Chandrayaan-3: ISRO ने समझाया, चंद्रमा की बेहतर समझ में रंभा-इल्सा कैसे करेंगे मदद?

Written By डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated: Jul 15, 2023, 06:13 AM IST

Chandrayaan-3

Chandrayaan-3 Launch: ISRO प्रमुख के अनुसार, 23 अगस्त को चंद्रमा की सतह पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ कराने की योजना बनाई गई है. अगर सफलता मिली तो भारत ये कारनामा करने वाला चौथा देश होगा.

डीएनए हिंदी: Chandrayaan-3 Launch- भारत का तीसरा मून मिशन चंद्रयान-3 लॉन्च हो गया है. यह करीब 42 दिन बाद चंद्रमा पर लैंड करेगा. चंद्रयान-3 अपने साथ 6 डिवाइस लेकर गया है जो चंद्रमा की मिट्टी से संबंधित समझ बढ़ाने और लूनर ऑर्बिट से नीले ग्रह की तस्वीरें लेने में इसरो की मदद करेंगे. भारत के इस तीसरे चंद्र मिशन का लक्ष्य चंद्रमा की सतह पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करना है, जो भविष्य के अंतर-ग्रहीय अभियानों के लिए मार्ग प्रशस्त करेगा. चंद्रयान-3 के उपकरणों में 'रंभा' और 'इल्सा' भी शामिल हैं, जो 14-दिवसीय मिशन के दौरान सिलसिलेवार ढंग से ‘पथ-प्रदर्शक’ प्रयोगों को अंजाम देंगे. ये चंद्रमा के वायुमंडल की स्टडी करेंगे और इसकी खनिज संरचना को समझने के लिए सतह की खुदाई करेंगे.

लैंडर ‘विक्रम’ तब रोवर ‘प्रज्ञान’ की तस्वीरें लेगा जब यह कुछ उपकरणों को गिराकर चंद्रमा पर भूकंपीय गतिविधि का अध्ययन करेगा. लेजर बीम का उपयोग करके यह प्रक्रिया के दौरान उत्सर्जित गैस का अध्ययन करने के लिए चंद्र सतह के एक टुकड़े ‘रेजोलिथ’ को पिघलाने की कोशिश करेगा. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) का 15 वर्ष में यह तीसरा चंद्र मिशन है जिसने शुक्रवार को अपराह्न दो बजकर 35 मिनट पर श्रीहरिकोटा से चंद्रमा की ओर अपनी यात्रा शुरू की. 5 अगस्त को इसके चंद्र कक्षा में पहुंचने की उम्मीद है. यह 23 अगस्त की शाम को चंद्रमा पर उतरने का प्रयास करेगा.

इसरो अध्यक्ष एस सोमनाथ ने कहा, "हम जानते हैं कि चंद्रमा पर कोई वायुमंडल नहीं है. लेकिन यह पूरी तरह सच नहीं है क्योंकि इससे गैस निकलती हैं. वे आयनित हो जाती हैं और सतह के बहुत करीब रहती हैं. यह दिन और रात के साथ बदलता रहता है." लैंडर के साथ लगा उपकरण ‘रेडियो एनाटॉमी ऑफ मून बाउंड हाइपरसेंसिटिव आयनोस्फीयर एंड एटमॉस्फियर (रंभा) चंद्र सतह के नजदीक प्लाज्मा घनत्व और समय के साथ इसके बदलाव को मापेगा. सोमनाथ ने कहा कि रोवर अध्ययन करेगा कि यह छोटा वातावरण, परमाणु वातावरण और आवेशित कण किस तरह भिन्न होते हैं. यह बहुत दिलचस्प है. हम यह भी पता लगाना चाहते हैं कि रेजोलिथ में विद्युत या तापीय विशेषताएं हैं या नहीं." 

ILSA का क्या होगा कार्य?
इंस्ट्रूमेंट फॉर लूनर सिस्मिक एक्टिविटी (ILSA) लैंडिंग स्थल के आसपास भूकंपीयता को मापेगा और चंद्र परत एवं आवरण की संरचना का अध्ययन करेगा. इसरो प्रमुख ने कहा  कि हम एक उपकरण गिराएंगे और कंपन को मापेंगे जिसे आप 'मूनक्वेक' (चंद्र भूकंप) व्यवहार या आंतरिक प्रक्रियाएं कहते हैं. लेजर-इंड्यूस्ड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप (लिब्स) लैंडिंग स्थल के आसपास चंद्र मिट्टी और चट्टानों की मौलिक संरचना का पता लगाएगा, जबकि ‘अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर’ (एपीएक्सएस) चंद्र सतह की रासायनिक संरचना और खनिज संरचना संबंधी अध्ययन करेगा. स्पेक्ट्रो-पोलरिमेट्री ऑफ हैबिटेबल प्लैनेट अर्थ (शेप) नामक उपकरण निकट-अवरक्त तरंगदैर्ध्य रेंज में अध्ययन करेगा, जिसका उपयोग सौर मंडल से परे एक्सो-ग्रहों पर जीवन की खोज में किया जा सकता है.

लैंडर का चंद्र सतह पर उतरने का समय काफी मायने रखता है क्योंकि इससे उपकरणों के अध्ययन करने की अवधि का निर्णय होता है. चंद्रयान-3 अपने लैंडर को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास 70 डिग्री अक्षांश पर उतारेगा जहां इसके रात होने से पहले एक चंद्र दिवस (धरती के 14 दिन के बराबर) तक रहने की उम्मीद है. चंद्रमा पर रात का तापमान शून्य से 232 डिग्री सेल्सियस नीचे तक गिर जाता है. सोमनाथ ने कहा, "तापमान में भारी गिरावट आती है और प्रणाली के रात के उन 15 दिनों तक बरकरार रहने की संभावना को देखना होगा. अगर यह उन 15 दिनों तक बरकरार रहती है और नए दिन की सुबह होने पर बैटरी चार्ज हो जाती है, तो यह संभवतः अंतरिक्ष यान के जीवन को बढ़ा सकता है. 

23 अगस्त को चंद्रमा की सतह पर होगी लैंडिंग
ISRO प्रमुख के अनुसार, 23 अगस्त को शाम 5.47 बजे चंद्रमा की सतह पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ कराने की योजना बनाई गई है. अगर सॉफ्ट लैंडिंग में सफलता मिलती है तो भारत ऐसी उपलब्धि हासिल कर चुके अमेरिका, चीन और पूर्ववर्ती सोवियत संघ जैसे देशों के क्लब में शामिल होने के साथ ही ऐसा कीर्तिमान रचने वाला विश्व का चौथा देश बन जाएगा. चंद्रयान-2 ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ में सफल नहीं रहा था, इसलिए चंद्रयान-3 और अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है जिसकी सफलता के लिए पूरा देश प्रतीक्षा और प्रार्थना कर रहा है. (इनपुट- भाषा)

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