस दौरान जिन्हें भी सरकारी नौकरी मिली, वह सुरक्षित रहेगी. यानी उनकी नौकरी नहीं जाएगी. उच्च न्यायालय ने कहा कि उनकी भर्ती प्रक्रिया और नौकरी पर कोई असर नहीं पड़ेगा.
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