डीएनए हिंदी: भारत का चंद्रयान-2 मिशन साल 2019 में फेल हो गया था. तब लैंडिग ठीक तरीके से नहीं हो पाई थी. ऐसे में इस बार तमाम एहतियात बरती जा रही हैं ताकि चंद्रयान के लैंडर विक्रम की लैंडिंग बिल्कुल सटीक हो. लैंडिग के उन आखिरी 17 मिनट में लैंडर की स्पीड को कंट्रोल कर पाना ही सबसे अहम और चुनौती भरा काम है. उम्मीद जताई जा रही है कि इस बार भारत को सफलता जरूर मिलेगी और चंद्रयान सफलतापूर्वक अपने अभियान को पूरा करेगा. लैंडिंग के बाद यह मिशन 14 दिनों तक काम करेगा और चांद से तमाम जानकारियां जुटाकर धरती तक भेजेगा.
इस मौके पर इसरो के पूर्व वैज्ञानिक वाई एस राजन ने कहा है कि पिछली बार की तुलना में इस बार लगभग 80 प्रतिशत बदलाव किए गए हैं. इस बार एक वेलोसिटी मीटर भी जोड़ा गया है जो स्पीड और ऊंचाई को मापकर खुद को कंट्रोल कर सकता है. पिछली बार लैंडिंग के समय ही लैंडर ने खुद पर से कंट्रोल खो दिया था और क्रैश कर गया था. ऐसे में इस बार भी लैंडिंग का समय ही सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण होने वाला है.
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कैसे लैंड करेगा लैंडर विक्रम?
इसरो ने बताया है कि लैंडिंग के समय चंद्रयान को कोई ऑपरेट नहीं कर रहा होगा, लैंडिंग की पूरी प्रक्रिया वह खुद से करेगा. इसमें वह ऊंचाई और स्पीड मापकर खुद ही लैंडिंग इंजन को चालू और बंद करेगा. नीचे उतरने से पहले वह यह भी देखेगा कि नीचे कोई गड्ढा या पहाड़ी क्षेत्र न हो. इसी के हिसाब से वह लैंडिंग करेगा. बता दें कि चांद की सतह पर हवा न होने और गुरुत्वाकर्षण के कारण गिरने वाली किसी भी चीज की रफ्तार लगातार बढ़ती जाती है.
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दरअसल, चंद्रयान-3 मिशन का लैंडर विक्रम 30 किलोमीटर की ऊंचाई से लैंडिंग की प्रक्रिया शुरू करेगा. स्पीड को कंट्रोल करने के लिए वह अपने चार थ्रस्टर इंजनों को रेट्रो फायर करेगा और धीरे-धीरे चांद की सतह पर उतने की कोशिश करेगा. 6-8 किलोमीटर की ऊंचाई रह जाने पर सिर्फ दो इंजनों का इस्तेमाल होगा क्योंकि लैंडर के पास इतना ज्यादा ईंधन नहीं होता है. 100 से 150 मीटर रह जाने पर लैंडर विक्रम अपने सेंसर और कैमरों का इस्तेमाल करके सतह को स्कैन करेगा और फिर सॉफ्ट लैंडिंग का प्रयास करेगा.
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