डीएनए हिंदी: लोकसभा चुनाव से चंद महीने पहले ही बिहार सरकार ने जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी करके मास्टर स्ट्रोक खेला जा रहा है. बिहार में गठबंधन सरकार चला रही राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) और जनता दल यूनाइटेड को उम्मीद है कि इससे उन्हें फायदा होगा. अलग-अलग राजनीतिक दलों की ओर तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि बिहार से पहले जिन राज्यों में जाति आधारित जनगणना की गई, उनका क्या हुआ? विपक्ष केंद्र की मोदी सरकार पर लगातार दबाव बना रहा है कि वह भी जातिगत जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक करे और इसी के हिसाब से आरक्षण का भी इंतजाम करे.
दरअसल, बिहार में लालू यादव और नीतीश कुमार खुद को पिछड़ों और अति पिछड़ों का नेता बताते रहे हैं. नीतीश कुमार ही थे जिन्होंने बिहार में अति पिछड़ा वर्ग की अलग कैटगरी बनाई थी. इस जनगणना में भी सामने आया है कि सबसे ज्यादा जनसंख्या अति पिछड़ा वर्ग की ही है. यही वजह है कि जेडीयू और आरजेडी का गठबंधन काफी उत्साहित है. वहीं, बीजेपी इसे धोखा बता रही है.
कर्नाटक
साल 2014 में कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार ने सामाजिक और शैक्षिक सर्वेक्षण कराने का फैसला लिया था. इसका मकसद ओबीसी के आरक्षण पर निर्णय लेना था. साल 2015 में सर्वे भी हुआ और जून 2016 तक इसकी रिपोर्ट जारी होनी थी लेकिन से कभी सार्वजनिक नहीं किया गया.
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तेलंगाना
साल 2021 में तेलंगाना के पिछड़ा वर्ग राज्य आयोग ने ओबीसी का सर्वेक्षण कराने का फैसला किया. इशमें तमाम एजेंसियों को शामिल करने की योजना थी लेकिन अभी तक इसकी कोई कार्य योजना सामने नहीं आई है.
ओडिशा
ओडिशा ने हाल ही में जाति आधारित सर्वेक्षण पूरा किया है. 1 मई से शुरू हुए इस सर्वेक्षण के लिए डेटा जुटा लिया गया है लेकिन अभी उसे सार्वजनिक नहीं किया गया है.
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बीते कुछ सालों में हरियाणा, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश ने भी खुद के ओबीसी सर्वेक्षण किए. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के सर्वेक्षण में गलती पाई और उसके आधार पर आरक्षण लागू करने से रोक दिया. बता दें कि साल 1951 के बाद से हर जनगणना में जाति सर्वेक्षण की मांग उठती रही है. अभी तक जो जातिगत आंकड़े चल रहे हैं वे 1931 की जनगणना के ही हैं.
2011 की जनगणना में क्या हुआ?
भारत में आखिरी जनगणना साल 2011 में ही हुई थी. तब की यूपीए सरकार ने सामाजिक आर्थिक जाति जनगणना (SECC) की योनजा बनाई थी. ग्रामीण विकास मंत्रालय ने ग्रामीण क्षेत्र में और शहरी क्षेत्रों में आवास और शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्रालय ने सर्वे किया. आंकड़े 2016 में प्रकाशित भी किए गए लेकिन इनमें जाति का डेटा जारी नहीं किया गया.
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जातिगत आंकड़े सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय को सौंपे गए थे. मंत्रालय ने इसे वर्गीकृत करने के लिए एक स्पेशल समूह बनाया. हालांकि, इसकी रिपोर्ट आज तक सार्वजनिक नहीं की गई. 2016 में लोकसभा के स्पीकर को सौंपी गई रिपोर्ट में कहा गया कि जाति और धर्म आधारित डेटा 98.89 प्रतिशत बिना गलती वाला है. हालांकि, बाकी में गलतिया हैं इसलिए राज्यों को सुधार करने के लिए कहा गया है.
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