डीएनए हिंदी: नदियां सभ्यता की जननी होती हैं. यह सिर्फ कही गई बात नहीं बल्कि इतिहास द्वारा स्थापित तथ्य है. भारत में ही तमाम शहर नदियों के किनारे बसे हैं. नदियों के पानी से ही आज भी बहुत सारी परियोजनाएं चलती हैं. नदियों के पानी से ही बिजली बनती है, सिंचाई होती है और सैकड़ों शहर महानगर बनने के रास्ते पर चल पड़ते हैं. ऐसी ही एक नदी है कावेरी. दक्षिण भारत में बहने वाली इस नदी को पवित्र नदियों में गिना जाता है. 805 किलोमीटर लंबी कावेरी नदी पश्चिमी घाट के ब्रह्मगिरि पर्वत से निकलती है और कर्नाटक, तमिलनाडु से होते हुए बंगाल की खाड़ी में गिर जाती है.
आधुनिक युग में नदियों का बहना इतना सरल नहीं रह गया है. राज्यों की सीमाएं बांटी गई हैं, प्राकृतिक संसाधन भी बांटे गए हैं. जाहिर है जहां बंटवारा होता है, वहां विवाद अपने-आप पैदा हो ही जाता है. ऐसा ही विवाद कावेरी नदी के पानी को लेकर कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच में है. दशकों से इस विवाद को सुलझाने के तमाम प्रयास किए गए लेकिन हर बार 'प्यास' जीत जाती है और सारे समझौते धरे रह जाते हैं. आइए इस नदी के बारे में विस्तार से जानते हैं.
यह भी पढ़ें- खालिस्तान समर्थकों पर टूट पड़ी NIA, देशभर में दर्जनों ठिकानों पर छापेमारी
कहां से कहां तक बहती है कावेरी नदी?
यह नदी कर्नाटक में ही पश्चिमी घाट के पहाड़ों पर ब्रह्मगिरी से निकलती है. शिस्सा, हेमवती, होनुहोल, अर्कावती, कपिला, लक्षमा तीर्था, काबिनी, लोकापवानी, भवानी, नोयिल और अमरावती नदियां इसकी सहायक नदियां हैं. कावेरी नदी का बेसिन लगभग 72 हजार वर्ग किलोमीटर का है. कर्नाटक और तमिलनाडु के अलावा यह नदी थोड़ा बहुत केरल और पुडुचेरी को भी छूती है इसलिए यह विवादों की वजह भी बनती है.
तमिलनाडु में बंगाल की खाड़ी में गिरने से पहले यह नदी कई हिस्सों में बंट जाती है. 21 मुख्य नदियां ऐसी हैं जो इसकी सहायक हैं. कर्नाटक से तमिलनाडु के बीच छोटे-बड़े मिलाकर कुल 100 से ज्यादा डैम इस नदी पर बनाए गए हैं. कुछ बड़े डैम ऐसे हैं जहां पानी रोका जा सकता है और वहां से पानी छोड़ा जाता है. इन्हीं बांधों की वजह से हर बार नदी के पानी के बंटवारे को लेकर विवाद होता है.
यह भी पढ़ें- सूरज और चांद के बाद यहां जाएगा भारत, ISRO ने बताया प्लान
क्या है कावेरी जल विवाद?
कर्नाटक में बना कृष्ण राज सागर बांध और तमिलनाडु का मेटुर बांध इस विवाद में काफी अहम है. साल 1892 और 1924 में मद्रास प्रेसीडेंसी और मैसूर के बीच हुए समझौते के तहत नदी के पानी के बंटवारे की बात हुई थी. इसी को लेकर हो रहे विवादों को निपटाने के लिए साल 1990 में कावेरी जल विवाद अधिकरण बनाया गया. इसी CWLT कर्नाटक को आदेश दिया कि वह एक साल में इतना पानी छोड़े कि तमिलनाडु के मेटूर रेजरवायर में 205 मिलियिन क्यूबिक फीट पानी सुनिश्चित हो.
हर बार विवाद यही होती है कि तमिलनाडु ज्यादा पानी छोड़ने की मांग करता है और कर्नाटक अपनी जरूरतें बताकर पानी छोड़ने में आनाकानी करता है. इस बार भी यही विवाद है और तमिलनाडु आरोप लगा रहा है कि कर्नाटक ने पानी नहीं छोड़ा है.
देश-दुनिया की ताज़ा खबरों Latest News पर अलग नज़रिया, अब हिंदी में Hindi News पढ़ने के लिए फ़ॉलो करें डीएनए हिंदी को गूगल, फ़ेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम पर.